जानिए किन वजहों से बारिश में हो रही देरी, वैज्ञानिकों ने खोज के बाद क्या बताया इसके पीछे कारण
देश में राज्य ऐसे हैं जहां मानसून बारिश की एक बूंद भी नहीं टपकी। जबकि अंदाजा लगाया गया था कि इन इलाकों में मानसून समय से पूर्व पहुंच जाएगा। शोधकर्ताओं की मानें तो ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि और मानवजनित एरोसोल में कमी से मौसम चक्र आगे खिसक रहा है।
नई दिल्ली, [संजीव गुप्ता]। Weather Update - एनसीआर ही नहीं, देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां अभी तक मानसून की बारिश की एक बूंद भी नहीं टपकी। जबकि, अंदाजा लगाया गया था कि इन इलाकों में मानसून समय से पूर्व पहुंच जाएगा। शोधकर्ताओं की मानें तो ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि और मानवजनित एरोसोल में कमी से मौसम चक्र आगे खिसक रहा है। इस संबंध में अमेरिकी ऊर्जा विभाग की प्रशांत नार्थ वेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व किए एक विस्तृत अध्ययन किया गया है।
इस अध्ययन के मुताबिक 1979 से 2019 तक के ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि और मानवजनित एरोसोल में कमी ने मौसम में कई दिनों की देरी की है। इसी के चलते ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में बारिश होने में भी देरी हो रही है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की शोध पत्रिका डाउन टू अर्थ में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि मानसून की बारिश की शुरुआत को जलवायु माडल द्वारा भविष्य में बढ़ने वाले तापमान के साथ जोड़ा गया है। बारिश में देरी तेजी से नम होते वातावरण के कारण होती है। जैसे ही ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं, अधिक जल वाष्प वायुमंडल में अपना रास्ता बनाता है। यह अतिरिक्त नमी वातावरण को गर्म करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा को बढ़ा देती है जिससे बारिश के मौसम का समय बदल सकता है।
अध्ययन के अनुसार, वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों से एरोसोल सांद्रता में गिरावट जारी है। ठंडे करने का वह प्रभाव नष्ट हो गया है, जो हाल के दशकों में तापमान बढ़ने और मानसून की वर्षा में देरी दोनों को बढ़ाता है। अध्ययन के अनुसार, भारत जैसा देश जो कृषि के लिए मानसूनी बारिश पर अधिक निर्भर रहता है, वहां गर्मी में होने वाली बारिश अगर देरी से होती है तो फसल की उपज इससे तबाह हो सकती है और बड़ी आबादी की आजीविका खतरे में पड़ सकती है। जब तक किसान अत्यधिक बदलाव के बीच लंबे समय में होने वाले परिवर्तनों की पहचान नहीं कर पाते और उसके अनुसार नहीं ढलते, यह खतरा बना रहेगा।
अध्ययन बताता है कि ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में हवा की गति बहुत तेज होती है। वहां सौर विकिरण सबसे मजबूत होता है। जैसे-जैसे ऋतुएं बदलती हैं और सूर्य गोलाद्र्धों के बीच प्रवास करता है, वर्षा बैंड या रेनबैंड की गति बदल जाती है। जब वर्षा रूपी बैंड भूमि पर पहुंचता है तो यह मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। ऊष्णकटिबंधीय जंगलों, उनके भीतर और आसपास रहने वाली बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त पानी की आपूर्ति भी यही करता है। वर्षा बैंड एक अतिरिक्त ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात में बड़ी मात्रा में बारिश या हिमपात भी करा सकते हैं।
क्या है ऊष्ण कटिबंध
ऊष्ण कटिबंध दुनिया का वह ताप कटिबंध है जो उत्तर में कर्क रेखा और दक्षिण में मकर रेखा के बीच भूमध्य रेखा के आसपास स्थित है। यह पृथ्वी का सबसे गर्म क्षेत्र है, क्योंकि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण सूर्य की अधिकतम ऊष्मा भूमध्य रेखा और उसके आस-पास के इलाके पर केंद्रित होती है।
मानव जनित एरोसोल जरूरी
मानवजनित एरोसोल, जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाले कण, सूर्य के प्रकाश को प्रति¨बबित करते हैं। ये वातावरण को ठंडा करते हैं और ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाली गर्मी को कम करते हैं।
वैज्ञानिक का बयान
इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्रीन हाउस गैसें और मानवजनित एरोसोल हमारी जलवायु को प्रभावित करते हैं। इनका असर तापमान, बारिश और मौसम चक्र सभी पर पड़ रहा है। इसीलिए इस दिशा में तमाम अध्ययन और प्रयास जारी हैं। हमारा प्रयास ऐसा होना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण तो कम हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन को गति भी न मिले।
-प्रो. एस एन त्रिपाठी, अध्यक्ष, सेंटर फार एनवायरमेंटल साइंस एवं इंजीनियरिंग, आइआइटी कानपुर
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