दिल्ली में महिला सुरक्षा के दांवों से दूर हकीकत, अपराध एक, सवाल अनेक
बीते एक पखवाड़े में कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जो एक बार फिर सोचने को मजबूर करती हैं कि इस विषय पर सिर्फ बात करने या सख्त कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। पुलिस की सक्रियता से जांच आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में कानून का भय होना जरूरी है।
नई दिल्ली। महिला सुरक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर जितनी गंभीरता से बात होनी चाहिए, उसे सिर्फ शोर-शराबे तक लाकर अधर में छोड़ दिया जाता है। आज भी हम ऐसे माहौल में रह रहे हैं, जहां छोटी बच्चियों केसाथ जघन्य अपराध हो रहे हैं। घर से निकलने पर असुरक्षा का भाव रहता है, क्यों? क्योंकि कानून तो हैं, लेकिन उनका डर नहीं है। महिला सुरक्षा के नाम पर व्यवस्था तो बना दी गई, लेकिन इस पर अमल हकीकत से कोसो दूर है।
दिल्ली-एनसीआर में बीते एक पखवाड़े में कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जो एक बार फिर सोचने को मजबूर करती हैं कि इस विषय पर सिर्फ बात करने या सख्त कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। पुलिस की सक्रियता से जांच, आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में कानून का भय होना जरूरी है। दरअसल ऐसे जघन्य अपराधों की दो-चार सप्ताह तो गूंज रहती है, न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन होते हैं, लेकिन कमजोर जांच प्रक्रिया और धीमी न्याय प्रणाली की वजह से ये लड़ाई कमजोर पड़ जाती है।
आखिर कैसे मजबूत हो पुलिस की कार्यप्रणाली? निर्भया सामूहिक दुष्कर्म घटनाक्रम के बाद महिला सुरक्षा को लेकर जो दावे किए गए, उनके अब तक अधर में होने की क्या है वजह?
अगस्त को मयूर विहार थाना क्षेत्र में एक पड़ोसी ने छह वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था। वारदात के वक्त बच्ची गली में खेल रही थी, आरोपित उसे बहला-फुसला कर अपने कमरे में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपित संमुगन को गिरफ्तार कर लिया है।
अगस्त को दिल्ली कैंट थाना क्षेत्र स्थित पुराना नांगलराया श्मशान भूमि परिसर में एक बच्ची की हत्या। इस मामले में पुलिस ने कुलदीप, लक्ष्मी नारायण, राधेश्याम व सलीम नामक आरोपित को गिरफ्तार किया था।
दावों का दायरा छोटा नहीं पड़ना चाहिए। विशेषकर जब कोई संवेदनशील घटना हो तब तो कोई कोर कसर नहीं छोड़नी चाहिए। ऐसा ही होता है महिला सुरक्षा से जुड़े मामलों में जब इस तरह का मामला कहीं अधिक तूल पकड़ता दिखता है तो बेहिसाब घोषणाएं, दावेदारी हो जाती हैं। लेकिन, उनकी हकीकत यही है कि सालों साल बीत जाते हैं और व्यवस्था जस की तस ही रहती है। महिला सुरक्षा के इन्हीं दावों की हकीकत जानिए
आंकड़ों की जुबानी
दावा
- सभी थानों में महिला हेल्प डेस्क की सुविधाओं को और बेहतर किया जा रहा है
- हिम्मत प्लस एप को बहुभाषी व यूजर फ्रेंडली बनाकर नए सिरे से लांच किया गया
- थाना स्तर पर महिला सुरक्षा दल बनाया गया
- एंटी स्टाकिंग हेल्पलाइन 1096 को मजबूत किया गया
- दुष्कर्म के मामले में 60 दिनों के अंदर फाइनल रिपोर्ट लगाने, यौन शोषण मामले की जांच महिला अधिकारियों से कराने की व्यवस्था है।
- सभी थानों में 15-15 महिलाकíमयों की संख्या कर दी जाएगी।
- संवेदनशील इलाके में पराक्रम वैन की तैनाती, गल्र्स स्कूलों के बाहर पुलिस की विशेष तैनाती।
- कुछ पीसीआर पर केवल महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती की व्यवस्था है।
हकीकत
रात में घर लौटने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए 800 पीसीआर वैन, मोटर साइकिल गश्त, इमरजेंसी रिस्पांस व्हीकल की व्यवस्था है। लेकिन, पीसीआर चंद वीआइपी क्षेत्रों में ही गश्त करती दिखती हैं बाहरी दिल्ली जैसे इलाके में पीसीआर की मुस्तैदी इतनी कम है कि काल पर तुरंत पहुंच पाना संभव ही नहीं है।