Move to Jagran APP

दिल्ली की राजनीति में बिजली का करंट, कौन आगे है AAP या भाजपा

दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने 50 फीसद छूट का एलान कर दिया। अब भाजपा इसे मुद्दा बनाते हुए स्थायी शुल्क पूरी तरह से माफ करने और घरेलू उपभोक्ताओं को भी राहत देने की मांग कर रही है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 11:43 AM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 11:43 AM (IST)
दिल्ली की राजनीति में बिजली का करंट, कौन आगे है AAP या भाजपा
दिल्ली की राजनीति में बिजली का करंट, कौन आगे है AAP या भाजपा

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। दिल्ली में बिजली पर सियासत नई बात नहीं है। यहां के राजनेताओं के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है। बिजली के करंट से यहां राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं। इसके जरिये सत्ता तक का सफर भी तय किया गया है। कोरोना काल में भी बिजली बिल पर खूब राजनीति हो रही है, जबकि उपभोक्ता परेशान हैं। कारोबारी लॉकडाउन के दौरान बंद कारखानों व दुकानों में स्थायी शुल्क के साथ बिजली बिल भेजने की शिकायत कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने इसे लेकर आंदोलन भी किया। वहीं, मुख्यमंत्री ने कारोबारियों को इसमें राहत देने की बात कही और दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने 50 फीसद छूट का एलान कर दिया। अब भाजपा फिर से इसे मुद्दा बनाते हुए स्थायी शुल्क पूरी तरह से माफ करने और घरेलू उपभोक्ताओं को भी राहत देने की मांग कर रही है। पार्टी की कोशिश इसे तूल देकर सियासी लाभ हासिल करने की है।

loksabha election banner

सियासत नहीं वेतन दें हुजूर

राजधानी दिल्ली में नगर निगमों के कर्मचारी वेतन के लिए मोहताज हैं। गुहार लगा-लगाकर थक गए, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं है। मजबूरन उन्हें आंदोलन करना पड़ रहा है। ज्यादा पीड़ादायक यह है कि सत्तापक्ष व विपक्ष के नेता समस्या हल करने के बजाय इसे सियासी मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं। आम आदमी पार्टी (आप) और भाजपा के नेता इसे लेकर एक-दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं। पिछले दिनों दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ इस मुद्दे पर प्रदर्शन किया। निगम मुख्यालय सिविक सेंटर पर दोनों तरफ से खूब नारेबाजी हुई। दोनों पार्टियां प्रदर्शन में कर्मचारियों को भी अपने साथ शामिल करना चाहती थीं। इसकी कोशिश भी हुई, लेकिन कर्मचारियों ने सियासी पार्टियों को आईना दिखाते कहा कि उन्हें सियासत नहीं वेतन की दरकार है। एक पार्टी की राज्य में सरकार है और दूसरी निगम में काबिज है, इसलिए नेता सियासत छोड़कर समस्या का समाधान निकालें।

सांसद को कर दिया नजरअंदाज

भाजपा में जनप्रतिनिधियों और संगठन के बीच मतभेद पुरानी समस्या है। सांसद और जिला अध्यक्ष अक्सर एक-दूसरे पर विश्वास में लिए बगैर क्षेत्र में कार्यक्रम आयोजित करने की शिकायत करते हैं। पार्टी की बैठकों में कई बार यह मुद्दा उठ चुका है। कहा जा रहा है कि इस बार सांसदों की राय से जिला अध्यक्ष बनाए गए हैं। हालांकि, चर्चा यह भी है इस मामले में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी की राय को तवज्जो नहीं मिली है। इसका असर भी दिखने लगा। प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने नवीन शाहदरा से जिलों का प्रवास शुरू किया है। यह जिला तिवारी के संसदीय क्षेत्र में पड़ता है लेकिन वह प्रदेश अध्यक्ष के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। बताते हैं कि उन्हें जिला इकाई ने सही समय पर आमंत्रित नहीं किया, जिससे वह नाराज हैं। इस घटना से कार्यकर्ताओं को गुटबाजी बढ़ने की ¨चता सता रही है।

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.