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करोड़ों लोगों की सांसों में जहर घोल रहा VOC, दिल्ली समेत देश के सभी शहर खतरे में

वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) वाष्पशील (हवा में घुलने वाले तत्व) होने के साथ ही वायु में ही रासायनिक तत्वों के साथ क्रिया करके खतरनाक जहरीली गैसों की उत्पत्ति करते हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 10:03 AM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 03:23 PM (IST)
करोड़ों लोगों की सांसों में जहर घोल रहा VOC, दिल्ली समेत देश के सभी शहर खतरे में
करोड़ों लोगों की सांसों में जहर घोल रहा VOC, दिल्ली समेत देश के सभी शहर खतरे में

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि देश के हर शहर में अदृश्य रसायन लोगों की सांसों में जहर घोल रहे हैं। यह वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) वाष्पशील (हवा में घुलने वाले तत्व) होने के साथ ही वायु में ही रासायनिक तत्वों के साथ क्रिया करके खतरनाक जहरीली गैसों की उत्पत्ति करते हैं। यह गैसें न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं, बल्कि पर्यावरण को भी क्षति पहुंचाती हैं।

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यही नहीं विशेषज्ञों की मानें तो ओजोन परत के निर्माण में भी यह प्रभावी भूमिका निभाती हैं। इसकी जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका होती है। खास बात यह है कि इन तत्वों की निगरानी एवं रोकथाम की व्यवस्था अभी तक आधी-अधूरी ही है।

यहां बता दें कि 6 और 7 दिसंबर को दिल्ली में हुई तकनीकी कार्यशाला में देश-विदेश के विशेषज्ञों ने शिरकत की थी। इसमें सीपीसीबी को वीओसी की निगरानी सुनिश्चित करने, पेट्रोलियम क्षेत्र के मानक सख्ती से लागू करने, तथा बचे हुए क्षेत्रों के मानक भी जल्द तैयार करने का सुझाव दिया गया था।

क्या है वीओसी

वीओसी रासायनिक तत्वों के मिश्रण से उत्पन्न कार्बनिक पदार्थ होते हैं। यह मुख्यतया पेट्रोल पंप, ऑयल रिफाइनरी, पेट्रो केमिकल, फार्मा, पेस्टीसाइड, पेंट, कोक ओवन, डाई उपकरण तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं। यह रासायनिक पदार्थ कुछ ही देर में हवा में घुल जाते हैं।

वीओसी से बनती हैं ये जहरीली गैसें

इन रासायनिक पदार्थो से बेंजीन, टॉयलीन, जॉयलीन, क्लोरोफार्म, डाइक्लोरोमीथेन, साइक्लोहैक्जैन, एथेनॉल, मेथेनॉल, मिथाइल, एसीटोन और एसीटेट इत्यादि जहरीली गैसें उत्पन्न होती हैं।

पेट्रोलियम कंपनियों पर हुई कार्रवाई

पेट्रोल पंप वीओसी के तहत बेंजीन का मुख्य स्रोत हैं। इसे 80 फीसद तक कम करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पेट्रोल पंप पर स्टेज एक और दो के वेपर रिकवरी सिस्टम लगाने का नियम बनाया है। इस नियम का पालन नहीं करने पर सीपीसीबी ने हाल ही में तीनों प्रमुख पेट्रोलियम कंपनियों हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन पर एक-एक करोड़ रुपये का जुर्माना ठोका है।

डॉ. एस के त्यागी (पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी ) के मुताबिक, प्रदूषण को लेकर पीएम 2.5, पीएम 10, सल्फर डाइ ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड की बात तो होती है, लेकिन वीओसी पर चर्चा नहीं होती। यह अदृश्य पदार्थ अत्यंत खतरनाक हैं और व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचा रहे हैं।

डॉ. प्रशांत गार्गवा (सदस्य सचिव, सीपीसीबी) के मुताबिक, वीओसी पर नियंत्रण के लिए पेट्रोल पंपों पर सख्ती की जा रही है। इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों के लिए भी मानक अभी तय नहीं हैं, वहां काम चल रहा है।

डॉ. आर के एम जयंती (पर्यावरण विशेषज्ञ, अमेरिका)  ने बताया कि वीओसी पर निगरानी और रोकथाम वक्त की जरूरत है। इन अदृश्य पदार्थों का असर बढ़ता जा रहा है। जिन प्रदूषक तत्वों के बारे में जागरूकता है, उन पर तो काम चल ही रहा है। इन पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण से 10 साल कम हो रही दिल्ली वालों की जिंदगी
ग्लोबल वॉर्मिंग से तपती धरती, कटते पेड़ और धूल-धुआं इन चारों से पैदा हुए वायु प्रदूषण का हमारी-आपकी जिंदगी पर बहुत खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। इस बीच हालिया अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों की जिंदगी के औसतन 10 साल कम हो रहे हैं। दो साल पहले हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 6.3 साल कम हो रहे हैं। अब ताजा आकड़ा दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर लगाम लगाने वाले इंतजामात की भी पोल खोल रहा है।

अमेरिका के चर्चित विश्वविद्यालय ने दिल्ली में लगातार बद से बदतर हो रही जहरीली हवा पर ताजा अध्ययन किया है। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई है। अध्ययनकर्ताओं ने नतीजा निकाला है कि दिल्ली को सांस लेने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के आधार पर हवा मिले तो उनकी जिंदगी 10 साल ज्यादा हो सकती है।

अध्ययन साफ बता रहा है कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 10 साल कम हो रहे हैं। इस अध्ययन को एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) के साथ मिलकर किया गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, PM 2.5 की सुरक्षित सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना होनी चाहिए। भारतीय मानकों के आधार पर इस सीमा को 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक बढ़ाया गया है, फिर भी यह जानलेवा है।

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