मौसम ने दिया साथ तो दिल्ली-एनसीआर के करोड़ों लोगों को मिलेगी वायु प्रदूषण से राहत
Delhi Air Pollution 2020 सीपीसीबी के चेयरमैन शिव दास मीणा का साफ तौर पर कहना है कि जो कदम पिछले वर्षों के दौरान उठाए गए उनसे इस साल दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत मिलने की उम्मीद है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। मौसम अनुकूल रहा तो वायु प्रदूषण की मार झेल रहे दिल्ली-एनसीआर के लोगों को इस साल पराली के जहरीले धुएं से राहत मिल सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने शुक्रवार को यह उम्मीद जताई। साथ ही बताया कि इस बार पंजाब और हरियाणा में गैर-बासमती धान की रोपाई भी पिछले साल के मुकाबले कम क्षेत्रफल में हुई है। इस कारण पराली जलाने वाले क्षेत्रों में पहले ही कमी हो गई है, जबकि बासमती धान की कटाई हो चुकी है। दूसरा, दोनों ही राज्यों में पराली को खेतों में ही नष्ट करने के लिए किसानों को उपलब्ध कराई गई मशीनों की वजह से भी पराली जलने की घटनाओं में कमी देखी जा रही है। राज्य सरकारें भी इस दिशा में मुस्तैद हैं।
सीपीसीबी के चेयरमैन शिव दास मीणा ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें बताया गया है कि अकेले पंजाब में पिछले साल गैर-बासमती धान 22.91 लाख हेक्टेयर में रोपा गया था, जबकि इस साल यह 20.76 लाख हेक्टेयर में ही रोपा गया है। इसी तरह हरियाणा में पिछले साल गैर-बासमती धान की रोपाई 6.48 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जबकि इस साल यह 4.27 लाख हेक्टेयर में रोपा गया है।
शिवदास मीणा का साफ तौर पर कहना था कि जो कदम पिछले वर्षों में उठाए गए, उनसे इस साल दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत मिलने की उम्मीद है। हालांकि मौसम को लेकर उन्होंने चिंता जताई और कहा कि मौजूदा समय में दिल्ली में बढ़े प्रदूषण के पीछे मौसम भी जिम्मेदार है, क्योंकि प्रदूषण के लिहाज से दिल्ली का मौसम एक सितंबर से ही पूरी तरह प्रतिकूल है। इस बार बारिश भी पिछले साल के मुकाबले कम हुई है।
सीपीसीबी ने इस दौरान एक और रिपोर्ट जारी करके बताया कि दिल्ली में पिछले साल यानी 2019 में एक सितंबर से 14 अक्टूबर के बीच 121 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जबकि इस बार इन दिनों में सिर्फ 21 मिलीमीटर बारिश हुई। इसके चलते हवा में भारी कण उड़ रहे हैं। साथ ही सड़कों और निर्माणाधीन स्थलों से भी धूल उड़ रही है। हवा की रफ्तार भी पिछले साल के मुकाबले धीमी है। हालांकि इन सब के बीच सीपीसीबी ने साफ किया कि मौजूदा समय में दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलने से होने वाले धुएं की मात्र सिर्फ चार फीसद के आसपास है, जबकि 96 फीसद कारण स्थानीय हैं। इससे निपटने के लिए सीपीसीबी ने कलस्टर आधारित योजना पर काम शुरू करने की जानकारी दी।
वहीं सफर के आंकड़ों के अनुसार बुधवार को हरियाणा, पंजाब और पड़ोसी राज्यों मे पराली जलाने की घटनाओं में लगातार तेजी देखी जा रही है। हवा की दिशा भी खेत की आग का धुआं दिल्ली तक लाने के अनुकूल है। इससे आने वाले दिनों में दिल्ली में पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ सकती है। नासा की सेटेलाइट इमेज में पंजाब के अमृतसर, पटियाला, तरनतारन और फिरोजपुर के पास और हरियाणा के अंबाला और राजपुरा में खेतों में आग साफ नजर आती है।
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