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इस वजह से 1 साल में गई 12 लाख की जान, चपेट में दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार घर के भीतर या लंबे समय तक बाहरी वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से 2017 में दुनियाभर में 50 लाख लोगों की मौत हो गई।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 10:06 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 10:09 AM (IST)
इस वजह से 1 साल में गई 12 लाख की जान, चपेट में दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग
इस वजह से 1 साल में गई 12 लाख की जान, चपेट में दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में बढ़ता प्रदूषण करोड़ों लोगों के लिए जानलेवा साबित होता जा रहा है। साल, 2019 की शुरुआत में स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण पर बात करें तो अकेले दूषित हवा के कारण भारत में एक साल (2017) में करीब 12 लाख लोग मौत की आगोश में चले गए थे।

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साल, 2017 भारत में हर 8 मौतों में से एक मौत की वजह खराब हवा रही। प्रदूषित हवा के कारण होने वाली बीमारियों से 2017 में देश में 12.40 लाख लोगों की मौत हुई थी। इस बात का खुलासा प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल 'लैंसेट'में खराब हवा और इसके कारण होने वाली बीमारियों और मौतों को लेकर छपी रिपोर्ट में हुआ था।

वहीं, बुधवार को पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा के सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि 2017 में 12 लाख 40 हजार लोगों की मौत वायु प्रदूषण के चलते हुई थी। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अध्ययन कराया था।

2017 में दुनिया भर में 50 लाख लोगों की मौत

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, घर के भीतर या लंबे समय तक बाहरी वायु प्रदूषण से घिरे रहने की वजह से 2017 में स्ट्रोक, शुगर, हर्ट अटैक, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों के कारण वैश्विक स्तर पर करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई थी।

दिल्ली-एनसीआर में 2017 में बहुत अधिक रहा वायु प्रदूषण

इसके अलावा एम्स ने भारतीय जन स्वास्थ्य फाउंडेशन और स्वास्थ्य मैट्रिक्स एवं मूल्यांकन संस्था के सहयोग से भी अध्ययन कराया, जिसमें यह बात निकलकर सामने आई कि 2017 में देश की 76 फीसद आबादी पीएम 2.5 के सामान्य स्तर से अधिक के बीच सांस ले रही थी। इसमें दिल्ली व एनसीआर क्षेत्र में हालात बुरे थे। केंद्र सरकार वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए कई कदम उठा रही है। इसमें राष्ट्रीय एंबिएंट एयर क्वालिटी मानकों की अधिसूचना, औद्योगिक क्षेत्रों में उत्सर्जन मानकों में संशोधन, एंबिएंट एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग की व्यवस्था के साथ-साथ स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन के इस्तेमाल को लेकर भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को भी अधूसूचित करना शामिल है। उन्होंने कहा कि निर्माण कार्यों के दौरान निकले मलबे के समुचित निस्तारण की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इससे वायु प्रदूषण पर काफी हद तक रोक लग सकती है। इसके अलावा देशभर में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम तैयार किया है। साथ ही पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टीफिकेट जारी करने को सरल बनाना व बड़े उद्योगों द्वारा ऑनलाइन मॉनिटरिंग उपकरणों को लगाना शामिल है।

हापुड़ में 12 साल उम्र घटी

दिल्ली समेत कई शहरों में सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को भी पार कर  जाता है। इसकी वजह से देश में जीवन-प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) में 5.3 साल की कमी आई है। दिल्ली से सटे 2 शहरों (हापुड़ और बुलंदशहर) की बात करें तो यहां पर जीवन-प्रत्याशा की दर में निराशाजनक कमी आई है और यहां पर 12 साल से भी ज्यादा कम हो गई है। दिल्ली में तो और भी बुरा हाल है, यहां पर भी लोगों की उम्र प्रदूषण के चलते घट रही है।

गर्मियों में बढ़े खतरनाक दिन

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (Delhi Pollution Control Committee) के दावों से इतर सामने आया है कि इस साल गर्मियों के दौरान खतरनाक और खराब दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था क्लाइमेट ट्रेंड ने दावा किया है कि दिल्ली में 13 जगहों पर खतरनाक और आठ जगहों पर खराब दिनों की संख्या में इजाफा हुआ है। क्लाईमेट ट्रेंड ने एक जनवरी से 10 जून के आंकड़ों को आधार बनाकर दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के प्रदूषण की स्थिति का आकलन किया है। आंकड़े सीपीसीबी और डीपीसीसी के एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सेंटर से ही लिए गए हैं। इस आकलन में पाया गया कि इस साल दिल्ली की ज्यादातर जगहों पर खराब, बेहद खराब और खतरनाक दिनों की संख्या बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीसीबी के स्टेशनों पर पीएम 2.5 का पीक लेवल रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा है, जबकि डीपीसीसी के स्टेशनों पर आसानी से पीक लेवल देखा जा सकता है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस के कम्युनिटी साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण शर्मा के मुताबिक, दिल्ली में कुछ जगहों पर स्थिति में सुधार आया है, लेकिन यह काफी कम है। इतने सुधार से लोगों को कुछ खास राहत नहीं मिलेगी। उन्होंने जब एक जनवरी से दस जून के आंकड़ों का आकलन किया तो कई बातें सामने आईं। जहांगीरपुरी, नरेला और जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के आंकड़े भी सीपीसीबी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं थे, जबकि डीपीसीसी पर इन्हें देखा जा सकता था। विशेषज्ञों के अनुसार इस बार मानसून के आसार भी बहुत अच्छे नहीं लग रहे। लिहाजा, मानसून के दौरान भी बहुत साफ दिन मिलने की उम्मीद कम है। खराब दिनों की बात की जाए तो यह भी ज्यादातर जगहों पर बढ़े हैं। इन हालातों को देखते हुए जनता को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए दिल्ली सरकार को अभी और अधिक प्रयास करने होंगे।

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