दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियर आशीष ने आखिर किस नेक मकसद से की 17,0000 km की यात्रा
आशीष शर्मा पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होेंने देश को बाल भिक्षावृति से मुक्त करने के लिए अपनी अच्छे-खासे पैकेज की नौकरी छोड़ दी और निकल पड़े पदयात्रा पर।
नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। आज एक तरफ भारत लगातार नई खोजें कर रहा है, अंतरिक्ष में सफलता के झंडे गाड़कर विकास की बुलंदियों को छूकर देश ही नहीं विदेशों में भी वाहवाही बटोर रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ पूरे देश में ट्रैफिक सिग्नल और मेट्रो स्टेशनों के बाहर लगभग सभी शहरों में भीड़-भाड़ वाले स्थान पर मासूम बच्चों से लेकर नाबालिग लड़के- लड़कियों के जरिए भीख मांगने और मंगवाने का धंधा हमारी आर्थिक वृद्दि का स्याह चेहरा पेश कर रहा है। कृपया बच्चों को भीख न दें। हां, उन्हें दो रोटी जरूर खिला दें। इस संदेश के साथ देश को बाल भिक्षावृत्ति को कलंक से मुक्ति दिलाने का काम कर रहे हैं आशीष।
दिल्ली के समयपुर बादली निवासी युवा इंजीनियर फुट सोल्जर के नाम से प्रसिद्ध आशीष शर्मा पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होेंने देश को बाल भिक्षावृति से मुक्त करने के लिए अपनी अच्छे-खासे पैकेज की नौकरी छोड़ दी और निकल पड़े पदयात्रा पर। उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा दिल्ली में भीख मांगते बच्चों से मिली, जो बेचार सड़कों पर भटक रहे थे। उन्हें देखकर आशील को लगा कि इन जैसे लोगों के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे और लोगों को भी प्रेरणा मिले।
इसी के मद्देनजर उन्होंने 17000 किमी की पदयात्रा की। 22 अगस्त 2017 को उन्होंने जम्मू के उधमपुर से अपने अभियान की शुरुआत की थी, जो कि 24 मार्च 2019 को दिल्ली के गांव कराला स्टेडियम में संपन्न हुई। सड़कों पर भीख मांगते बच्चों को लगभग हम रोज ही देखते हैं। कई लोग उन्हें कुछ पैसे देते हैं तो कुछ लोग उन्हें ऐसा न करने की नसीहत। वहीं, कुछ लोग उनकी इस हालत के लिए सरकार को कोसते हैं, जबकि लगभग हर प्रदेश में भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए सरकारी विभाग और योजनाएं भी हैं।
आशीष बताते हैं कि उन्होंने इस यात्रा के माध्यम से लोगों को जागरूक किया है। आशीष ने पूरे देश के 29 राज्यों और 7 केंद्रीय शासित राज्यों के 267 शहरों और 4900 गांवो से होते हुए 581 दिनों में यह यात्रा की और बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए लोगों को जागरूक किया। इस पदयात्रा को उन्होंने उन्मुक्त्त इंडिया का नाम दिया, जिसका उद्देश्य भिक्षावृत्ति को खत्म करना था। उनकी इस पदयात्रा का यह असर हुआ कि आज देश भर के युवा उनके साथ खड़े हैं।
रोजाना चले 30 से 40 किलोमीटर
आशीष अपनी इस पदयात्रा में रोजाना 30 से 40 किलोमीटर औसत लेकर चलते थे। इस दौरान वह स्कूल, कॉलेज और अन्य जगहों पर जाकर लोगो से मिलते और उन्हें बताते कि बाल भिक्षावृति कैसे खत्म की जा सकती है और इसके लिए उन्हें क्या करना होगा। इस दौरान वह देश भर में प्रशासनिक अधिकारियों से मिले जिन्होंने उनका मनोबल भी बढ़ाया। आशीष एक मोबाइल एप भी डेवलप कर रहे हैं, जिसकी मदद से पांच किलोमीटर के दायरे में किसी भी बाल भिक्षुक के दिखने पर उसकी जानकारी अपलोड की जाए, ताकि आसपास के पुलिस अधिकारी व अनाथालय उस बच्चे की मदद कर सकें।
इन राज्यों में आशीष ने रखे भिक्षावृत्ति के रोकथाम के कदम
उनकी पदयात्रा का सफर जम्मू, हिमाचल, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, गोआ, दमन, सिलवासा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, आसाम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, तमिलनाडु, पॉन्डिचेरी, अंडमान निकोबार में रहा। इस दौरान उन्होंने लाखों लोगो को शपथ दिलवाई की वह भिक्षावृत्ति को रोकेंगे।
आसान नहीं थी यह यात्रा
आशीष ने बताया कि शुरुआत में तो उन्हें लगा ही नहीं था कि वह पैदल यात्रा पूरी कर पाऐंगे, लेकिन जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो उन्हें जीविका और आश्रय संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके लिए सीमित संसाधनों के साथ, इस तरह के कार्य के लिए पूरे रोडमैप की योजना बनाना संभव नहीं था। इसलिए कई बार वह भूखे रहे। कई बार सोने के लिए जगह नहीं होती थी। लेकिन उन्हें खुद पर विश्वास था कि वह हर कीमत पर इसे पूरा करना चाहता है क्योंकि पीछे मुड़ने का कोई विकल्प नहीं था। अपनी इस पदयात्रा के बारे में याद करते हुए वह बताते हैं वह मध्य प्रदेश में किसी बाबा की चंगुल में फंस गए थे। यात्रा के दौरान उनका दो बार पर्स चोरी हुआ, चार बार पीलिया, 2 बार अनवांछित लोगो से मुहिम बंद करने की अपील, और छत्तीसगढ़ में एक्सीडेंट हुआ। पर इससे उनका हौसला नहीं टूटा और वह आगे बढ़ते रहे।
दिल्ली-एनसीआर की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां पर करें क्लिक