यहां बालकनी पर ही खड़ी कर दी 8 मंजिला बिल्डिंग, आंखें मूंदे रहे अफसर
ग्रेटर नोएडा वेस्ट के शाहबेरी गांव में लोगों की जिंदगी लीलने वाली मौत की इमारत रातों-रात खड़ी नहीं हुई। इसके आसपास 100 से अधिक अवैध बिल्डर प्रोजेक्ट हैं।
नोएडा (धर्मेंद्र चंदेल)। ग्रेटर नोएडा वेस्ट के शाहबेरी गांव में लोगों की जिंदगी लीलने वाली मौत की इमारत रातों-रात खड़ी नहीं हुई। इसके आसपास 100 से अधिक अवैध बिल्डर प्रोजेक्ट हैं। इनमें दस हजार से अधिक फ्लैट बनाए जा चुके हैं। इनका निर्माण पिछले आठ वर्षों से हो रहा है। 2010 में गांव की जमीन का अधिग्रहण रद होने के बाद कालोनाइजर सक्रिय हो गए थे। इतनी बड़ी संख्या में अवैध इमारत खड़े होने से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी सीधे कठघरे में खड़ा हो गया है।
अवैध फ्लैटों के निर्माण में मानकों का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। मैदानी तल की किसी भी दीवार पर ऊपरी मंजिल की दीवार नहीं रखी गई है। बालकनी पर आठ से दस मंजिला फ्लैटों का निर्माण कर दिया गया है। अधिक भार के दबाव में बालकनी कभी भी गिर सकती है। इससे ऊपरी मंजिल के सभी फ्लैट चंद सेकेंडों में जमींदोज हो जाएंगे। इससे भारी जान-माल की हानि होगी।
अधिकारियों की अनदेखी से खड़े होते गए कच्चे किले
शहर से अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों की रोजी-रोटी छीनने वाले प्राधिकरण अधिकारियों ने शाहबेरी और उसके आसपास के गांवों में अवैध रूप से बनाए जा रहे फ्लैटों का निर्माण रोकने का कभी प्रयास नहीं किया। पिछले आठ वर्षों में मौत की अवैध इमारतें खड़ी होती रहीं और प्राधिकरण अधिकारी आंख मूंदे बैठे रहे।
प्रतिदिन अधिकारियों का काफिला ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सड़कों से गुजरता है। अधिकारियों की नजर कभी शाहबेरी गांव की तरफ नहीं पड़ी अथवा ये कहा जाए कि प्राधिकरण अधिकारियों और प्रबंधकों को आंख मूंदने के लिए उनकी जेब भर दी गईं। लोगों का सीधे-सीधे आरोप है कि इस हादसे में लोगों की मौत के लिए प्राधिकरण भी जिम्मेदार है। दरअसल, किसानों से सस्ते में जमीन खरीदकर अवैध रूप से बनाए जा रहे फ्लैटों से कालोनाइजरों की अधिक बचत हो जाती है। उसका कुछ हिस्सा प्राधिकरण अधिकारी, प्रबंधक और पुलिस की जेब में भी जाता है, ताकि वे निर्माणाधीन इमारतों की तरफ ध्यान न दें। कालोनाइजरों द्वारा बनाए गए प्रोजेक्टों में चार से दस मंजिला करीब दस हजार हजार फ्लैट हैं। किसी भी प्रोजेक्ट के फ्लैटों की निर्माण सामग्री की गुणवत्ता ठीक नहीं है। कालोनाइजरों ने अधिक कमाई के लालच में कम लागत की घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग फ्लैट बनाने में किया।
इन गांवों में भी बनाए जा रहे हैं अवैध फ्लैट
शाहबेरी के अलावा इटेड़ा, पतवाड़ी, चिपियाना, तिगरी, बिसरख, जलपुरा, कुलेसरा, हल्दोनी, खेड़ा चौगानुपर, तुस्याना, खैरपुर गुर्जर आदि गांवों में बड़ी संख्या में अवैध फ्लैटों का निर्माण किया जा रहा है।
पीड़ित परिजन ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर लगाया आरोप
जमींदोज हुए फ्लैटों में मैनपुरी का शिवकुमार का परिवार भी फंसा हुआ है। शिवम कुमार के पिता सुरेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य मलबे में दबे हैं। उनके साथ कोई अनहोनी हुई तो इसके लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी जिम्मेदार है। प्राधिकरण ने कैसे अवैध फ्लैटों का निर्माण होने दिया। उन्होंने कहा कि प्राधिकरण अधिकारियों पर भी मामला दर्ज होना चाहिए। प्राधिकरण की ही लापवाही से कई परिवार पूरी तरह से तबाह हो गएं है। इन सब की मौत का जिम्मेदार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण है।
प्राधिकरण के पैसे पर ही स्थानीय लोगों ने खड़ा कर दिया खतरनाक आशियाना
शाहबेरी गांव में सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में जमीन अधिग्रहण रद कर दिया था। अधिग्रहण रद होने के बाद प्राधिकरण ने तीन माह में मुआवजे का 110 करोड़ रुपये वापस मांगा था। चार किसानों को छोड़कर किसी ने भी प्राधिकरण का पैसा वापस जमा नहीं किया। प्राधिकरण के पैसे से लोगों ने जमीन पर अवैध फ्लैट बनाकर बेचने शुरू कर दिए। हैरत की बात यह है कि प्राधिकरण को इसकी जानकारी लग गई थी, लेकिन अधिकारियों ने प्राधिकरण का पैसा वापस लेने के लिए किसानों पर दबाव नहीं बनाया। आठ वर्ष बाद भी किसानों से प्राधिकरण अपना पैसा वसूल नहीं सका है।
यूपीपीसएल और एनपीसीएल ने अवैध फ्लैटों में दे दिए बिजली कनेक्शन
हैरत की बात यह है कि शाहबेरी, बिसरख समेत जितने भी गांवों में अवैध फ्लैटों का निर्माण हुआ है, उनमें बिजली कनेक्शन भी लगे हुए हैं। ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में यूपीपीसीएल विद्युत सप्लाई करती है, जबकि अन्य गांवों में बिजली आपूर्ति का जिम्मा एनपीसीएल के पास है। नियमानुसार प्राधिकरण से अनुमति लेने के बाद ही बिजली कनेक्शन दिया जाता है। एनपीसीएल और यूपीपीसीएल अन्य मामलों में प्राधिकरण के अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना बिजली कनेक्शन नहीं देते, लेकिन शाहबेरी व बिसरख गांव में बनाए गए अवैध फ्लैटों में एनपीसीएल व यूपीपीसीएल ने किसी से भी प्राधिकरण का अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मांगा।
भविष्य में हादसे की आशंका बरकरार
ग्रेटर नोएडा वेस्ट में अवैध फ्लैटों का निर्माण नहीं रूका तो भविष्य में भी हादसे हो सकते हैं। इनमें जान-माल की भारी हानि हो सकती है। अधिकांश फ्लैटों का निर्माण मानकों के अनुसार नहीं किया जा रहा। फ्लैटों की नींव मजबूत नहीं है। दो से तीन फीट मिट्टी खोदकर नींव रख दी गई है। सीमेंट और सरिया का भी समुचित प्रयोग नहीं किया गया है। ईट, रोड़ी, बदरपुर में रेत और राख की मिलावट है। इससे इमारतों के गिरने की अंदेशा बना हुआ है।
प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ देबाशीष पंडा के निर्देश के बाद भी नहीं हुई कोई कार्रवाई
करीब दस माह पहले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ देबाशीष पंडा ने शाहबेरी, बिसरख आदि सभी गांवों में बनाए जा रहे अवैध फ्लैटों का निर्माण कार्य बंद कराने के निर्देश दिए थे। इसके लिए उन्होंने पांच कमेटी बनाकर कड़ी कार्रवाई करने को कहा था। फ्लैट बनाने वालों की पहचान कर थाने में मामला दर्ज कराने के भी निर्देश दिए गए थे। सीईओ के निर्देश पर कमेटी बनी, गांवों का दौरा हुआ। फ्लैट बनाने वालों की सूची बनी। करीब 70 कालोनाइजरों के नाम सामने आए थे, लेकिन मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इससे आगे कार्रवाई नहीं बढ़ी। किसी भी कालोनाइजर के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कराया गया। इससे प्राधिकरण सीधे-सीधे कठघरे में खड़ा नजर आ रहा है।
अधिग्रहण रद होने का हवाला देकर प्राधिकरण बच रहा जिम्मेदारी से
शाहबेरी में फ्लैट गिरने की घटना के बाद ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अधिकारियों ने फोन उठाने बंद कर दिए। प्राधिकरण कार्यालय में भी कोई अधिकारी बुधवार को मौजूद नहीं रहा। सिर्फ प्रबंधक, वरिष्ठ प्रबंधक, उप महाप्रबंधक व महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे। उनसे जब कालोनाइजरों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करने का सवाल किया तो उन्होंने कहा कि गांव की जमीन का अधिग्रहण रद हो गया था। प्राधिकरण को इसके बाद कार्रवाई का अधिकार नहीं रहा। जबकि प्राधिकरण के गजट में साफ लिखा हुआ है कि अधिसूचित क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों में प्राधिकरण की अनुमति के बिना निर्माण नहीं हो सकता। शाहबेरी में इतनी बड़ी संख्या में अवैध फ्लैट बन गए, लेकिन प्राधिकरण ने इनका निर्माण रुकवाने का प्रयास नहीं किया।
जमीन अधिग्रहण रद होने के बाद कुंभकर्णी नींद सो गया प्राधिकरण
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने 2008 में शाहबेरी गांव की 156 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया था। प्राधिकरण ने जमीन के बदले किसानों को करीब 110 करोड़ रुपये मुआवजे का दिया था। पहले 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट और बाद में 12 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने गांव की जमीन का अधिग्रहण रद कर दिया था। हैरत की बात यह है कि प्राधिकरण ने अपने मुआवजे को भी वापस लेने का प्रयास नहीं किया। अभी तक सिर्फ चार किसानों ने पांच करोड़ रुपये की मुआवजा राशि वापस की है। जमीन अधिग्रहण रद होने के बाद प्राधिकरण ने फिर से अधिग्रहण का प्रस्ताव शासन को भेजा। उसे पास कराने के लिए भी प्राधिकरण की तरफ से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए।