Survey में खुलासाः देश में दिल की बीमारियों का तीसरा बड़ा कारण बनी यह समस्या
शोध रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकारों को इस बात के लिए सचेत कर रही है कि वे प्रदूषण की रोकथाम के लिए कारगर नीति बनाकर उस पर अमल कर सकें।
नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। अत्याधुनिक जीवनशैली, गलत खानपान, मधुमेह व ब्लड प्रेशर के कारण लोग दिल की बीमारियों से पीड़ित होते हैं, यह बात सभी जानते हैं। अब वायु प्रदूषण भी दिल पर बड़ा आघात कर रहा है। यह देश में दिल की बीमारियों का तीसरा बड़ा कारण बन गया है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन, एम्स सहित देश के प्रमुख चिकित्सा व शोध संस्थानों के अध्ययन में यह बात सामने आई है। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, ढाई दशक में दिल की बीमारियों से मौत और दिव्यांगता दोगुनी बढ़ी है। इसका एक बड़ा कारण प्रदूषण को माना गया है।
हाल ही में यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (लांसेट) में प्रकाशित हुआ है। यह शोध रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकारों को इस बात के लिए सचेत कर रही है कि वे प्रदूषण की रोकथाम के लिए कारगर नीति बनाकर उस पर अमल कर सकें। देश में यह पहली शोध रिपोर्ट है, जिसमें प्रदूषण को दिल की बीमारियों के लिए एक बड़ा कारण मना गया है। डॉक्टरों ने वर्ष 1990 से 2016 के बीच देशभर में कार्डियोवैस्कुलर (हृदय वाहिकाओं) की बीमारियों पर अध्ययन किया। जिसमें यह पाया गया कि हर चौथे व्यक्ति की मौत हृदय वाहिकाओं की बीमारी के कारण होती है।
वर्ष 2016 में हृदय वाहिकाओं की बीमारी से 28.1 फीसद लोगों की मौत हुई। इसके अलावा यह 14.1 फीसद लोगों में दिव्यांगता का कारण बनी, जबकि वर्ष 1990 में हृदय वाहिकाओं की बीमारी से 14.1 फीसद लोगों की मौत हुई थी व 6.9 फीसद लोग दिव्यांग हुए थे। हृदय वाहिकाओं की बीमारी में हार्ट अटैक से सबसे अधिक मौत होती हैं। हार्ट अटैक से 17.8 फीसद व स्ट्रोक से 7.1 फीसद लोगों की मौत हुई। वहीं हार्ट अटैक 8.7 फीसद व स्ट्रोक 3.5 फीसद लोगों में दिव्यांगता का कारण बना। हार्ट अटैक से पुरुष अधिक पीड़ित होते हैं।
शोध में शामिल एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय ने कहा कि गलत खानपान व ब्लड प्रेशर दिल की बीमारियों के सबसे बड़े कारण के रूप में सामने आए हैं। इसके बाद तीसरा जोखिम भरा कारक प्रदूषण को बताया गया है। जिस तरह से शहरों में प्रदूषण व बीमारियां बढ़ी हैं उस आधार पर यह अनुमान लगाया गया है।
दिल पर प्रदूषण का दुष्प्रभाव
वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा बढ़ने पर यह फेफड़े के जरिये ब्लड में पहुंच जाता है, क्योंकि यह बहुत ही सूक्ष्म कण होता है। इस वजह से धमनियों में ब्लॉकेज होने लगता है जो हार्ट अटैक व स्ट्रोक का कारण बन सकता है।