World Post Day 2021: जानिए आजादी से पहले भारत में डाक सेवाओं का इतिहास, जब पहली बार लगा था पार्सल पर टैक्स
दिल्ली को अपना सर्किल और डायरेक्टर आफ पोस्टल सर्विसेज जिसके अधीन पूरी दिल्ली की डाक सेवाएं कर दी गईं जबकि टेलीफोन और टेलीग्राफ को अलग विभाग के अधीन कर दिया गया। अगस्त 1947 में दिल्ली में 104 डाकघर थे 19 ग्रामीण इलाकों में थे।
नई दिल्ली [विष्णु शर्मा]। आजादी के वक्त दिल्ली की डाक सेवाओं का प्रमुख पंजाब का पोस्टमास्टर जनरल (डाक महानिदेशक) था और सर्किल था नार्थ वेस्ट फ्रंटियर और मुख्यालय था लाहौर। दिसंबर 1947 में भी दिल्ली को स्वतंत्र कमान नहीं मिली, बल्कि पंजाब के ही तहत उसे एक सब-सíकल बना दिया गया और अतिरिक्त डाक महानिदेशक को प्रमुख बना दिया गया। कुछ समय के बाद राजधानी के पोस्ट आफिस, रेलवे मेल सर्विस, टेलीग्राफ, टेलीफोन आदि सभी ‘डायरेक्टर जनरल आफ पोस्ट एंड टेलीग्राफ’ के अधीन आ गए। चूंकि लाहौर के पाक में जाने के फौरन बाद कुछ समय के लिए दिल्ली की डाक और रेलवे मेल सेवाएं लाहौर से हटाकर अंबाला के डाक महानिदेशक के भी अधीन रखी गई थीं।
फिर मिली अपनी पोस्टल सर्विसेज
दिल्ली को अपना सर्किल और डायरेक्टर आफ पोस्टल सर्विसेज, जिसके अधीन पूरी दिल्ली की डाक सेवाएं कर दी गईं जबकि टेलीफोन और टेलीग्राफ को अलग विभाग के अधीन कर दिया गया। अगस्त 1947 में दिल्ली में 104 डाकघर थे, 19 ग्रामीण इलाकों में थे। 1961 तक दिल्ली के केवल 81 डाकघरों में ही पब्लिक काल की सुविधा उपलब्ध थी। आधुनिक डाक सेवाओं का केंद्र बनने से पहले अंग्रेजों की राजधानी होने के नाते कलकत्ता (अब कोलकाता) और शिमला ही केंद्र थे।
घुड़सवार ले जाते थे पत्र
14वीं सदी में मुहम्मद बिन तुगलक के राज में दिल्ली आए ‘इब्नबतूता ने लिखा है कि, ‘हिंदुस्तान में दो तरह से पत्र भेजे जाते थे या तो घोड़ों के जरिए या फिर पैदल। हर चार मील पर सुल्तान के घुड़सवार दस्ते तैनात रहते थे जबकि पैदल हरकारों के लिए हर तीन मील पर चौकियां होती थीं और हर मील पर एक हरकारा जो दौड़ते वक्त एक हाथ में सारे पत्र और दूसरे में एक कोड़ा हिलाता रहता था, जिसके ऊपर छोटी घंटियां लगी रहती थीं। कलकत्ता (अब कोलकाता) का जनरल पोस्ट आफिस 1868 में बना था, अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाकर तवज्जो देनी शुरू की, कलकत्ता (अब कोलकाता)और शिमला के बाद। शिमला में 1883 में डाकघर खुल गया था, दिल्ली में 1885 में खुला, कश्मीरी गेट से लाल किले के रास्ते में बना ये दो मंजिला डाकघर अभी भी काम करता है।
टेलीग्राफ दफ्तरों के बीच टेलीटाइप सुविधा
1929 में नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के टेलीग्राफ दफ्तरों के बीच टेलीटाइप सुविधा शुरू हुई, इसके फौरन बाद दिल्ली-आगरा के बीच टेलीप्रिंटर सुविधा शुरू हुई। ई-मेल-वाट्स एप युग की पीढ़ी जानकर हैरान रह जाएगी कि दिल्ली का टेलीग्राफ आफिस एक जमाने में साल भर में ढाई करोड़ टेलीग्राम को संभालता था। अक्सर आंदोलनकारियों के निशाने पर डाकघर आ जाते थे, भारत छोड़ो आंदोलन में 1942 में पहाड़गंज का डाकघर तोड़ दिया गया था, सब्जी मंडी के पास के डाकघर में आग लगा दी गई थी।
उससे पहले 1935 में नई दिल्ली पोस्ट आफिस में एक बम फेंक दिया गया था। वजह भी थी, रेल हो या डाक, जितना इन सेवाओं ने भारतीयों का जीवन सुगम बनाया, उतना ही ये अंग्रेजी राज को कायम रखने का हथियार बनीं। अगर दिल्ली से वो दो अंग्रेज कर्मचारी लाहौर और बाकी जगह टेलीग्राम ना भेजते, तो 1857 में दिल्ली पर अंग्रेजों का दोबारा कब्जा नहीं हो पाता। वो दो बड़े सिग्नलर थे बेंडिश और पिल्किंगटन।
सबसे पुराना टेलीग्राम
तारीख थी 11 मई, 1857 का, जिसमें मेरठ से आए सिपाहियों के आने की सूचना के अलावा ये भी था कि कैसे वो यूरोपियंस को मारकर उनके बंगले जला रहे हैं। लाहौर के ज्यूडिशल कमिश्नर मोंटगोमरी ने कहा था, ‘इलेक्टिक टेलीग्राफ ने भारत को बचा लिया’, दरअसल वो भारत की नहीं भारत में अपनी सत्ता की बात कर रहा था।
जब दिल्ली में पहली बार लगा था पार्सल पर टैक्स
ज्याफ्री रोथे क्लार्क ‘द पोस्ट आफिस आफ इंडिया एंड इट्स स्टोरी’ में दिल्ली में डाक पार्सल्स को लेकर एक दिलचस्प जानकारी मिलती है कि चिट्ठियों या पार्सल पर कोई टैक्स नहीं लगता था, लेकिन दिल्ली की नगर पालिका ने डाकघरों से पार्सल पाने-भेजने वालों की सूची लेकर उन पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया, देखादेखी बाकी शहरों में भी ये शुरू हो गया था। जांच में पता चला कि ढेर सारे लोग डाकघरों के जरिए व्यापारिक सामान भेजकर टैक्स चोरी कर रहे थे।