बंद कमरे में एक की मौत दूसरा था जिंदा, आरुषि की तरह यह मर्डर मिस्ट्री भी करती है हैरान
दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हुआ सार्थक हत्याकांड भी नोएडा के आरुषि तलवार मर्डर जैसा है और इन दोनों हत्याकांड में काफी समानताएं हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मई, 2008 में देश-दुनिया को हिला देने वाले आरुषि मर्डर मिस्ट्री 11 साल बाद भी अनसुलझी है। बेशक आरुषि-हमेराज मर्डर देश के सबसे बड़े अनसुलझे मामलों में से है, लेकिन एनसीआर का ये ऐसा पहला मामला नहीं है। दिल्ली-नोएडा से सटे गाजियाबाद में सार्थक हत्याकांड को भी पूरे 10 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी यह अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा है। 120 महीने बाद भी सार्थक हत्याकांड में पुलिस वहीं खड़ी है, जहां वह घटना वाले दिन यानी 5 फरवरी 2009 को खड़ी थी, जब घर में मासूम सार्थक मृत मिला था, जबकि शव के पास घायल अवस्था में उसकी मां दीप्ति पड़ी थी। गाजियाबाद ही नहीं, देश की कुछ चुनिंदा मर्डर मिस्ट्री में शुमार हो चुके सार्थक हत्याकांड को इसी साल 5 फरवरी को 10 वर्ष हो गए। इसके बाद आज भी एक सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिरकार साढ़े चार वर्ष के मासूम का हत्यारा कौन है? इस मामले में जब भी पुलिस अफसरों से पूछा जाता है तो उनका रटारटाया जवाब होता है कि- सार्थक का हत्यारा एक न दिन गिरफ्त में होगा। लेकिन कब? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
जानिए क्या हुआ था उस दिन
घटनाक्रम के मुताबिक, 5 फरवरी, 2009 को राजनगर सेक्टर-8 के अपार्टमेंट के फर्स्ट फ्लोर पर रहने वाले डॉक्टर राजेश चावला रोजाना की तरह ही शाम तकरीबन 4 बजे मुकंदनगर स्थित अपने क्लीनिक के लिए निकले थे। इसके बाद वह मरीजों को देखने में व्यस्त हो गए। करीब 6 बजे घर पहुंची घरेलू सहायिका ने उनके फ्लैट का दरवाजा खटखटाया। इस बीच अंदर से किसी की आवाज न आने पर अनहोनी के डर से उसने गेट पर तैनात गार्ड को इस बात की जानकारी दी। इस पर गार्ड ओमबीर ने खिड़की से अंदर झांका तो अंदर कमरे में डॉक्टर राजेश की पत्नी डॉ. दीप्ति चावला खून से लथपथ पड़ी थी और पास ही उनका बेटा सार्थक बुरी तरह घायल पड़ा था। गार्ड ने ही डॉक्टर राजेश को इस घटना की जानकारी दी। फिर पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंची और कमरे का लॉक तोड़कर घर पहुंची। अंदर कमरे में सार्थक का सिर कुचला हुआ था। उसके पास ही चाकू, हथौड़ा, पेचकस समेत कई अन्य सामान बिखरा पड़ा था। वहीं, पास ही बेहोश पड़ी डॉक्टर दीप्ति के भी दोनों हाथों की नसें कटी थीं और शरीर के कई हिस्सों में चोट के गंभीर निशान थे। इतना ही नहीं, दीप्ति के शरीर के 18 हिस्सों में चोट के गंभीर निशान थे, जो चाकू के वार लग रहे थे। पुलिस ने दीप्ति को हॉस्पिटल पहुंचाया और सार्थक के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। इस बीच डॉक्टर राजेश भी घर पहुंच गए।
आरुषि मर्डर की तरह ही फ्लैट का लॉक खोलकर कमरे में दाखिल हुई पुलिस की भूमिका शुरू से अजीब रही। पुलिस टीम पहुंची तो, लेकिन फिंगर प्रिंट उठाने और अन्य तकनीकी जांच में चूक कर गए। तत्कालीन एसएसपी अखिल कुमार और एसपी सिटी अनंतदेव ने दावा किया था कि दीप्ति इस केस की मुख्य गवाह हैं और उनके बयान से केस खुल जाएगा। दीप्ति 8 फरवरी को होश में आई और पुलिस ने उनके बयान भी लिए।
अजीब था डॉक्टर दीप्ति का बयान
तत्कालीन पुलिस अधिकारियों की मानें तो दीप्ति ने बताया था कि एक काला साया सा आया था, जिसने उसके बेटे को मारा और उसी ने उसे भी घायल किया। काफी समय तक जांच सार्थक की मां दीप्ति के इर्दगिर्द घूमती रही, लेकिन अब 10 साल बाद भी जांच बेनतीजा है। यहां पर बता दें कि दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हुआ सार्थक हत्याकांड भी आरुषि जैसा है और इन दोनों हत्याकांड में काफी समानताएं हैं। लेकिन दोनों ही मामलों में पुलिस अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
जानें आरुषि-सार्थक हत्याकांड में समानताएं
- दोनों हत्याकांड उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं।
- दोनों ही मामलों में पिता का नाम राजेश है। जहां आरुषि के पिता का नाम राजेश तलवार है तो वहीं, सार्थक के पिता का नाम राजेश चावला है।
- सबसे बड़ी बात कि दोनों के माता-पिता पेश से डॉक्टर हैं।
- सार्थक और आरुषि हत्याकांड में खुलासा बर्तन धोने वाली घरेलू सहायिकाओं के आने के बाद हुआ।
- दोनों ही मामलों में दो लोगों की हत्या की कोशिश हुई। पहले मामले में आरुषि और हेमराज को मारा गया, जबकि सार्थक हत्याकांड में सार्थक की मौत हो गई, वहीं मां दीप्ति जिंदा हैं।
- सार्थक और आरुषि दोनों में जांच एजेंसियों ने फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर डेड एंड की बात कही।
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