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Real Lal Qila History: मुगल सम्राट शाहजहां ने नहीं बनवाया था दिल्ली का पहला लालकिला

Real Lal Qila History दिल्ली में इससे पहले भी एक लालकिला था जिसे महान तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) ने बनवाया था। यह जानकर लोगों की हैरानी होगी कि यह लाल किला शाहजहां के लालकिला से करीब 600 साल पहले बना था।

By Jp YadavEdited By: Published: Thu, 26 May 2022 08:27 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2022 08:43 AM (IST)
Real Lal Qila History: मुगल सम्राट शाहजहां ने नहीं बनवाया था दिल्ली का पहला लालकिला
Real Lal Qila History: दिल्ली में शाहजहां के लालकिला से पहले भी था एक लालकिला

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। अगर आप से पूछें कि लालकिला कहां है? तो आप का जवाब शायद यही होगा कि लालकिला चांदनी चौक के सामने बना है, जिसे शाहजहां ने 1648 में बनवाया था, अगर ऐसा सोच रहे हैं तो आपका यह जवाब बिल्कुल गलत है। दरअसल, दिल्ली में इससे पहले भी एक लालकिला था जो शाहजहां के लालकिला से करीब 600 साल पहले बना था। इसका नाम था लालकोट, लेकिन इसे लालकिला के नाम से जाना जाता था।

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कालांतर में यह लालकिला ढह गया या ढहा दिया गया, मगर इस किला की दीवारें अभी भी दक्षिणी दिल्ली में कई स्थानों पर मिलती हैं। इसे तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) ने बनवाया था और यहीं से अपना शासन चलाया था। इन्हें संरक्षित किए जाने की मांग उठ रही है। जिस तरह से केंद्र सरकार सक्रिय हुई है इससे माना जा रहा है कि जल्द ही अनंगताल और इन राजा द्वारा बनवाए गए इस किला की दीवारों को संरक्षित किया जा सकेगा।

कहां है यह लालकिला या लालकोट

संजय वन के भीतर आज एक दीवार बची है जिसे लालकिला या लालकोट की दीवार कहा जाता है, यह दिल्ली को सुरक्षित रखने के लिए पहली बार किलेबंदी का भी सबूत देती है। हालांकि इसे देखने के लिए संजय वन के बीच से होकर जाया जा सकता है क्योंकि दीवार का बहुत थोडा सा हिस्सा अब देखने को मिलता है। इसके अलावा साकेत मेट्रो स्टेशन के पास भी किला राय पिथौरा के साथ इस लालकिला की दीवारों के हिस्से मिलते हैं। कहा जाता है कि विग्रहराज चौहान ने तोमरों को हराकर लालकोट के किले पर कब्जा किया और पृथ्वीराज चौहान गद्दी पर बैठे तो उन्होंने किला राय पिथौरा बनवाते समय लालकोट को अपनी परिधि में ले लिया था।

कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी लालकोट का किला रहा

कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी लालकोट का किला रहा है। कभी इस किले में प्रवेश के लिए चार दरवाजे थे। पश्चिमी द्वार का नाम रंजीत द्वार था जिसे बाद में गजनी द्वार कहा जाने लगा। प्रख्यात पुरातत्वविद डा बी आर मणि कहते हैं कि विजय के बाद मुस्लिम सेना ने इसी रंजीत द्वार से नगर में प्रवेश किया था। हालांकि अब इस दरवाजे के मात्र अवशेष ही बचे हैं। वह कहते हैं कि अनंगपाल तोमर द्वितीय के नगर का जिक्र पृथ्वीराज रासौ में भी मिलता है।

पृथ्वीराज रासौ में चंदबरदाई ने इसे खूबसूरत किले, झीलों, मंदिरों का नगर कहा है जहां कि प्रजा बहुत खुशहाल थी। वह कहते हैं कि उन्होंने इन्हीं सब बातों को देखते हुए 1992 में संजय वन में खोदाई शुरू कराई थी, मकसद यही था कि इसकी सच्चाई से परदा उठाया जा सके। जिसमें इस किला की दीवारें, दरवाजे और अनंगपाल द्वारा बनवाए गए अनंगताल और महल के प्रमाण मिले हैं।

अनंगपाल के वंशज मथुरा के पास खुटैल में रहे तोमर राजा अनंगपाल पर शोध कर रहे संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन डी सी में रह रहे अजय सिंह कहते हैं कि तोमर वंश 736 ईसवी में शुरू हुआ, अनंगपाल इस वंश के 16 वें राजा थे, लालकोट या लालकिला को उन्होंने 1051 में बनवाने का काम शुरू किया था।

1081 में उनका निधन हो गया। उनके आठ पुत्र थे जो बाद में मथुरा के पास खुटैल में अलग अलग किला बनाकर जा बसे।उन किलों के टीले आज भी वहां मौजूद हैं। खुटैल वंश अपनी आराध्य कुल देवी मंशा देवी की पूजा करता चला आ रहा है। देवी के मंदिर के द्वार पर आज भी राजा अनंगपाल की प्रतिमा लगी है।जिसमें वह देवी के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण के चेयरमैन तरुण विजय ने अनंगताल और इस लालकिला की बची हुई दीवारों को संरक्षित करने को संरक्षित किए जाने की मांग की है।

वह कहते हैं कि यह दुर्भाग्य है कि जिन राजा अनंगपाल ने इस शहर को नाम दिया और बसाया, इन प्रतापी राजा को दिल्ली वालों ने भुला दिया। उनका कहना है कि हिंदू राजा द्वारा बसाई गई दिल्ली को दोबारा लोगों के जेहन में जिंदा करना है। अनंगताल और लालकोट या लालकिला की दीवार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर पर्यटन स्थलों में शामिल करने की कोशिश की जा रही है।


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