इस जवान ने 11 आतंकियों को ढेर कर लिया शहादत का बदला, बचाई थी अमरनाथ यात्रियों की जान
हवलदार जितेंद्र सिंह ने अपने सैन्य जीवनकाल में कई बार बहादुरी का परिचय दिया। कश्मीर घाटी से लेकर असम के उग्रवादी क्षेत्रों में दुश्मनों से लोहा लिया और उन्हें धूल चटाई।
नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। हवलदार जितेंद्र सिंह ने अपने सैन्य जीवनकाल में कई बार बहादुरी का परिचय दिया। कश्मीर घाटी से लेकर असम के उग्रवादी क्षेत्रों में दुश्मनों से लोहा लिया और उन्हें धूल चटाई। कश्मीर में 18-जाट रेजिमेंट अपनी शुरुआती पोस्टिंग के दौरान ही उन्होंने चार आतंकियों को ढेर कर दिया। अमरनाथ यात्रियों की जान बचाते हुए जब उन्होंने अपनी बहादुरी दिखाई तो सेना के अधिकारी भी उनकी वीरता के कायल हो गए। जितेंद्र ने जब से होश संभाला पिता और चाचा से सेना में उनकी वीरता की कहानियां सुनी।
यही वजह थी कि उन्हें उनके नक्शेकदम पर आगे बढ़ने में जरा भी देर नहीं लगाई। देश के लिए कुछ कर गुजरने का उनका यह हौसला ही था कि कई बार मौत का सामना करने के बाद भी वे डिगे नहीं और शत्रुओं को परास्त किया।
11 आतंकियों को किया किया ढेर
जितेंद्र सिंह बताते हैं कि वर्ष 2003 में जम्मू-कश्मीर के एलओसी के नजदीक बसे गांव झांगड़ में चार आतंकियों को मार गिराया। 2005 में उन्हें अमरनाथ क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भेजा गया। जब टुकड़ी लौट रही थी तब आतंकियों ने उनके काफिले को अवंतीपुरा बाजार में हमला बोल दिया। हमले में पांच जवान शहीद हो गए। हमने इस हमले का बदला लेने के लिए योजना बनाई। सिपाहियों की टुकड़ी के साथ सर्च अभियान चलाया गया।
इस हमले में 11 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया और अपने शहीदों की शहादत का बदला लिया। सेना ने इस वीरता के लिए सभी सैनिकों की सराहना की। उनके साहसिक कार्रवाई की वजह से उन्हें चार बार विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया, जिसके तहत छह महीने के लिए वर्ष 2015 में दक्षिण अफ्रीका भेजा गया। इसके बाद बटालियन ने उन्हें एमएमजी, मोटर मशीनगन पोस्ट की कमान सौंपी।
मौत से हुए थे रू-ब-रू, बैरल ने बचाई जान
वर्ष 2001 के दिसंबर में कड़ी मेहनत और प्रशिक्षण के बाद उन्हें 18-जाट रेजिमेंट से शुरुआत करने के तुरंत बाद जितेंद्र ने कश्मीर में आतंकियों को ढेर कर अपनी बहादुरी दिखाई। इसके बाद वे रुके नहीं। उन्हें वर्ष 2014 कश्मीर घाटी के नौगांव की सुरक्षा में तैनात किया गया। वहां उन्होंने रात में गश्त के दौरान आतंकवादियों के ठिकाने ढूंढ़कर कर उन्हें ध्वस्त किया। सर्च अभियान चलाने के दौरान मिली इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाया।
सियाचिन बार्डर पर 19 मई, 2016 को जब दुश्मनों ने फायरिंग की तो उनके सीधे निशाने पर जितेंद्र थे, लेकिन बंदूक के बैरल से गोलियां टकराने की वजह से उनकी जान बच गई। उस दौरान उन्होंने काउंटर फायरिंग में तीन आतंकियों को मार गिराया। हाड़ कंपाने वाली ठंड में 30 अगस्त को तीन घुसपैठियों ने फायर किया। इसमें उनके एक साथी शहीद हो गए। जवाबी हमले में दो आतंकियों को मार गिराया। एक आतंकी भागने लगा। हर तरफ बर्फ की चादर थी, लेकिन जितेंद्र ने ठंड की परवाह न करते हुए जैकेट के बगैर ही उसका पीछा किया और सुबह होने से पहले उसे ढूंड़कर मार गिराया। इस साहसिक कार्रवाई के लिए सेना के उच्चाधिकारियों ने उनकी खूब प्रशंसा की।
उग्रवादियों से भी लिया लोहा
वर्ष 2011-12 में असम में पोस्टिंग के दौरान जितेंद्र ने पांच उग्रवादियों को मार गिराया। 2014 में पो¨स्टग नौगांक बार्डर पर हुई, जहां बटालियन टैंकिंग होम का हिस्सा बना। इसके तहत उन्हें उग्रवादियों को ट्रैक करने और उनके ठिकाने ढूंढ़कर उसे ध्वस्त करने की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 2016 के अगस्त में उग्रवादियों का साथियों पर हमला हुआ और उन्होंने तीन को मार गिराया। 2018 में हवलदार के पद से सेवानिवृत्त हुए जितेंद्र सिंह अपने 16 वर्ष के सैन्य सेवा में कई बार दुश्मनों के दांत खट्टे किए और उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर किया।
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