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कभी यहां नादिर शाह ने कराया था कत्ल-ए-आम, अब गली-कूचों में एक साथ रहते हैं 'राम-रहीम'

गुरुद्वारे से सटी सुनहरी मस्जिद भी है, जहां बैठकर

By JP YadavEdited By: Published: Sun, 25 Feb 2018 02:29 PM (IST)Updated: Mon, 26 Feb 2018 08:02 AM (IST)
कभी यहां नादिर शाह ने कराया था कत्ल-ए-आम, अब गली-कूचों में एक साथ रहते हैं 'राम-रहीम'

नई दिल्ली (नेमिष हेमंत)। काशी की गलियों की तरह चांदनी चौक की गलियों और कूचों में जगह-जगह मंदिर मिल जाते हैं। सर्वमान्य देवी-देवता के साथ वहां के लोगों के कुल देवता। मुगलकालीन चांदनी चौक में दूसरे राज्यों से लोग आए तो अपने साथ आराध्य भी लाए और यहां प्राण प्रतिष्ठा कर उनकी पूजा अर्चना शुरू की। बाद में मुगल और अंग्रेज भी आए। उनके पहले और बाद में हिंदू धर्म से और भी पंथ-संप्रदाय निकले।

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सभी को चांदनी चौक ने पूरी आस्था के अपने दिल में जगह दी, इसलिए भी चांदनी चौक को गंगा-यमुना तहजीब का जीता-जागता सशक्त हस्ताक्षर कहा जाता है। यहां मीनार से लेकर गुंबद और शिखर जैसे आपस मे बातें कर रहे हैं।

लालकिला मेट्रो स्टेशन से बाहर ही लाल मंदिर और उसके ठीक सामने पगला बाबा का मंदिर श्रद्धा का भाव पैदा करते हैं। लाल मंदिर पूरी तरह लाल रंग ओढ़े हुए हैं। जैन धर्म के साथ दूसरे धर्म के लोग भी इसमें पूरी आस्था रखते हैं। आगे बढ़ने पर भव्य गौरीशंकर मंदिर के शिखर से फहराता पताका आस्था और शौर्य का प्रतीक है।

इसका निर्माण मराठा सैनिक ने कोई 800 साल पहले कराया था। इसके बाद चांदनी चौक की धार्मिक पहचान का अगला ठिकाना शीशगंज गुरुद्वारा आता है। सोने की परत लिए इसके गुंबद और विशाल दरवाजे और संगमरमर की सीढ़ियां और गलियां इसकी भव्यता बताते है। थोड़ी प्यास का एहसास होता है तो गुरुद्वारे के प्याऊ की ओर रुख करता हूं।

पानी पिलाने में यह श्रद्धा का भाव सिख धर्म में सेवा के भाव से परिचित कराता है। मुख्य द्वार से बगल में लोग जूते उतार रहे हैं। उनमें पहचान मुश्किल है कि कौन हिंदू है कौन सिख। औरंगजेब ने यहां गुरु तेगबहादुर को मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि उन्होंने इस्लाम धर्म नहीं ग्रहण किया था। दशकों बाद, गुरु तेग बहादुर के अनुयायी बाबा बघेल सिंह ने इस जगह को ढूंढ़ निकाला और भव्य गुरुद्वारे का निर्माण करवाया।

इसी से सटी सुनहरी मस्जिद भी है, जहां बैठकर नादिर शाह ने कत्लेआम कराया था। इसके सुनहरे गुंबद के तले बैठकर लोग नमाज अदा करते हैं। आगे बढ़ने पर सड़क के दाहिने ओर बापिस्ट चर्च है।

यहां सुबह-शाम प्रार्थना होती है। सीधी सड़क जहां खत्म होती है, सामने फतेहपुरी मस्जिद का बड़ा दरवाजा। चांदनी चौक का यह दर्शन कर मन सवाल करता है कि लोग धर्म के नाम पर लड़ते क्यों है। इस सवाल के साथ मैं अपने मंजिल की ओर निकल लेता हूं।


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