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Kids Film Festival 2020: स्टोरीटेलिंग का है हुनर, तो फिल्ममेकिंग से बच्चे बढ़ा सकते हैं क्रिएटिविटी

फिल्ममेकिंग एक ऐसी कला है जो कोविड के इस कठिन समय में आपको घर में भी व्यस्त रख सकती है। आपको अपनी बात कहने की खुशी दे सकती है। अपने नए इनोवेटिव आइडियाज को आप विजुअल स्टोरी के जरिए दिखा सकते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 01:40 PM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 01:40 PM (IST)
Kids Film Festival 2020: स्टोरीटेलिंग का है हुनर, तो फिल्ममेकिंग से बच्चे बढ़ा सकते हैं क्रिएटिविटी
अपने नए इनोवेटिव आइडियाज को आप विजुअल स्टोरी के जरिए दिखा सकते हैं। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, यशा माथुर। फिल्ममेकिंग एक ऐसी कला है जो कोविड के इस कठिन समय में आपको घर में भी व्यस्त रख सकती है। आपको अपनी बात कहने की खुशी दे सकती है। अपने नए इनोवेटिव आइडियाज को आप विजुअल स्टोरी के जरिए दिखा सकते हैं। बस आपको तय करना है कि मुझे बनानी है एक बढिय़ा फिल्म ...

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आप बच्चे आसानी से शॉर्ट फिल्म बना सकते हैं और अपने खाली समय का सदुपयोग कर सकते हैं। स्मार्ट फोन में शूट और एडिट की सुविधा मिल जाएगी। लोकेशन घर की बालकनी या लॉन भी हो सकता है। क्रिएटिविटी आप बच्चों की होगी। स्क्रिप्ट पर काम कीजिए, कहानी कहिए और उसे शूट करने की योजना बनाइए। मदद के सभी टूल्स इंटरनेट पर मिलेंगे। हाल ही में किड्स सिनेमा 2020 का ऑनलाइन आयोजन किया गया था। इस अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में बच्चों ने कुछ मिनटों की फिल्मों में ही अपनी रचनात्मकता को साबित कर दिया।

बस चिंगारी चाहिए

दोस्तो, फिल्ममेकिंग आपके व्यक्तित्व को निखारती है। कई क्वालिटीज बढ़ा देती है। फिल्ममेकर मधु चोपड़ा कहती हैं, 'अभी बच्चे घर में हैं अगर वे कुछ देर वीडियो गेम खेलते हैं तो उनके माइंड और फिंगर्स का कॉर्डिनेशन बनता है। माइंड शार्प होता है। यही हाथ जब कैमरा हैंडल करेंगे तो ज्यादा अच्छी तरह से करेंगे। दिमाग तैयार हो रहे हैं। इन बच्चों को चिंगारी चाहिए। अगर घर में उन्हें दो घंटे विश्व सिनेमा देखने के लिए कहा जाए तो वे दुनिया की संस्कृति से वाकिफ होंगे। उनका दिमाग खुल जाएगा। इस समय हम बच्चों के दिमाग को आकार दे रहे हैं और इसके लिए फिल्म मेकिंग की कला बहुत ही अच्छी चीज है।'

फिल्ममेकिंग में ही बनाना है करियर

ऐसा नहीं है कि फिल्ममेकिंग के क्षेत्र में कम बच्चे अपनी क्रिएटिविटी दिखा रहे हैं। किड्ससिनेमा 2020 में 87 देशों की 1101 एंट्रीज आई थीं। इनमें हाल ही में बारहवीं की परीक्षा पास करने वाले अरण्य सेन ने पांच मिनट की 'माई नेबर्स विंडो' फिल्म बनाई थी। जिसमें घर में एक अकेला बच्चा एक खिड़की के सामने बैठ कर बातें करता रहता है और लगता है जैसे वह पड़ोसी से बात कर रहा है लेकिन आखिर में पता चलता है कि वह खिड़की तो बंद रहती है। अकेलेपन को हैंडल करने की इस फिल्म की कहानी अरण्य की ही है। वे कहते हैं, 'हाल ही में स्क्रिप्ट राइटिंग सीखी और इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी। बारहवीं के बाद अब मैं कई फिल्म स्कूल्स में एप्लाई कर रहा हूं। मुझे इसी में अपना करियर बनाना है। मेरी फिल्म को किड्स सेक्शन में अवार्ड मिला।'

बच्चोंं की फिल्में बांधती हैं

दोस्तो, आप इंटरनेट मीडिया पर कई कार्यशालाओं में भाग लेकर फिल्ममेकिंग और इससे जुड़ी कई कलाएं सीख सकते हैं। अगर इस तरह के फेस्टिवल्स को देखेंगे तो आपको काफी कुछ सीखने को मिलेगा। इसमें भी एनीमेशन फिल्मों, स्मार्टफोन से फिल्में बनाने की जानकारी दी गई। 'तारे जमीं परÓ फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर और स्क्रीन राइटर अमोल गुप्ते ने मास्टर क्लास ली थी। 'मिस्टर इंडिया' के 'कैलेंडर' किरदार के बारे में तो आपने सुना ही होगा। इसे निभाने वाले सतीश कौशिक कहते हैं कि बच्चों की दस-बारह मिनट की फिल्म ही बांध देती है और कुछ नया देकर जाती है।

छोटी कहानी और कम किरदार

अब आपको करना क्या है? यह प्रश्न मन में उठ रहा होगा। तो एक छोटी और चुस्त कहानी लिख डालिए। कम किरदार हों, और लोकेशन घर की ही किसी खूबसूरत जगह को बना लें। इसके बाद आपको सीन-दर-सीन स्क्रिप्ट लिखनी होगी। अपने स्मार्टफोन से शूट करिए एक सीन को कई एंगल से। एडिटिंग के लिए कई एप मिल जाएंगी। फिर बारी आती है संगीत देने की। कुछ तकनीकी कार्य आप इंटरनेट पर आसानी से सीख सकते हैं। थोड़ी सी मेहनत और आपकी फिल्म तैयार। मजा भी बहुत आएगा और कठिन समय भी निकल जाएगा। 

कैमरे से नहीं डरते बच्चे

बच्चे तो गीली मिट्टी की तरह होते हैं इन्हें हम जिस तरह से ढालना चाहें ढाल सकते हैं। इनकी परफॉर्मेंस और इंटेलिजेंस बढ़ती ही जा रही है। यह कैमरे के सामने निर्भीक हैं। फेस्टिवल की जूरी सदस्य होने के नाते मैंने कई फिल्में देखीं। फिल्में बहुत ही अच्छी थीं लेकिन अभी हमें इन्हें और सपोर्ट करना है। अभी बच्चे जिस रास्ते पर हैं वह सही है लेकिन इन्हें पूरे मुकाम तक पहुंचाना है। इन्हें प्रोत्साहित करना है।

मधु चोपड़ा, जूरी सदस्य। 

कल्पना को मिलेंगे पंख

आजकल फिल्ममेकिंग कोई मुश्किल काम तो रहा नहीं है। गूगल, यू-ट्यूब है मदद के लिए। मेरी बिटिया आठ साल की है लेकिन शूट कर लेती है। आजकल के बच्चों में प्रतिभा है। वे अंतरराष्ट्रीय सिनेमा देखते हैं। उनके विजुअल्स और लाइटिंग को समझते हैं। फिल्म मेकिंग से बच्चों को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी मिलती है। अगर स्कूल में यह विषय हो तो कोई फिल्ममेकर बने या न बने लेकिन उनकी सोच व क्षमता बढ़ेगी। उन्हें विजुअल मीडियम का पावर मिलेगा। कल्पना को पंख मिलेंगे। बच्चे जब विश्व सिनेमा उदेखते हैं तो उन्हें उन देशों की संस्कृति, परंपरा, संगीत का पता चलता है। यह शिक्षा बहुत अच्छी है।

सतीश कौशिक, वरिष्ठ एक्टर 

शुरू से ही एनीमेशन सीखें

बच्चों में यह जिज्ञासा होती है कि एनीमेशन बनते कैसे है? उनके प्यारे किरदार कैसे एक्ट करते हैं? बच्चे एनीमेशन को ज्यादा पसंद करते हैं। एनीमेशन में ड्रॉइंग, पेंटिंग, एक्टिंग स्किल लगती है लेकिन बच्चे शुरू से ही इसे सिखना आरंभ दें तो बेहतर करियर बना सकते हैं। हम कुछ ऐसे एनीमेशन शोज बनाने जा रहे हैं जिनमें लड़कियां सुपर हीरो होंगी। जब बच्चे फिल्म बनाते हैं तो काफी यूनीक आइडिया लेकर आते हैं। स्टोरीटेलिंग उनकी जिंदगी में काफी प्रभाव लाती है।

आशीष कुलकर्णी, एनीमेशन शोमेकर, अध्‍यक्ष,एवीजीसी,फिक्‍की 

हम यह प्रयोग कर सकते हैं

मैं तेरह साल की उम्र से फिल्में बना रहा हूं और यू-ट्यूब पर अपलोड करता रहा हूं। मैंने एक फोन से फिल्म बनाना शुरू किया था। कोविड के इस दौर में प्रयोग के तौर पर बच्चे घर में रह कर फिल्म बना सकते हैं। फिल्म अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम है और अभी कोविड के टाइम पर बच्चे फिल्ममेकिंग कर सकते हैं। आजकल इसके लिए कोई बड़े उपकरण भी नहीं चाहिए। अगर एक बच्चा अच्छा स्टोरी टेलर है तो वह अच्छा फिल्ममेकर भी बनेगा।

अरण्य सेन, किशोर फिल्ममेकर

फिल्में एक-दूसरे को जोड़ती हैं

बच्चों में बहुत ऊर्जा होती है। लॉकडाउन और कोविड में वे परेशान हो गए तो उनको कुछ नया देने के लिए हमने ऑनलाइन किड्स फेस्टिवल 2020 किया। हमारी थीम यह थी कि हम दूर रह कर भी साथ कैसे हों? फिल्में एक-दूसरे को जोड़ती हैं। इस फेस्टिवल में छह साल से लेकर बीस साल तक के बच्चों की करीब 150 फिल्में आई थीं। इजराइल, ब्रिटेन, यूक्रेन से फिल्में आई थीं।

इन बच्चें ने कहानी लिखी, वीडियोग्राफी की। दो मिनट से लेकर डेढ़ घंटे तक की थीं। मोबाइल से बच्चे अच्छी शॉर्ट फिल्म बना लेते हैं। बहुत से स्कूल भी फिल्ममेकिंग को बढ़ावा दे रहे हैंं। हम इस फेस्टिवल को आगे लेकर जाऐंगे। इसमें बच्चों के लिए डायरेक्टर बनने, स्मार्टफोन से फिल्में बनाने जैसी वर्कशॉप्स में बच्चों ने बहुत रूचि ली।

प्रवीण नागदा, किड्ससिनेमा फेस्टिवल डायरेक्टर 

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