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AIIMS में किडनी प्रत्यारोपण के लिए लाइन में लगे 575 मरीजों की बढ़ी मुश्किलें

एम्स में 575 मरीज किडनी प्रत्यारोपण के इंतजार में हैं लेकिन नेफ्रोलॉजी विभाग में बेड की कमी के चलते करीब एक माह से यह सुविधा बंद है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 10:49 AM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 10:49 AM (IST)
AIIMS में किडनी प्रत्यारोपण के लिए लाइन में लगे 575 मरीजों की बढ़ी मुश्किलें
AIIMS में किडनी प्रत्यारोपण के लिए लाइन में लगे 575 मरीजों की बढ़ी मुश्किलें

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। एम्स में 575 मरीज किडनी प्रत्यारोपण के इंतजार में हैं, लेकिन नेफ्रोलॉजी विभाग में बेड की कमी के चलते करीब एक माह से यह सुविधा बंद है। इस वजह से किडनी की बीमारी से पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस माह अभी तक एक भी व्यस्क का प्रत्यारोपण नहीं हुआ है।

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संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टर ने कहा कि समान्य तौर पर हर सप्ताह दो से तीन मरीजों का किडनी प्रत्यारोपण किया जाता है। वहीं हर माह 10 से से 12 मरीजों की सर्जरी होती है। जनरल सर्जरी विभाग के डॉक्टर किडनी प्रत्यारोपण करते हैं लेकिन प्रत्यारोपण से पहले और बाद में मरीज की देखभाल नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टर करते हैं। इस वजह से नेफ्रोलॉजी विभाग की भूमिका अहम होती है।

विभाग में लाइव डोनर किडनी प्रत्यारोपण के लिए 125 मरीज व कैडेवर डोनर प्रत्यारोपण के लिए 450 मरीज इंतजार में हैं। इन मरीजों को नियमित डायलिसिस करना पड़ता है। इस वजह से कई मरीजों की हालत गंभीर है। 10 मरीजों की जिंदगी तो खतरे में बताई जा रही है। इस वजह से उन मरीजों के तीमारदारों ने एम्स प्रशासन से बेड उपलब्ध कराने की मांग की है।

फॉलोअप में हैं दो हजार मरीज

एम्स में वर्ष 1972 से लेकर अब तक 2,900 मरीजों का किडनी प्रत्यारोपण हो चुका है। नेफ्रोलॉजी विभाग के लगभग दो हजार मरीज फॉलोअप में है। विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि कई बार बेड बढ़ाने की मांग की गई, लेकिन बेड नहीं बढ़ाए जा रहे हैं। करीब 30 साल से नेफ्रोलॉजी व यूरोलॉजी के लिए अलग-अलग ब्लॉक के प्रस्ताव को एम्स प्रशासन ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। जबकि मरीजों का दबाव भी बढ़ गया है। विभाग के पास कुल 24 बेड हैं, जिसमें से सिर्फ चार बेड प्रत्यारोपण वाले मरीजों के लिए सुनिश्चित हैं।

हर साल 150 मरीजों का होता है प्रत्यारोपण 

एम्स में हर साल करीब 150 मरीजों का प्रत्यारोपण होता है। इनमें से 10 से 15 फीसद मरीजों में संक्रमण की आशंका रहती है। इस वजह से उन्हें भर्ती करने की जरूरत होती है। दिक्कत यह है कि दूसरे अस्पताल किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों को अंतिम स्टेज में एम्स स्थानांतरित करते हैं। ऐसे मरीजों को भी इमरजेंसी में भर्ती करना पड़ता है। अस्पताल की नीति है कि इमरजेंसी में भर्ती किडनी के मरीजों को 24 घंटे में वार्ड में भर्ती करना अनिवार्य है। इमरजेंसी में अक्सर सात-आठ मरीज वेटिंग में होते हैं। इस वजह से प्रत्यारोपण के लिए पंजीकृत मरीजों को भर्ती करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है।

मरीजों के दबाव के अनुसार, किडनी प्रत्यारोपण के मरीजों के लिए करीब 20 बेड की जरूरत है। यही नहीं संस्थान में 13 डायलिसिस मशीन हैं। दूसरे अस्पताल से स्थानांतरित कर इमरजेंसी में पहुंचे मरीजों की डायलिसिस में ही ज्यादातर मशीनें व्यस्त रहती हैं। इन सब वजहों से मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ जाता है। ऐसे में कुछ मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है। वहीं, आर्थिक रूप से कमजोर मरीज ज्यादा परेशान होते हैं।

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