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कुरान की आयतों को हटाने संबंधी विवाद में उतरा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

कुरान की आयतों को हटाने संबंधी विवाद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी उतरा है। साथ ही उसने कहा है कि इस मसले पर कोई निर्णय लेने का संवैधानिक अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं है। इसलिए इससे संबंधित याचिका वह खारिज कर दें।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 04:55 PM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 04:55 PM (IST)
कुरान की आयतों को हटाने संबंधी विवाद में उतरा जमीयत उलेमा-ए-हिंद
सुप्रीम कोर्ट को कुरानी आयतों के संबंध में निर्णय करने का संवैधानिक अधिकार नहीं, याचिका निरस्त कर दें।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कुरान की आयतों को हटाने संबंधी विवाद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी उतरा है। साथ ही उसने कहा है कि इस मसले पर कोई निर्णय लेने का संवैधानिक अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं है। इसलिए इससे संबंधित याचिका वह खारिज कर दें।

बता दें कि उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कुरान की 26 आयत को हिंसा बढ़ाने वाला बताते हुए इसे हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसपर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। हालांकि, इस मांग के चलते वसीम रिजवी को देशभर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनके गला काटकर मारने का ईनाम भी रख दिया है। देशभर में जगह-जगह उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन का दौर चल रहा है। उनके गिरफ्तारी के साथ उन्हें फांसी पर लटकाने तक की मांग हो रही है।

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इस संबंध में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी और महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने जारी संयुक्त बयान में कहा है कि देश के संविधान ने सभी धर्मों की मान्यताओं और दृष्टिकाेणों के सम्मान और हर एक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार दिया है।

पवित्र कुरान मुसलमानों के लिए मार्गदर्शक और श्रद्धा की सर्वश्रेष्ठ प्रथम किताब है और पूरा इस्लाम धर्म इसी पर स्थापित है। इसके बिना इस्लाम धर्म की कोई कल्पना नहीं है। इसलिए हम प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना करते हैं कि वह इस अर्जी को पहली सुनवाई में ख़ारिज (निरस्त) कर दें और इस फितने (विवाद) का समाधान करें।

बयान में कहा गया है कि इस उद्देश्य से प्रार्थनापत्र अदालत में दाखिल करना कि कुरान की आयतों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए, यह स्थाई फितना (विवाद) और स्वयं में जनहित के लिए अत्यधिक हानिकारक है जिससे देश की सुख शांति और व्यवस्था को भयंकर खतरा पैदा होगा। सुप्रीम कोर्ट को स्वयं अपने पिछले फैसलों के प्रकाश में पवित्र कुरान के संबंध में किसी तरह का फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है।
सभी संस्थाओं से अपील कुरान को विषय न बनाएं
बयान मेें देश की अप्न्य संस्थाओं से अपील भी की गई है कि वे कुरान पाक की सर्वश्रेष्ठता, महानता के दृष्टिगत अदालतों में इसे चर्चा का विषय बनाने का कोई स्वरूप न अपनाएं और अपने इस दृष्टिकोण पर दृढ़ता से स्थापित रहे कि सुप्रीम कोर्ट सहित किसी भी न्यायालय और भारतीय संविधान के अधिकार क्षेत्र से कुरान पाक और तमाम धार्मिक पवित्र किताबें बाहर हैं और भारतीय संविधान ने जो धर्म के संबंध में अदालतों के अधिकार क्षेत्र की सीमा निर्धारित की है वह इससे बिल्कुल भी हट नहीं सकते।

हमें अपनी तरफ से ऐसा कोई मार्ग नहीं चुनना चाहिए जिससे अदालतों के लिए गुंजाइश निकलती हो कि वह इन मामलात में जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं हस्तक्षेप कर सकें। जमीयत उलमा ए हिंद सभी धर्मों के प्रमुखों का ध्यान आकर्षित करती है कि इसे सिर्फ पवित्र कुरान मजीद पर हमला न समझा जाए बल्कि इस तरह से तमाम धर्मों के पवित्र किताबों पर हमले का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए आवश्यक है कि सभी धर्म वाले बिना किसी भेदभाव के, धर्म विरोधी तत्वों के विरुद्ध एकजुट हों और उनके इन कुत्सित इरादों को असफल बनाएं।


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