ITBP के सिपाही ने तबादला रुकवाने के लिए पत्नी को बताया बीमार, याचिका खारिज
पीठ ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को रिकार्ड पर लेते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिर्फ अपना तबादला रोकने के लिए याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि उसकी पत्नी प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित है और यह उसके नवजात बेटे के लिए खतरा है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। तबादले पर रोक लगाने की मांग को लेकर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के सिपाही द्वारा दायर की गई याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। सिपाही ने याचिका में कहा था कि उसकी पत्नी अवसाद से पीडि़त पत्नी है और उसके नवजात शिशु के लिए खतरा है, ऐसे में उसका स्थानांतरण रोका जाए। जबकि मेडिकल बोर्ड को याचिकाकर्ता की पत्नी ने बयान दिया था कि छोटा बच्चा होने के कारण वे अभी लद्दाख नहीं जाना चाहते।
न्यायमूर्ति जस्टिस मनमोहन और न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को रिकार्ड पर लेते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिर्फ अपना तबादला रोकने के लिए याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि उसकी पत्नी प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित है और यह उसके नवजात बेटे के लिए खतरा है। पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही उसके तबादले पर रोक लगाने संबंधी आंतरिक आदेश को भी रद कर दिया।
आइटीबीपी ने सिपाही का 37 बटालियन लेह-लद्दाख में तबादले का आदेश जारी किया था और उसे 17 फरवरी को वहां ज्वाइन करना था। पीठ ने इसके साथ ही याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि एक सप्ताह के अंदर अपने स्थान पर ज्वाइन करे। साथ ही आइटीबीपी को स्वतंत्रता दी कि अगर याची एक सप्ताह के अंदर लद्दाख में ज्वाइन नहीं करता तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने को स्वतंत्र है। याचिकाकर्ता ने आटीबीपी के आठ अक्टूबर 2018 के तबादले को चुनौती दी थी।
उसने दलील दी थी कि जनवरी 2020 को उसकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया था और इसके कुछ समय बाद ही प्रसवोत्तर अवसाद से ग्रस्त हो गई। इसके कारण बच्चे की देखरेख की जिम्मेदारी भी उसे ही उठानी पड़ती है। कोर्ट के आदेश पर आइटीबीपी ने मेडिकल बोर्ड गठित किया था और मेडिकल बोर्ड ने महिला का परीक्षण करने के बाद रिपोर्ट में कहा था कि वह ठीक है और वह अवसाद में नहीं है।