Women's Day 2021: नारी के आचरण के लिए केवल तीन शब्द पर्याप्त हैं: अद्भुत, अदम्य, अविस्मरणीय
Womens Day 2021 तो अपने जीवन में मैं नारी के उस स्वरूप को मां पुकारती हूं। किसी भी समय इसे स्पर्श कर सकती हूं और हमेशा इसकी छांव में रहती हूं। एक शब्द के जरिये नारी को आप अपने जीवन में सहेजिये और उसके अस्तित्व को नमन कीजिए।
प्रियम वर्मा। चींटी को देखा है। वह सरल, विरल और काली रेखा।
महाकवि सुमित्रनंदन पंत की एक कविता की ये पंक्तियां हमारे मन में ये विचार प्रस्फुटित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इनको हम किस भाव में अपने चित्त और मस्तिष्क में संग्रहित करना चाहते हैं। मेरे लिए यह उस संपूर्ण ब्रम्हांड के आधार के लिए उत्तरदायी उस शब्द की व्याख्या की दो पंक्तियां हैं जिसे हम स्त्री कहते हैं। न इस शब्द को बांध कर रखा जा सकता है और न ही इसकी व्याख्या की जा सकती है। बस इसके भाव को आत्मसात किया जा सकता है।
जिस तरह से प्रतीक किसी भी चीज का हो सकता है, परंतु प्रतीक का प्रतीक नहीं हो सकता है। उसी तरह स्त्री किसी भी स्वरूप में आपके जीवन में हो सकती है, परंतु वह स्त्री की नहीं उसके स्वरूप की परिभाषा होती है जो आपके मन और विचार में स्थान रखती है। काल चाहे प्राचीन हो या आधुनिक, बदलते मूल्यों के साथ स्त्री की परिभाषा भी अनेक प्रकार की बनती गई, पर वह पहले भी एकाकार थी और सदैव रहेगी। आज के इस काल में जब पितृसत्तात्मक सोच को ऊंचा समझकर इसका दंभ भरने वाले इस काबिल भी नहीं कि किसके दम पर वो यहां पहुंचे हैं, उनसे कुछ उम्मीद रखना बेमानी ही लगती है, परंतु असलियत में ये समझ है, ये जानते हुए कि महिला, पुरुष से किसी भी स्तर में पीछे नहीं है चाहे वो घर हो या समाज, हमें अपनी सोच की वो जड़ उखाड़ देनी होगी जो उनको कम समझती है। नारी के आचरण के लिए केवल तीन शब्द पर्याप्त हैं: अद्भुत, अदम्य, अविस्मरणीय।
वैसे तो नारी का महत्व शब्दों में समेटा नहीं जा सकता और इसके स्वरूपों का मुकम्मल चित्र एक दिन में उकेरा नहीं जा सकता। फिर भी एक प्रयास उस ऐतिहासिक समय के हवाले से करने जा रही हूं जिसके सामने स्त्री का शक्ति स्वरूप देखने को मिला। घर से लेकर अस्पताल, सड़कों से लेकर थाने तक उसका समर्पण सीना ताने खड़ा रहा।
बात कोरोना काल की, जब शक्ति के अनगिनत रूप सामने आए, ममता के कवच से कठिन दिन भी यादगार बिताए। आज के दिन उन सभी महिलाओं को एक शब्द नवाज कर उनके प्रयास के नाम आह्वान कीजिए जिन्होंने महामारी के दौर में पूरे परिवार का साहस टूटने नहीं दिया, किसी भी पल जीवटता को झुकने नहीं दिया। बच्चों की पढ़ाई को उतना ही समय दिया, वर्षो बाद पूरे समय के लिए घर पर रुके सदस्यों को सेवा का तोहफा दिया। वहीं अस्पतालों में नर्स तो डॉक्टर की भूमिका में रहीं, हर व्यक्ति को उतनी ही शिद्दत से ममता का आसरा दिया। साथ ही सड़कों पर वर्दी पहने समर्पण ने बिना अपनी चिंता किए उन्हें जिंदगी का सलीका दिया।