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एक चौथाई प्रोफेसरों के भरोसे मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान

अस्पताल के प्रोफेसरों के मुताबिक साल 1993 में बेंगलुरु के निमहंस (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य व तंत्रिका विज्ञान संस्थान) की तर्ज पर दिलशाद गार्डन में इहबास का गठन किया गया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 10:08 AM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 10:08 AM (IST)
एक चौथाई प्रोफेसरों के भरोसे मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान
एक चौथाई प्रोफेसरों के भरोसे मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) एक चौथाई प्रोफेसरों के भरोसे चल रहा है। पिछले दस सालों से यहां पदोन्नति की प्रक्रिया रुकी पड़ी है। इसकी वजह से अधिकतर प्रोफेसर दूसरे अस्पताल जा चुके हैं। फिलहाल, यहां सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, अतिरिक्त प्रोफेसर और प्रोफेसर के कुल 103 पद हैं। लेकिन, अभी 25 प्रोफेसर कार्यरत हैं। प्रोफेसर कम हुए तो कई विभागों में बेड भी घटा दिए गए। करीब पांच सौ बेड की क्षमता वाले इस अस्पताल में तीन सौ बेड हैं। लेकिन चालू हालत में दो सौ बेड ही हैं।

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अस्पताल के प्रोफेसरों के मुताबिक साल 1993 में बेंगलुरु के निमहंस (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य व तंत्रिका विज्ञान संस्थान) की तर्ज पर दिलशाद गार्डन में इहबास का गठन किया गया। उस समय पदोन्नति के नियम के मुताबिक सहायक प्रोफेसर से प्रोफेसर बनने में 15 साल लगते थे। दो पदोन्नति चार-चार साल में एक और आखिरी पदोन्नति सात साल में होती थी। लेकिन, 2009 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय ने पदोन्नति के नियमों में बदलाव कर दिया। इसे 2010 में निमहंस ने अपने यहां लागू किया। इसमें सहायक से प्रोफेसर का सफर दस साल में पूरा हो रहा था। दो पदोन्नति तीन-तीन साल और आखिरी पदोन्नति चार साल में तय थी। लेकिन, स्वायत्तशासी होने के बावजूद अस्पताल इसे अपने यहां अब तक लागू नहीं कर पाया। इसकी वजह से 2010 के बाद यहां किसी प्रोफेसर को पदोन्नति नहीं मिल पाई। मनोचिकित्सा विभाग में पांच साल पहले 12 प्रोफेसर थे अब तीन रह गए हैं। न्यूरोलॉजी में पांच में से तीन बचे हैं। प्रोफेसरों की यूनियन की अध्यक्षा डॉ. सरबजीत खुराना ने कहा कि इस मसले को लेकर हम लोग उपराज्यपाल और स्वास्थ्य मंत्री तक फरियाद कर चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

कहां फंसा है पेंच

इहबास स्वायत्तशासी संस्था है। लेकिन, कोई भी फैसला गवर्निंग बॉडी, एक्जीक्यूटिव काउंसिल, वित्तीय समिति और एकेडमिक समिति से हरी झंडी मिलने के बाद ही यहां लागू होता है। इसकी वजह से फैसले लेने में देरी होती है। 2011 में पदोन्नति के नए नियम लागू करने के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव के पास प्रस्ताव भेजा गया। वहां से पास होने में इसे दो साल लग गए। इसके बाद चार साल वित्तीय समिति के पास फाइल पड़ी। बाद में उपराज्यपाल के पास फाइल भेजी गई। लेकिन अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है।

दिल्ली सरकार के विभाग और इहबास के बीच समन्वय में दिक्कत के कारण यह देरी हुई है। हालांकि हमने प्रोफेसरों को 2009 से पहले की व्यवस्था के तहत पदोन्नति लेने का प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन, वे नई व्यवस्था के तहत चाहते हैं। इस पर हमारी सरकार से बातचीत हो रही है। उम्मीद है कि जल्द ही समाधान निकल जाएगा।

डॉ. निमेष जी देसाई, निदेशक


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