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Coronavirus News Update: सड़क के पास रहने वालों में अधिक मिले सूजन पैदा करने वाले कारक

Coronavirus News Update एम्स के रूमेटोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने 500 लोगों पर यह शोध किया है जो 10 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं व जिन्हें कोई बीमारी नहीं है। उनकी औसत उम्र 31 साल थी। इनमें 77 फीसद महिलाएं शामिल थीं।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 01:10 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 01:10 PM (IST)
Coronavirus News Update: सड़क के पास रहने वालों में अधिक मिले सूजन पैदा करने वाले कारक
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के शोध में हुए अहम खुलासे।

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना मरीजों के शरीर के आंतरिक हिस्सों में सूजन पैदा करने वाले आइएल (इंटरल्युकिन)-6 मार्कर की चर्चा खूब होती है। वहीं प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है? इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसके दुष्प्रभाव से स्वस्थ लोगों के खून में भी ऐसे कारक बढ़ जाते हैं, जिससे शरीर के अंदर सूजन व ऑटो इम्युन की बीमारियां हो सकती हैं। दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के शोध में यह बात सामने आई है। इसमें दिल्ली के 18 फीसद लोगों के खून के सैंपल में ऑटो एंटीबॉडी व 68 फीसद लोगों के सैंपल में सूजन पैदा करने वाले कारक पाए गए। खास बात यह कि सड़क से 200 मीटर के नजदीक रहने वाले लोगों में ये कारक अधिक पाए गए।

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एम्स का यह शोध यूरोपियन जर्नल ऑफ रूमेटोलॉजी में प्रकाशित भी हुआ है। संस्थान के रूमेटोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने 500 लोगों पर यह शोध किया है, जो 10 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं व जिन्हें कोई बीमारी नहीं है। उनकी औसत उम्र 31 साल थी। इनमें 77 फीसद महिलाएं शामिल थीं। सभी के ब्लड सैंपल लेकर तीन तरह की ऑटो एंटीबॉडी (आरएफ, एएनए, एएनटीआइ-सीसीपी) व पांच इन्फ्लमेटरी मार्कर (टीएनएफ-ए, आइएल- 17ए, आइएल-1बी, आइएल-6 व एचएस-सीआरपी) की जांच की गई। नौ फीसद लोगों में एएनए (एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी) व सात फीसद लोगों में आरएफ (रूमेटॉयड फैक्टर) मिला। करीब दो फीसद लोगों में एंटी-सीसीपी (सिट्रूलिनेटेड सी प्रोटीन) ऑटो एंटीबॉडी मिली। वहीं 34.4 फीसद लोगों में आइएल-6 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। शोध में शामिल 90.4 फीसद लोग उच्च मध्यम वर्गीय परिवार से तालुक रखते थे। अन्य लोग निम्न मध्यम वर्ग, निम्न व उच्च वर्गीय परिवारों के सदस्य थे।

इस शोध में शामिल 63 फीसद लोग कामकाजी नहीं थे। इस वजह से वे सप्ताह में 10 घंटे से भी कम समय बाहर रहते थे। 37 फीसद लोग सप्ताह में करीब 120 घंटे तक बाहर रहते थे। शोध में सड़क से 200 मीटर नजदीक रहने वाले 12.5 फीसद लोगों में एएनए व 9.6 फीसद लोगों में आरएफ एंटीबॉडी मिली। यही आंकड़ा 250 मीटर से अधिक दूर रहे वाल लोगों में क्रमश 6.5 व 4.5 फीसद रहा। इसी तरह सूजन वाले कारक भी सड़क से नजदीक रहने वालों में अधिक मिले।

रूमेटोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ. उमा कुमार ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण सांस की नली की लाइनिंग में बदलाव होने लगता है। इस वजह से सूजन शुरू हो जाती व प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा सक्रिय हो जाती है। इस वजह से ऑटो एंटीबॉडी बनने लगती है, जो अपने ही शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगती है। प्रभावित लोगों में लंबे समय तक यही स्थिति बनी रही तो गठिया, लुपस, थायराइड की बीमारी (हाइपोथायरायडिज्म) सहित कई अन्य ऑटोइम्युन की बीमारियां होने का खतरा है। 

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