Move to Jagran APP

लकवा मरीजों के लिए वरदान साबित होगा स्वदेशी रोबोटिक ग्लव्स, जानिए खासियत

यह ग्लव्स दरअसल पोर्टेबल डिवाइस है। जिसे आसानी से घर में प्रयोग किया जा सकेगा। एक बार मार्केट में आने के बाद इसे किराए पर भी लिया जा सकेगा। ताकि जब तक जरूरत हो मरीज उपयोग करे एवं फिर वापस कर दे। यह बिजली से चलेगा।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 10:47 PM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 11:02 PM (IST)
लकवा मरीजों के लिए वरदान साबित होगा स्वदेशी रोबोटिक ग्लव्स, जानिए खासियत
विशेषज्ञों ने पहल की है कि लकवा मरीजों का जीवन आसान हो सके।

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। लकवाग्रस्त मरीजों की शारीरिक परेशानी दूर करने के मकसद से आइआइटी और एम्स मिलकर उनके बेहतर रिहैबिलिटेशन के लिए रोबोटिक एक्सोस्केलेटन थैरेपी पर काम कर रहे हैं। ताकि लकवा मरीजों का जीवन आसान हो सके। इसी क्रम में दोनों संस्थानों के विशेषज्ञों ने मिलकर स्वदेशी रोबोटिक ग्लव्स तैयार किया है। जिसका फेज-1 और 2 का क्लीनिकल ट्रायल काफी उत्साहवर्धक रहा है और यह ग्लव्स मरीजों के मस्तिष्क को स्टीमुलेट कर उनके कलाई और अंगुलियों में जान फूंकने में मददगार पाई गई है।

loksabha election banner

फिजियोथैरपी एक लंबी प्रक्रिया

आइआइटी के सेंटर फार बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रो. अमित मेहंदीरत्ता लकवा के लिए फिजियोथैरपी एक सामान्य प्रक्रिया है। जो मरीज को ठीक करने के लिए फालो किया जाता है। लेकिन फिजियोथैरपी एक लंबी प्रक्रिया है, जिससे ठीक होने में मरीज को कई बार बहुत लंबा समय लग जाता है। इस दौरान मरीज के साथ-साथ परिवार भी परेशान होता है। फिजियोथैरपी के दौरान कोहनी और कंधे के मुकाबले कलाई और अंगुलियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसे में यदि कंधे और कोहनी ठीक भी हो जाए तो मरीज दैनिक कार्य नहीं कर पाता, क्योंकि अंगुलियां और कलाई ठीक से काम नहीं करते।

ब्रेन से इलेक्ट्रिक सिग्नल मिलने पर काम करेगा रोबोटिक ग्लव्स

प्रो. मेहंदीरत्ता कहते हैं कि दरवाजा खोलना हो या कुछ सामान ही पकड़ना हो। ब्रश करने से लेकर शर्ट के बटन बंद करने, नहाने समेत रोजमर्रा के काम के लिए कलाई और अंगुलियां बहुत जरूरी है। इसे ध्यान में रखते ही ग्लव्स तैयार किया गया है। ग्लव्स ना केवल कलाई और अंगुलियों की अकड़न दूर करेगा। लेकिन यह तभी काम करेगा जब दिमाग से इलेक्ट्रिक सिग्नल मिलेगा। इसे इस तरह समझना होगा कि जब लकवा के मरीज को ग्लव्स पहनाया जाएगा तो एक बल्ब जलेगा। जिसके जलने के बाद मरीज को हाथ की अंगुलियों को इधर इधर हिलाने के लिए कहा जाएगा। मरीज का दिमाग इसे समझकर इलेक्ट्रानिक सिग्नल रोबोटिक ग्लव्स को भेजेगा। जिसके बाद ग्लव्स में गति उत्पन्न होगी। यह गति बिना मरीज की दृढ़ इच्छाशक्ति के संभव नहीं होगी। इसके इस्तेमाल से कलाई और अंगुलियों की अकड़न तो दूर होगी ही ब्रेन भी धीरे धीरे सीखता है। इसका असर यह होता है कि लंबे प्रयोग के बाद डिवाइस हटाने के बाद भी जब मरीज अंगुलियों को हिलाने की कोशिश करता है तो ब्रेन तत्काल रिस्पांस देने लगता है।

ट्रायल के परिणाम उत्साहजनक

अब तक दो चरणों का ट्रायल हो चुका है। ट्रायल के पहले चरण में 11, जबकि दूसरे चरण में 40 मरीज शामिल थे। ट्रायल के दौरान दो ग्रुप बनाए गए थे। एक रोबोटिक ग्रुप जबकि दूसरा कंट्रोल ग्रुप। हफ्ते में पांच दिन सेशन आयोजित किए गए थे। प्रत्येक सेशन 45 मिनट का था। अब तीसरे चरण का ट्रायल शुरू होने वाला है। तीसरे चरण में 200 मरीज शामिल किए जाएंगे। बकौल प्रो. अमित अब तक के ट्रायल के परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। एक महीने के ट्रायल के बाद ही अंगुलियों और कलाईयों की अकड़न दूर हो गई थी।

घर में कर सकेंगे उपयोग

यह ग्लव्स दरअसल पोर्टेबल डिवाइस है। जिसे आसानी से घर में प्रयोग किया जा सकेगा। एक बार मार्केट में आने के बाद इसे किराए पर भी लिया जा सकेगा। ताकि जब तक जरूरत हो मरीज उपयोग करे एवं फिर वापस कर दे। यह बिजली से चलेगा। एक प्लग के जरिए जोड़कर प्रयोग में लाया जा सकेगा।

जल्द शुरू होगा तीसरे चरण का ट्रायल

तीसरे चरण का ट्रायल जल्द शुरू होगा। यदि सबकुछ ठीक रहा तो अगामी तीन-चार सालों में उत्पाद मार्केट में आ जाएगा। इसकी तकनीक पेटेंट हो चुकी है। यह स्वदेशी तकनीक कम बजट की होगी। ताकि यह आम आदमी की पहुंच में हो।

एसोसिएट प्रो. अमित मेहंदीरत्ता

किफायती स्वदेशी तकनीक विकसित करने का काम चल रहा

लकवा होने के बाद इलाज के बाद भी मरीजों का हाथ, पैर ठीक से काम नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में रिहैबिलिटेशन की जरूरत पड़ती है। विदेश में रिहैबिलिटेशन की तकनीक पर बहुत काम हुआ है और कई ऐसे रोबोटिक उपकरण भी बना लिए गए हैं, जिसका इस्तेमाल करके व्हीलचेयर पर रहने को मजबूर मरीज भी खड़े हो जाते हैं। इन उपकरणों की कीमत बहुत महंगी होने के कारण भारतीय मरीज फायदा नहीं उठा पाते। ऐसे में किफायती स्वदेशी तकनीक विकसित करने का काम चल रहा है।

प्रो. एम वी पदमा श्रीवास्तव, न्यूरोलाजी विभाग, एम्स


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.