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Coronavirus Vaccine: दीर्घकालिक रूप से पूरी दुनिया के लिए भारतीय टीका ही साबित होगा तारणहार

Coronavirus Vaccine कोरोना की महामारी में बड़ी संख्या में लोग इससे संक्रमित हुए हैं। इसलिए इसे चुनौती के तौर पर स्वीकार किया गया और थोड़ा जोखिम भी लिया गया। इसके तहत पहले फेज दूसरे फेज व और तीसरे फेज का ट्रायल एक साथ हुआ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 10:17 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 10:17 AM (IST)
Coronavirus Vaccine: दीर्घकालिक रूप से पूरी दुनिया के लिए भारतीय टीका ही साबित होगा तारणहार
सरकार व कंपनियों ने काफी निवेश भी किया। अच्छी बात यह है कि टीके ट्रायल में कामयाब रहे।

नई दिल्‍ली, रणविजय सिंह। वैश्विक महामारी कोविड-19 से जंग निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। दुनिया के कई देशों में इसका टीका बन चुका है। वह भी एक साल के अंदर। भारत भी कोरोना का टीका विकसित करने में पीछे नहीं है। देश में चार टीके तीसरे चरण के ट्रायल में हैं। इनमें दो देश में ही विकसित किए गए हैं। यह मानव जाति की सुरक्षा के लिए चिकित्सा जगत की बहुत बड़ी कामयाबी है। यह दुनिया भर के विज्ञानियों के आपसी सहयोग से संभव हो सका है। भले ही कुछ देशों ने कोरोना का टीका थोड़ा पहले बना लिया लेकिन इस वैश्विक महामारी से मुकाबला करने में दीर्घकालिक रूप से भारतीय टीका ही दुनिया के कई देशों के लिए तारणहार साबित होगा।

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जनवरी में जब पूरी दुनिया के सामने खतरनाक कोरोना वायरस के संक्रमण की बात सामने आई तो चीन ने वायरस के जेनेटिक कोड की जानकारी उपलब्ध कराई। दुनिया के विज्ञानी एकत्र हुए और शुरुआत से ही टीके के विकास पर काम शुरू हो गया था। कोविड-19 से पहले भी सार्स व मर्स कोरोना वायरस की महामारी चीन सहित कुछ देशों में आती रही है। इस वजह से उन कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन प्लेटफार्म बनाने पर काम चल रहा था।

फाइजर व मॉडर्ना द्वारा तैयार कोरोना का सबसे पहले जो टीका आया है वह मैसेंजर आरएनए तकनीक पर आधारित है। वैज्ञानिक इस तकनीक पर पहले से काम रहे थे। इस वजह से जब यह महामारी आई तो मैसेंजर आरएनए तकनीक से जल्द टीका बनाने में कामयाब हुए। वहीं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सटिी, भारतीय कंपनियों व कई अन्य देशों ने पुरानी तकनीक से कम समय में टीका बनाने में कामयाबी हासिल की।

टीके के विकास के साथ-साथ उसके ट्रायल की भी खास रणनीति तैयार की गई। जिससे ट्रायल में बहुत लंबा वक्त न लगे। सामान्यतौर पर जब किसी टीके का विकास होता है तो चरणबद्ध तरीके से उसका ट्रायल होता है। हर ट्रायल के लिए फंडिंग की व्यवस्था की जाती है। यह जरूरी नहीं कि हर टीका पहले फेज के ट्रायल के बाद दूसरे फेज में जाए और कामयाब हो। हर फेज के ट्रायल के बाद उसके परिणाम का इंतजार किया जाता है। इस वजह से टीके के विकास में सालों लग जाते हैं। सरकार व कंपनियों ने काफी निवेश भी किया। अच्छी बात यह है कि टीके ट्रायल में कामयाब रहे।

यह समझने की जरूरत है कि टीका वही बेहतर होगा जो सुरक्षा व असर के पैमाने पर खरा उतरने के साथ-साथ किफायती भी हो। क्योंकि बहुत बड़ी आबादी को टीका लगाया जाना है। फाइजर व मॉडर्ना के टीके को माइनस 70 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की व्यवस्था करना आसान नहीं है। इसकी स्टोरेज क्षमता विकसित करने के लिए भारी भरकम खर्च आएगा। इसका असर टीके की कीमत पर आएगा। इसलिए दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान या माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुरक्षित रखा जाने वाला टीका बेहतर होगा। भारत में विकसित टीके इस पैमाने पर खरे उतरते हैं। 

[डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, एम्स, नई दिल्ली]

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