Tulika Maan: मेरे लिए मां ही सबकुछ हैं, उनसे मिले मजबूत हौसले ने बर्मिंघम में दिलाया पदक- तूलिका मान
बर्मिघम में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए पदक जीतने वाली जूडो खिलाड़ी तूलिका मान (Tulika Maan) ने इस जीत के पीछे अपनी मां के योगदान के बारे में बताया है। उन्होंने कहा कि गोल्ड नहीं जीत पाने का कारण मैं चोट को नहीं मानती।
नई दिल्ली। बर्मिघम में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित करने वाली जूडो खिलाड़ी तूलिका मान (Tulika Maan) पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) से मिलकर आईं हैं। प्रधानमंत्री ने उनका उत्साहवर्धन करते हुए भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। तूलिका की इस जीत के पीछे इनकी मेहनत और मां अमृता सिंह की जीवटता का सबसे बड़ा योगदान है। जिंदगी में आए उतार चढ़ाव के बाद मिली सफलता को लेकर तूलिका मान से भगवान झा ने विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश:
प्रधानमंत्री से आप पहली बार मिलीं, क्या-क्या बातचीत हुई?
कामनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games 2022) में पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ियों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मिले। जब मुझसे कहा गया कि प्रधानमंत्री से मिलने जाना है तो मैं नर्वस हो गई थी, लेकिन जब मैं वहां पहुंची और प्रधानमंत्री से मिली तो मेरा हौसला और बुलंद हो गया।
प्रधानमंत्री ने सबसे पहले यही कहा- मैं आपकी मां को प्रणाम करता हूं। बाद में मुझे लगी चोट के बारे में पूछा। करीब एक मिनट तक उन्होंने बात की। सबसे ज्यादा हैरानी मुझे इस बात की हो रही थी कि उन्हें हर खिलाड़ी के घर-परिवार के बारे में पता था और वे सभी से उनका कुशलक्षेम पूछ रहे थे।
जूडो की तरफ रुझान कब हुआ?
जूडो की तरफ मेरा कोई रुझान नहीं था। मां कार्यालय चली जाती थीं और मेरा घर पर समय व्यतीत करना मुश्किल हो जाता था। एक दिन मैंने मां से कहा कि आप तो चली जाती हैं, मेरा समय कैसे व्यतीत होगा। मां ने कहा कि पास में ही जूडो एकेडमी है। वहां जाकर देखो। समय व्यतीत हो जाएगा।
सात वर्ष की उम्र से मैं एकेडमी जाने लगी। एक वह दिन था और एक आज का दिन है। एकेडमी में धीरे-धीरे मैं बढ़िया खेलने लगी और समय के साथ मेडल मेरी झोली में आता गया। मुझे खुशी है कि मैं देश के लिए पदक ला पा रही हूं।
राजौरी गार्डन थाने में आपके बचपन का कुछ समय बीता। अब याद करके कैसा लगता है?
मेरी मां अमृता सिंह दिल्ली पुलिस में हैं। वह राजौरी गार्डन थाने में तैनात थीं। उस समय राजौरी गार्डन थाने के एसएचओ रामंचद्र रंगा हुआ करते थे। उनको मेरी मां चाचा बुलाती थीं और मैं नानू।
मां के सामने सबसे बड़ी चुनौती मेरा लालन पोषण था। रामचंद्र रंगा मां की मजबूरी समझ रहे थे। उन्होंने मां को मुझे थाने लाने की इजाजत दे दी। स्कूल से आने के बाद सीधे थाने चली जाती थी। वहां पर स्कूल का होमवर्क पूरा करती थी। मैं पुलिसकर्मियों से काफी घुलमिल गई थी। उस दौरान मैं थाने के कई कामकाज से वाकिफ हो गई थी।
आपकी मां ने पेंशन के पैसे निकाले, पर्सनल लोन लिया। क्या कभी यह नहीं लगा कि अगर सफल नहीं हुई तो मां की कोशिश बेकार हो जाएगी?
मेरे लिए मां ही जिंदगी में सबकुछ हैं। उनसे जितना बन पड़ा उन्होंने मेरे लिए किया। पहले हम अपने पैसे पर बाहर खेलने के लिए जाते थे। कई बार हार का सामना करना पड़ता था, लेकिन हर हार के बाद मैं खुद को और मजबूत पाती थी और अगली फाइट उससे बेहतर खेलती थी। कभी यह लगा ही नहीं कि मैं सफल नहीं हो सकती।
मैंने इस बार मां से गोल्ड का वादा किया था। फाइनल में हार के बाद भारत के समयानुसार तड़के साढ़े तीन बजे मां को फोन किया और कहा कि सिल्वर से ही संतोष करना पड़ा। मां ने कहा-फाइट खत्म हो गई तो मैंने कहा हां। मां ने कहा सो जाओ, सुबह बात करेंगे। मां ने मेरे पीछे अपनी जिंदगी की सभी दौलत लगा दी है। मैं अब उनके चेहरे पर सिर्फ खुशी देखना चाहती हूं।
सरकार की ओर से आपको मदद मिली की नहीं?
कामनवेल्थ गेम्स में जाने से पहले मुझे प्रशिक्षण के लिए स्पेन भेजा गया था। वहां पर मिले प्रशिक्षण का हमें खूब लाभ मिला। मेरे कोच यशपाल सोलंकी हैं और उनके साथ द्वारका और भोपाल स्थित एकेडमी में काफी समय तक अभ्यास किया है। अभी भी यह प्रक्रिया जारी है।
कामनवेल्थ गेम्स में आप चोटिल हो गई थीं। क्या गोल्ड नहीं मिलने का यही कारण था?
नहीं, गोल्ड नहीं मिलने का कारण मैं चोट को नहीं मानती। मेरे खेल में ही कुछ कमी होगी इस कारण गोल्ड मेडल नहीं जीत पाई। मैंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की थी, बाकी सब ईश्वर के हाथ में होता है।
अब अगला लक्ष्य क्या है?
अगले साल एशियन गेम्स होने हैं। वर्ष 2024 में ओलिंपिक है। अभी से तैयारी शुरू कर दी है। मेरी पूरी कोशिश होगी इन दोनों में गोल्ड जीतकर अपने देश का नाम रोशन करूं। इसके लिए जितनी मेहनत की जरूरत होगी मैं करूंगी।
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