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दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायतें महिला सशक्तीकरण में बाधा

दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज कराई गई यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत के मामले को दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। पीठ ने मामले की गंभीरता पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ऐसे मामलों का असर यौन उत्पीड़न के वास्तविक मामलों पर पड़ता है।

By Vineet TripathiEdited By: JP YadavPublished: Fri, 28 Jan 2022 10:01 AM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 10:01 AM (IST)
दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायतें महिला सशक्तीकरण में बाधा
दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायतें महिला सशक्तीकरण में बाधा

नई दिल्ली,  जागरण संवाददाता। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज कराई गई यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत के मामले को दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। नाराजगी व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि इस तरह की घटनाएं महिला सशक्तीकरण के लक्ष्य को बाधित करती हैं। पीठ ने मामले की गंभीरता पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों का असर यौन उत्पीड़न के वास्तविक मामलों पर पड़ता है और पीड़ितों की दायर कराई शिकायतों की सत्यता पर भी संदेह उत्पन्न होता है। पीठ ने कहा कि यह अदालत इस बात पर अपनी पीड़ा व्यक्त करती है कि कैसे इन धाराओं को किसी अन्य व्यक्ति के आचरण पर अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह केवल यौन उत्पीड़न के अपराध को हल्का ही नहीं बनाता, बल्कि हर दूसरी पीड़िता द्वारा दायर आरोपों की सत्यता पर संदेह पैदा करता है।

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पीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ डीयू के सहायक प्रोफेसर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न), 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद कर दिया। याचिकाकर्ता सहायक प्रोफेसर ने दावा किया था कि शिकायतकर्ता के खिलाफ उनकी शिकायत के जवाब में उनके खिलाफ उक्त प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। अदालत ने कहा कि रिकार्ड में मौजूद सामग्री के अवलोकन से प्रथम²ष्टया पता चला है कि विरोधाभासी बयानों व निराधार आरोपों के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।

कोर्ट की टिप्प्णी

यह अदालत इस बात पर अपनी पीड़ा व्यक्त करती है कि कैसे इन धाराओं को किसी अन्य व्यक्ति के आचरण पर अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह केवल यौन उत्पीड़न के अपराध को हल्का ही नहीं बनाता, बल्कि हर दूसरी पीड़िता द्वारा दायर आरोपों की सत्यता पर संदेह पैदा करता है, जिसने वास्तव में यौन उत्पीड़न का सामना किया है। -सुब्रमण्यम प्रसाद, न्यायमूर्ति दिल्ली हाई कोर्ट।


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