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सरकार की मर्जी पर दिल्‍ली में बेमौसम बरसेंगे बादल, जानिये- क्या है पूरा मामला

दिल्ली से बोरिया बिस्तर समेट चुके बादलों को एक सरकारी फरमान पर राजधानी को भिगोना पड़ेगा। दरअसल, राजधानी में तेजी से बढ़ता प्रदूषण इस बार फिर समस्या का सबब बन रहा है।

By Edited By: Published: Thu, 08 Nov 2018 07:46 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 07:44 AM (IST)
सरकार की मर्जी पर दिल्‍ली में बेमौसम बरसेंगे बादल, जानिये- क्या है पूरा मामला
सरकार की मर्जी पर दिल्‍ली में बेमौसम बरसेंगे बादल, जानिये- क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। बरसात का मौसम भले ही चला गया है, लेकिन दिल्ली में बादल बरसने वाले हैं। दिलचस्प यह भी है कि यह बेमौसम बारिश मनमौजी बादलों की मर्जी के खिलाफ होने वाली है। दिल्ली से बोरिया बिस्तर समेट चुके बादलों को एक सरकारी फरमान पर राजधानी दिल्ली को भिगोना पड़ेगा। दरअसल, राजधानी में तेजी से बढ़ता प्रदूषण इस बार फिर समस्या का सबब बन रहा है।

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विशेषज्ञों को इससे निपटने के लिए पानी का छिड़काव ही कारगर और बेहतर विकल्प नजर आ रहा है। लेकिन, एंटी स्मॉग गन व हवाई जहाज से पानी के छिड़काव की योजना जहां व्यावहारिक साबित नहीं हुई, वहीं टैंकरों से सड़कों के किनारे पानी छिड़कने की योजना भी ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। इसलिए विशेषज्ञों ने बादलों को ही बरसने के लिए तैयार करने की योजना बनाई है।

केंद्रीय पर्यावरण एवं नागरिक उड्डयन मंत्रालय के निर्देश पर यह योजना तैयार की है आइआइटी कानपुर और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विशेषज्ञों ने। योजना के क्रियान्वयन पर दोनों मंत्रालय, इसरो, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), आइआइटी कानपुर, सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग और मौसम विभाग के बीच सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। केवल दिल्ली सरकार के साथ सलाह मशविरा होना शेष है।

इस योजना के तहत जब भी आसमान में बादल छाएंगे तो मौसम विभाग की सलाह पर आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञ इसरो के विमान से आकाश में जाएंगे और बादलों के बीच कुछ ऐसे रसायन छोड़ेंगे जिनसे बादलों में मौजूद पानी की छोटी-छोटी बूंदें बड़ी होकर बरसने पर मजबूर हो जाएंगी। रसायन छोड़े जाने के बाद इन बादलों को बारिश के लिए तैयार होने में 15 से 40 मिनट का वक्त लगेगा जबकि हल्की बूंदाबांदी के रूप में यह बारिश 25 से 30 मिनट तक चलेगी।

इस बूंदाबांदी से प्रदूषक तत्व एवं धूल कण नीचे बैठ जाएंगे और एयर इंडेक्स भी कम हो जाएगा। बताया जाता है कि इस तकनीक का ट्रायल कानपुर और आंध्र प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक हो चुका है। जो रसायन बादलों में छोड़े जाते हैं, वे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते।

सबसे बड़ी बात यह कि यह तकनीक महंगी नहीं है और पूरी प्रक्रिया में केवल विमान के उड़ाने भर का ही खर्च आता है। इस योजना के क्रियान्वयन में इंतजार अब सिर्फ बादल छाने व इसरो के विमानों की उपलब्धता का है। आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों की टीम अपनी तैयारी पूरी कर चुकी है।

प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी (सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आइआइटी कानपुर) का कहना है किइस तकनीक के तहत बादलों के बीच जो रसायन छोड़े जाते हैं, वे बताए नहीं जा सकते। लेकिन, यह तकनीक पूर्णत पर्यावरण अनुकूल एवं कामयाब भी है। हमारी टीम दिल्ली में बादल बरसाने के लिए तैयार है। जैसे ही केंद्रीय मंत्रालय की ओर से निर्देश जारी होगा, तकनीक पर काम आरंभ हो जाएगा। बारिश की लोकेशन और फ्रीक्वेंसी भी मंत्रालय से ही तय होगी।
 


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