दिल्ली में कैसे सुधरेगा बदहाल ड्रेनेज सिस्टम, IIT दिल्ली के प्रो. ने बताया तरीका
50 साल पहले तक दिल्ली में जब बारिश होती थी तो उसका 50 फीसद पानी जमीन की मिट्टी सोख लिया करती थी। इससे दिल्ली का भू-जल भी व्यवस्थित रहता था।
नई दिल्ली। न काम करने की व्यवस्था दुरुस्त है और न ही अधिकारी चुस्त हैं फिर कैसे सिस्टम में सुधार संभव...। दिल्ली एनसीआर की सड़कों पर बरसात में पानी भर जाना कोई नई बात नहीं है सालों से लोग इसी तरह गंदे पानी से होकर आने जाने को विवश हैं। लेकिन न तो सरकार जागती है और न ही विभागों के कानों पर जूं रेंगती है।
मौजूदा समय में दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम इसलिए बहुत खराब हो गया है, क्योंकि सीवर लाइनों का मल दिल्ली के नालों में जा रहा है। बारिश के पानी को बहाव के लिए जगह चाहिए, लेकिन पानी नाली के मल के साथ मिलकर सीवर लाइन में पहुंच रहा है। और यह सब सीवर लाइनों का व्यवस्थित ढंग से रखरखाव नहीं करने के कारण हो रहा है। इतना ही नहीं कई जगह प्राकृतिक नालों को ढककर उन पर पार्किंग बना दी गई है, तो कहीं कब्जा कर दुकानें बना दी गई हैं। इस वजह से नालों की गाद नहीं निकल पाती है। कई सीवर लाइनें तो ब्लॉक हो चुकी हैं, लेकिन उनको खोलने का काम भी नहीं किया जा रहा है।
रिपोर्ट तैयार कर दिए गए थे सुझाव
2018 में दिल्ली सरकार को ड्रेनेज सिस्टम व्यवस्था में सुधार करने के लिए रिपोर्ट तैयार कर कई सुझाव दिए गए थे। उसमें यह भी बताया गया था कि दिल्ली में जितनी भी एजेंसियां हैं, वे हमेशा बारिश के दौरान जलभराव होने पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ने लगती हैं। ऐसी परिस्थिति न आए इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे। दिल्ली का सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, जल बोर्ड, तीनों नगर निगम, शहरी विकास विभाग, भारत सरकार का शहरी विकास मंत्रालय, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली छावनी बोर्ड, दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास निगम और लोक निर्माण कार्य विभाग जैसे कई विभागों के अधिकार क्षेत्र में ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था का दायित्व है। इनमें से सभी के लिए एक नई एजेंसी को तैयार करके उसी को इस प्रणाली की जिम्मेदारी सौंपने का भी सुझाव दिया गया था। यह एक एजेंसी, सभी एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करेगी। तभी सुधार संभव होगा। इसमें एकजुट होकर काम करना होगा।
गाद निकालने की प्रक्रिया को किया जाए रिकॉर्ड
राष्ट्रीय हरित अधिक्ररण (एनजीटी) ने जनवरी 2015 में आदेश दिया था कि दिल्ली की नालियों का मल बारिश के पानी के साथ नालों में नहीं जाएं इसका ख्याल रखें। ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने के लिए मैंने सरकारी एजेंसियों के साथ कई बैठकें भी की थी। अब समय आ गया है कि लोगों को भी इस व्यवस्था के साथ जोड़ना जाए। लोगों को जागरूक किया जाए। दिल्ली के आरडब्ल्यूए को साथ में लेकर चलने से व्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है।
एक एप के सहयोग से जहां पर भी जलभराव या नालियों के गाद की समस्या या नाली के ब्लॉक होने की दिक्कत आती है उसका समाधान किया जा सकता है। गाद निकालने की प्रक्रिया भी जगह-जगह से रिकॉर्ड होनी चाहिए। साथ ही इसके लिए जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।
पांच फीसद पानी ही सोख पा रही जमीन
50 साल पहले तक दिल्ली में जब बारिश होती थी तो उसका 50 फीसद पानी जमीन की मिट्टी सोख लिया करती थी। इससे दिल्ली का भू-जल भी व्यवस्थित रहता था। लेकिन अब जगह जगह मलबा और कंक्रीट होने की वजह से पानी जमीन के अंदर जा ही नहीं पा रहा है। मौजूदा परिस्थिति में बारिश के पानी का महज पांच फीसद हिस्सा ही जमीन के अंदर जा पा रहा है। यही वजह है कि अब बरसात का 95 फीसद पानी नालों में ज
भू-जल के लिए अलग व्यवस्था की दरकार
दिल्ली के घरों, सोसायटियों, कॉलोनियों की छतों पर इकट्ठा होने वाले बारिश के पानी को सीवर लाइन से जोड़ दिया गया है, जो बहुत गलत कदम है। ऐसी व्यवस्था तैयार करनी होगी जिससे बारिश का पानी सीधे किसी पार्क या एक अन्य जगह पर जाए। इससे उस जगह का भू-जल स्तर भी बढे़गा। हमें यह देखना होगा कि हम पानी को कहां-कहां पर कैसे रोक सकते हैं।
बारिश के पानी का संग्रहण (रेन वॉटर हार्वेस्टिंग ) महंगी व्यवस्था है। इसकी जगह पार्कों में या किसी चिह्नित स्थान पर बारिश के पानी को इकट्ठा करने का कार्य किया जाए तो यह ज्यादा लाभदायक होगा और यह व्यवस्था महंगी भी नहीं है।
(आइआइटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. एके गोसाईं से संवाददाता राहुल मानव से बातचीत परआधारित)