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'आयुर्वेद से 6 दिन में ही ठीक हो रहे कोरोना के मरीज' AIIA निदेशक तनुजा ने किया दावा

एआइआइए में कोविड हेल्थ सेंटर बनाया गया है। इसमें आयुर्वेद से ही 93 फीसद मरीजों के इलाज में सफलता मिल रही है जिसमें आयुर्वेदिक दवाएं योग व प्राणायाम शामिल है। करुणा के साथ देखभाल हमारा टैग लाइन है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 11:27 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 11:28 AM (IST)
'आयुर्वेद से 6 दिन में ही ठीक हो रहे कोरोना के मरीज' AIIA निदेशक तनुजा ने किया दावा
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआइआइए) की निदेशक डॉ. तनुजा नेसारी की फाइल फोटो।

नई दिल्ली। कोरोना के इस दौर में आयुर्वेद पर पहले के मुकाबले लोगों का भरोसा बढ़ा है, इसलिए संक्रमण से बचाव व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे लोग आजमा रहे हैं, जिस पर कुछ सवाल भी उठते रहे हैं। आयुर्वेद व योग के इस्तेमाल से कोरोना का इलाज भी हो रहा है। कोरोना से बचाव व इलाज में इसके कारगर होने और प्रदूषण से बचाव के उपायों पर अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआइआइए) की निदेशक डॉ. तनुजा नेसारी से रणविजय सिंह ने बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :

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आयुर्वेद से कोरोना के इलाज का अब तक क्या अनुभव रहा है, यह कितना असरदार है?

- एआइआइए में कोविड हेल्थ सेंटर बनाया गया है। इसमें आयुर्वेद से ही 93 फीसद मरीजों के इलाज में सफलता मिल रही है, जिसमें आयुर्वेदिक दवाएं, योग व प्राणायाम शामिल है। करुणा के साथ देखभाल हमारा टैग लाइन है। इसलिए कोरोना पीड़ितों में मानसिक तनाव कम करने के लिए काउंसलिंग भी की जाती है। इससे हल्के व मॉडरेट (कम गंभीर) मरीजों के इलाज में सफलता मिल रही है। जिन मरीजों के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर 94 फीसद से कम होकर 90 फीसद तक आ जाता है, उनका भी आयुर्वेद से इलाज किया जा रहा है। अस्पताल के सभी बेड पर ऑक्सीजन की व्यवस्था है। यह देखा जा रहा है कि कोरोना से पीड़ित जिन मरीजों को सांस फूलने की परेशानी होती है, स्वाद व गंध का पता नहीं चल पाता, वे आयुर्वेद से पांच से छह दिन में ही ठीक हो रहे हैं। ऑक्सीजन का स्तर 90 फीसद से कम होने पर मरीज की हालत गंभीर मानी जाती है, इसलिए उन्हें एलोपैथी के अस्पताल में स्थानांतरित करने का प्रावधान है। एआइआइए में अब तक करीब 310 मरीजों का आयुर्वेद से इलाज हुआ है, जिसमें से 282 मरीज स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं। अन्य मरीज अस्पताल में भर्ती हैं। मरीजों के ठीक होने की दर सौ फीसद है। अस्पताल में एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है। कोरोना काल में लोगों का आयुर्वेद पर भरोसा बढ़ा है।

कोरोना के इलाज में किन आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है?

- आयुष मंत्रलय ने इलाज का प्रोटोकॉल जारी किया है। इसके तहत मरीजों को काढ़ा (दालचीनी, तुलसी, सौंठ, काली मिर्च, मुलेठी के मिश्रण से तैयार) व गिलोय की वटी हर मरीज को दी जाती है। बुखार होने पर महासुदर्शन घनवटी की गोली, तेज बुखार व सर्दी-खांसी होने पर नागरादी कषाय औषधि दी जाती है। कुछ मरीजों को दिल की बीमारी भी है, इसलिए अस्पताल से एलोपैथी कार्डियोलॉजी के विशेषज्ञ जुड़े हुए हैं। करीब सात फीसद मरीजों का, जिन्हें पहले से मधुमेह, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारी थी या ब्लड को थक्का करने वाले मार्कर बढ़ने पर, इंटिग्रेटिव अप्रोच से इलाज किया जा रहा है। उन मरीजों को आयुर्वेद व अंग्रेजी दोनों तरह की दवाएं दी जाती है। मधुमेह, हाइपरटेंशन से पीड़ित मरीजों की अंग्रेजी दवाएं रखी जाती है। सिर्फ से एक-दो फीसद मरीजों को ही एंटीबायोटिक या एंटीवायरल दवाएं देनी पड़ती है। ज्यादातर मरीजों का आयुर्वेद से ही इलाज होता है।

कहा जा रहा है कि काढ़ा पीने से लिवर पर भी असर पड़ रहा है, यह कहां तक सही है?

- यह सही नहीं है। काढ़े की तासीर गर्म होती है, जिनको पहले से कब्ज, अपच व एसिडिटी की परेशानी है तो उनके मुंह में छाले पड़ने व यूरिन में ब्लड आने की समस्या देखी गई है। बवासीर के मरीजों की परेशानी भी थोड़ी बढ़ रही है। ऐसे लोगों को घर में ही गर्म पानी में दालचीनी, तुलसी, मुनक्का, मुलेठी, आंवला, गिलोय व इलायची डालकर काढ़ा तैयार करने की सलाह दी जाती है। सौंठ व काली मिर्च नहीं डालने से उसकी तासीर भी गर्म नहीं होगी।

दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है, इस वजह से सांस की बीमारियां भी बढ़ेगी। कोरोना का संक्रमण भी है, ऐसे में बचाव के लिए क्या किया जाना चाहिए?

- अभी सतर्क रहना बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री ने मास्क पहनने का अभियान शुरू किया है। प्रदूषण व कोरोना से बचाव के लिए यह बहुत जरूरी है। घर से निकलने से पहले नाक में दो-तीन बार सरसों, तिल या अणु तेल एक-एक बूंद डालें। यह बहुत छोटी चीज है, लेकिन असर बहुत शानदार होगा। इससे प्रदूषक तत्व सांस के जरिये शरीर में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। स्लाइन वाटर से नाक को साफ भी कर सकते हैं। मुंह के जरिये भी प्रदूषक तत्व शरीर में पहुंचते हैं। इस वजह से गले में खरास की समस्या होती है। इसलिए हल्के गर्म पानी में हल्दी व नमक डालकर रोज सुबह गरारे करना चाहिए। बाहर से घर लौटने के तुरंत बाद भी गरारे कर सकते हैं। इसके अलावा सुबह रोज एक गिलास गर्म पानी में नमक व एक चम्मच कोई भी तेल (सरसों, तिल या अणु तेल) मिलाएं और फिर मुंह में उस पानी को भरकर पांच मिनट तक रखें। इसके बाद उसे फेंक दें। इससे गले व मुंह के कैविटी में प्रदूषक कण, वायरस या बैक्टीरिया चिपक नहीं पाएंगे। नहाने से पहले पांच मिनट तेल से खुद मसाज कर सकते हैं। इससे प्रदूषण से त्वचा का बचाव होता है।

प्रदूषण से बचाव के लिए खानपान किस तरह का होना चाहिए?

- दूध में हल्दी डालकर लेना चाहिए। हल्दी प्रदूषण के प्रभाव को कम करती है। काढ़ा भी ले सकते हैं। ड्राइ फ्रूट्स का इस्तेमाल करना चाहिए। मौसमी फल व ताजा भोजन करना चाहिए। जहां तक संभव हो बाहर की चीजों के सेवन से बचना चाहिए।

प्रदूषण बढ़ने पर सांस के मरीजों को किस तरह की सावधानी रखनी चाहिए?

- गुनगुना पानी पिएं। ठंडा पानी पीना बिल्कुल बंद कर दें। सांस के मरीज गर्म पानी में शहद डालकर लें। यदि उसमें त्रिकुट चूर्ण (सौंठ, काली मिर्च व पिपली चूर्ण) भी थोड़ा मिलाकर पिएं तो कफ नहीं बढ़ेगा। गर्म पानी में थोड़ा तिल व मुलेठी डालकर पीने से सांस फूलने की समस्या कम होती है। हर्बल चाय व च्यवनप्राश भी ले सकते हैं। इसके अलावा कई विकल्प हैं, जो आयुर्वेद के डॉक्टरों की सलाह से ली जा सकती है।

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