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जानें- देश की जानीमानी लेखिका ने हैदराबाद एनकाउंटर पर जश्न को क्यों कहा 'खतरे की घंटी'

Hyderabad encounterदेश संविधान से चलेगा या हम भी कट्टरपंथी मुल्कों की तरह व्यवहार करेंगे जहां आज भी ऐसे अपराध में सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने या मौत की सजा देने का चलन है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 09:55 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 11:29 AM (IST)
जानें- देश की जानीमानी लेखिका ने हैदराबाद एनकाउंटर पर जश्न को क्यों कहा 'खतरे की घंटी'
जानें- देश की जानीमानी लेखिका ने हैदराबाद एनकाउंटर पर जश्न को क्यों कहा 'खतरे की घंटी'

नोएडा [अमित कुमार]। Hyderabad encounter : हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या के चारों आरोपितों के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का एक बड़े तबके ने स्वागत किया। लोगों ने पुलिसकर्मियों पर फूल बरसाए तो महिलाओं ने राखी तक बांध दी। आम आदमी की तो क्या कहें, सांसद, नेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े खिलाड़ियों ने भी इसे त्वरित न्याय बताया। और यह तब है जब आरोपितों का अपराध अभी साबित भी नहीं हुआ था। उन्नाव कांड के दोषियों के साथ भी ऐसा ही सलूक किए जाने की मांग उठी। ऐसे में सवाल उठता है कि देश में कोई न्याय व्यवस्था है या नहीं। देश संविधान और कानून के मुताबिक चलेगा या हम भी कट्टरपंथी मुल्कों की तरह व्यवहार करेंगे, जहां आज भी ऐसे अपराध में सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने या मौत की सजा देने का चलन है।

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महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के खिलाफ चाहें जितने भी कड़े कानून बना लीजिए, जब तक महिलाओं के प्रति समाज की सोच नहीं बदलेगी, कुछ बदलने वाला नहीं है। सिर्फ कड़े कानून बना देना ही किसी समस्या का समाधान होता तो दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिलाओं पर होने वाले अपराधों में कमी आ जानी चाहिए थी। निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म की सजा को बेहद सख्त कर दिया गया, लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध में कोई कमी नहीं आई। जाहिर है खुद महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सावधान रहने की जरूरत है। एक पुरानी कहावत है, ‘जिस रास्ते से रोज गुजरना हो, वहां ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए।’ ‘दुष्कर्म की घटनाओं पर रोक कैसे लगे’ विषय पर सोमवार को आयोजित जागरण विमर्श में उक्त विचार सुप्रसिद्ध लेखिका क्षमा शर्मा ने व्यक्त किए।

सबसे ज्यादा खतरा अपनों से

उन्होंने कहा कि दुष्कर्म की वारदात पर लगाम लगाने के लिए बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की पैरवी की जाती है। मगर सच्चाई यह है कि बच्ची हो, युवती या बुजुर्ग महिलाएं, सबसे ज्यादा खतरा उन्हें घर में अपनों से ही होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुष्कर्म के 92 फीसद मामलों में आरोपित घर का कोई सदस्य, मित्र या पड़ोसी होता है। जाहिर है सेक्स एजुकेशन दुष्कर्म की वारदातों को रोकने का मुकम्मल उपाय तो नहीं हो सकता। विदेश में बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी जाती है। कॉलेजों में कंडोम मशीनें तक लगी हैं, इसके बावजूद दुष्कर्म की घटनाएं होती हैं।

नीचे से ऊपर तक सुधार होना चाहिए

क्षमा शर्मा ने कहा कि महिलाओं से जुड़े अपराध रोकने के लिए नीचे से ऊपर तक सिस्टम में सुधार की जरूरत है। सबसे पहले तो बच्चियों को घरों में सुरक्षित होना चाहिए। उन्हें यह अहसास नहीं कराना चाहिए कि उनसे कोई गलती हो गई तो घर की इज्जत चली जाएगी। यही सोच उन्हें तब चुप रहने पर मजबूर बना देती है, जब कोई जानने वाला या अंजान व्यक्ति पहली बार अपराध की दस्तक देता है। उनकी खामोशी उन्हें बड़े अपराध का शिकार बना देती है। दूसरा कदम यह होना चाहिए कि बच्चियों और महिलाओं के लिए मुफ्त कानूनी सहायता आसानी से उपलब्ध हो। महिलाओं को पता होना चाहिए कि पुलिस उनकी बात नहीं सुन रही तो वह क्या कदम उठा सकती हैं कि पुलिस सिस्टम में भी सुधार की जरूरत है। पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। पुलिस थानों का माहौल ऐसा होना चाहिए कि अपराध की शिकार महिला ही नहीं, बल्कि कोई भी व्यक्ति वहां जाने में संकोच महसूस न करे।

हैदराबाद एनकाउंटर का जश्न खतरे की घंटी

हैदराबाद एनकाउंटर का जश्न कहीं खतरे की घंटी तो नहीं है। क्षमा शर्मा ने बताया कि एक ताजा सर्वे में प्रत्येक पांच में से एक पुलिसवाले ने हैदराबाद मॉडल को सही ठहराया है। सोचिए, अगर इस सोच को स्वीकार कर लिया गया तो उस दिन क्या होगा, जब पुलिसवालों की गोली बेवजह चलने लगेगी। बिना दोष साबित किए, अदालत की कार्यवाही चलाए इस तरह की कार्रवाई को न्याय नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने भी कहा कि न्याय कभी आनन-फानन में नहीं हो सकता और बदले की भावना से किया गया न्याय अपना मूल चरित्र ही खो बैठेगा।

... तो अदालतों की जरूरत ही नहीं रह जाएगी

उन्होंने कहा कि मैं पुलिस के खिलाफ नहीं हूं। पुलिस में भी अन्य विभागों की तरह अच्छे और बुरे लोग हैं। यदि हर पुलिसवाला अपनी पिस्तौल के दम पर खुद ही न्याय करने लगेगा, तो अदालतों की जरूरत ही क्या रह जाएगी। हमारा संविधान बहुत सोच समझकर बनाया गया है। जरूरी नहीं कि ज्यादातर जनता की जो राय हो, वह ठीक ही हो। कई ऐसी घटनाएं हैं, जहां आरोपित लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट से बेकसूर छूटे। त्वरित न्याय की उम्मीद जायज है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि इसके फेर में कोई निर्दोष न सूली चढ़ जाए।

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