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खुदा की इबादत करते रहे, इंसानियत का फर्ज निभाते-निभाते; पढ़िए दिल को छू लेेने वाली स्टोरी

बहुराष्ट्रीय कंपनी में कभी काम करने वाले स्नातक इर्तजा का यह सामाजिक सफर वर्ष 2005 से शुरू होता है जब उनके पिता अचानक घर से कहीं चले गए।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 05:33 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 12:42 PM (IST)
खुदा की इबादत करते रहे, इंसानियत का फर्ज निभाते-निभाते; पढ़िए दिल को छू लेेने वाली स्टोरी
खुदा की इबादत करते रहे, इंसानियत का फर्ज निभाते-निभाते; पढ़िए दिल को छू लेेने वाली स्टोरी

नई दिल्‍ली [नेमिष हेमंत]। इस माहे रमजान में जब पूरा विश्‍व कोरोना की महामारी के संकट से गुजर रहा था तब पुरानी दिल्‍ली के युवा इर्तजा कुरैशी की प्रेरणा से 70 से अधिक युवाओं ने खास माने जाने वाले तरावीह की नमाज की जगह जरूरतमंदों की मदद कर लोगों के लिए अलग मिसाल कायम की है। वैसे, युवा समाजसेवी इर्तजा कुरैशी ही कोरोना योद्धा की अहम भूमिका में ही नहीं हैं बल्‍कि उनकी पत्‍नी हीना भी कोरोना की फ्रंट लाइन वॉरियर्स हैं। वह पंत अस्‍पताल में लैब टेक्‍नीशियन हैं जहां वह कोरोना के संदिग्‍ध मरीजा का रक्‍त परीक्षण करती हैं। ऐसे में घर में मां और तीन बच्‍चे चिंतित तो रहते हैं। पर उन्‍हें फक्र है कि उनके माता-पिता इस मुश्‍किल घड़ी में लोगों के आंसू पोछने के काम आ रहे हैं।

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इंसानियत की मदद

इर्तजा कुरैशी कहते हैं कि जब लॉकडाउन लागू हुआ और तब से किसी भी प्रकार के जमावाड़े पर रोक लगा दी गई। मंदिर, मस्‍जिद, गुरुद्वारे सभी धार्मिक स्‍थल भी बंद हो गए। इस खास महीने में लोगों से अपील की गई कि वह मस्‍जिदों में न जुटे और इस पाक महीने को घरों में ही खुदा की इबादत में गुजारे। इसी दौरान उन्‍होंने सोच लिया था कि वह घर बैठने की जगह सही रूप से खुदा की इबादत करने निकलेंगे। इंसान की मदद करेंगे।

तरावी की नमाज होती है विशेष

इसी से उनका खुदा प्रसन्‍न होगा। इस माह तरावीह की नमाज विशेष होती है। पूरे माह 20 रकात पढ़नी होती है, जिसमें कम से कम रोजाना तीन घंटे का वक्‍त लगता है। वह भी इसे लोगों के साथ मस्‍जिदों में पढ़नी होती है। ऐसा नहीं होना था तो उन्‍होंने ये तीन घंटे में रोजाना 20 परिवारों को मदद पहुंचाने की सोची।

सोशल मीडिया पर चलाया अभियान

अपने दोस्‍तों से कहा, सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। यह करते-करते उन्‍हें आर्थिक मदद के साथ साथ मिलकर राशन का किट बांटने वाले जुट गए। इस तरह कुल 70 लोगों की टोली बन गई। हर जुड़े युवक के सामने लक्ष्‍य था कि वह 20 जरूरतमंदों तक 20 किलो की राशन की किट पहुंचाएं। इस तरह वह अब तक इस अभियान में 2447 परिवारों को दिल्‍ली भर में मदद पहुंचा चुके हैं। यहीं नहीं, एक बार तो राशन पहुंचाए, उत्‍तर प्रदेश बार्डर सीमा में स्‍थित लोनी तक लॉकडाउन में वाहन लेकर मदद के लिए पहुंच गए। पूरे रमजान माह यह अभियान चला।

समाजसेवा से जुड़े रहते हैं कुरैशी

हालांकि, अब ईद के साथ ही इस अभियान को अब खत्‍म करने पर गंभीरता से सोच रहे हैं क्‍योंकि लॉकडाउन-4 में काम धंधे में काफी हद तक ढील मिल गई है। दुकानें भी आराम से खुलने लगी है। लोग आने-जाने लगे हैं। इर्तजा कुरैशी अपने एनजीओ मरहम के बैनर तले सालभर समाज सेवा व जागरुकता का अभियान चलाते ही रहे हैं।

चला था स्‍वच्‍छता अभियान

इसके पहले उन्‍होंने बड़े स्‍तर पर पुरानी दिल्‍ली की गलियों में स्‍वच्‍छता अभियान चलाया था। जिसमें सैकड़ों जागरुक लोगों, आरडब्‍ल्‍यूए, राजनीतिक हस्‍तियों व सफाई कर्मचारियों को साथ लाकर कई गलियों की तस्‍वीर ही बदल दी थी। बदलाव की वह तस्‍वीर आज भी यथावत है। कूड़े की ढेर से ढकी गलियों की दीवारों और किनारों की जगह हैंगिग गार्डन ने ले ली है।

ऐसे शुरू हुआ सफर
बहुराष्‍ट्रीय कंपनी में कभी काम करने वाले स्‍नातक इर्तजा का यह सामाजिक सफर वर्ष 2005 से शुरू होता है, जब उनके पिता अचानक घर से कहीं चले गए। उनकी तलाश में ये कहां-कहां नहीं भटके। मंदिर, गुरुद्वारें से लेकर रैन बसेरों में तलाशा, लेकिन वह नहीं मिले। लेकिन, इस तलाश में बेघरों से इनका एक मानवीय रिश्‍ता बन गया। उनका दर्द इनकी संवेदनाएं बन गई। अपने स्तर पर वह बेघर लोगों की मदद करने लगे। खास कर घर से नाराज होकर या रोजी रोटी की तलाश में आए युवाओं में कौशल विकास के साथ उन्‍हें शिक्षा से जोड़ने का अभियान चलाया। यहीं नहीं उनको मनाकर घर भेजने में भी मदद की। ताकि उनकी तरह कोई और परिवार अपनों की तलाश में जिंदगी को बदहाल न कर लें। तो यह सफर जारी है।

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