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महाभारत कालीन है दिल्ली का इतिहास, दिल्ली नहीं, इंद्रप्रस्थ था एनसीआर का नाम; अभिलेखों और गणनाओं से मिलते हैं प्रमाण

पौराणिक इतिहासकार मनीष के गुप्ता के मुताबिक दिल्ली को नया नाम नहीं देना है बल्कि इसके पुराने नाम को ही पुनस्र्थापित करना है। पुराण हमारे धर्मग्रंथ होने के अलावा हमारा इतिहास भी हैं। हमारे भगवान राम और कृष्ण इतिहास पुरुष हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 02:54 PM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 03:17 PM (IST)
महाभारत कालीन है दिल्ली का इतिहास, दिल्ली नहीं, इंद्रप्रस्थ था एनसीआर का नाम; अभिलेखों और गणनाओं से मिलते हैं प्रमाण
पुराना किला में पुरातत्‍व विभाग को खोदाई में मिले अवशेष

प्रियंका दुबे मेहता। दिल्‍ली की हर ईंट, हर दीवार, हर धरोहर उसकी प्राचीनता की गवाही देती है। समय के गर्भ में इसकी भारतीय प्राचीन सभ्‍यता छिपी है। इतिहास छिपा है। संस्‍कृति छिपी है। इसीलिए रह-रहकर आवाज उठती है। काश ‘इंद्रप्रस्‍थ’ हो जाए दिल्‍ली। अब देश की राजधानी को पौराणिक ऐतिहासिक इंद्रप्रस्‍थ नाम से सुसज्जित किया जाए। पुराना किला में पुरातत्‍व विभाग को खोदाई में मिले अवशेष संपुष्‍ट हैं यह बताने को कि महाभारत काल में यही इंद्रप्रस्‍थ था। हाल ही में भाजपा नेता डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया कि ‘हिंदू पुनर्जागरण के लिए दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ किया जाना जरूरी है।‘

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ऐतिहासिक धरोहर: जब हम इंद्रप्रस्थ के नाम से जुड़े साक्ष्यों की बात करते हैं तो शोधकर्ता हमें उन ऐतिहासिक आध्यात्मिक गलियों में ले जाते हैं जिनका उद्भव महाभारत कालीन है। महाभारत में जब धृतराष्‍ट्र के पुत्र दुर्योधन को राजा बनाने की बात आई तो वह नियमत गलत थी। क्योंकि राजा का वंशज और सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति का गुण जिसमें हो उसे ही राजगद्दी मिलती थी। धृतराष्‍ट्र राजा नहीं थे, वे पांडु की मृत्यु के बाद केवल संरक्षक की भूमिका में गद्दी पर बैठे थे। ऐसे में उनके पुत्र को राजा नहीं बनाया जा सकता था। उस समय विदुर ने शक्ति परीक्षा की युक्ति सुझाई और इसमें युधिष्ठिर की विजय हुई थी। फिर दुर्योधन ने कई तरह के छल किए, अज्ञातवास भेजने से लेकर लाक्षागृह तक की घटनाएं हुईं।

अंत में बात आई कि पांडवों को केवल पांच गांव दे दिए जाएं। इन गांवों में तिलप्रस्थ, बागप्रस्थ, पानीप्रस्थ, सोनीप्रस्थ और इंद्रप्रस्थ (जो उस समय खांडवप्रस्थ था) शामिल थे। इन पांचों गांवों को मिलाकर बने जनपद का नाम इंद्रप्रस्थ हुआ। उस समय इंद्रप्रस्थ आज की ही दिल्ली की तरह शहर भी था और राज्य भी। इंद्रप्रस्थ नाम को लेकर आवाज उठाने वाली नीरा मिश्रा का कहना है कि सबसे पहले महाभारत को धर्म ग्रंथ के साथ इतिहास माना जाना चाहिए। उसी इतिहास के मुताबिक पांडवों को मिली इस इंद्रप्रस्थ नगरी की नींव भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रखी गई और मां यमुना के आशीर्वाद से इसकी स्थापना हुई। इस तरह से दिल्ली-एनसीआर का पहला शहर इंद्रप्रस्थ बना और इसके कुलदेवी-कुलदेवता मां यमुना और श्रीकृष्ण हुए। आदित्य अवस्थी की पुस्तक दास्तान-ए-दिल्ली में लिखा है कि उत्तरी दिल्ली में यमुना के किनारे बसा बुराड़ी एक ऐसा नाम है जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है कि यहां पर कृष्ण का कालिंदी से विवाह हुआ था।

पेंटर अर्श अली द्वारा बनाई गई पऱाचीन काल के किले की छवि।

मुगलों और अंग्रेजों ने भी नहीं बदला था नाम : द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट की संस्थापक और प्राचीन भारतीय इतिहास सभ्यता और संस्कृति की लेखिका नीरा मिश्रा का कहना है कि दिल्ली का इतिहास पुराना है और इसकी अधूरी जानकारी के कारण इसे मुगलकालीन शहर घोषित किए जाने पर जोर दिया जा रहा है। केवल महाभारत ही नहीं, बल्कि अंग्रेजों और यहां तक कि मुगलों के दौर की किताबों और गैजेटियर में दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ मिलता है। अबुल फजल की पुस्तक आइन-ए-अकबरी में भी इंद्रप्रस्थ का नाम मिलता है कि जब हुमायूं यहां आया तो इंद्रप्रस्थ के किले (अब हुमायूं का मकबरा) में लूटपाट की। तुगलक-ए-तारीकी में भी इंद्रप्रस्थ का नाम मिलता है।

अगर इंद्रप्रस्थ महात्म्य को आधार बनाएं : प्राचीन काल में हर महत्वपूर्ण जगह का एक महात्म्य लिखा जाता था। जिस प्रकार अयोध्या महात्म्य है, द्वारका महात्म्य है, हस्तिनापुर महात्म्य है, उसी प्रकार इंद्रप्रस्थ महात्म्य भी लिखा गया था। इंद्रप्रस्थ महात्म्य, इंद्रप्रस्थ का पूरा भौगोलिक सीमांकन करता है। उसमें लिखा है कि यह भी उतना ही महान तीर्थ है जितना कि पुष्कर या प्रयागराज या हरिद्वार। महाभारत में विस्तार में शहर की योजना कैसे बनी, कैसे जंगल काटे थे, कैसे सड़कें बनी थीं। कैसे वनस्पतियों और जीव जंतुओं को यहां पुनस्र्थापित किया गया, उसका पूरा वर्णन मिलता है और पता चलता है कि दिल्ली का चिडिय़ाघर भी उसी इलाके में है और उसी समय की देन है। जिस अरण्य उत्सव का जिक्र ऋग्वेद में मिलता है उसका भी संबंध इसी समय से निकलता है।

मंगलूरु के चित्रकार जिजिथ एन रवि द्वारा किया गया युधिष्ठिर के राज्याभिषेक का चित्रांकन। सौजन्यः द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट

अभिलेखों में इंद्रप्रस्थ : अब बात करते हैं अभिलेखों में इंद्रप्रस्थ की। नीरा का कहना है कि वर्तमान में जहां रायसीना हिल्स है, वहां सरबन गांव करता था। वहां पर सन 1870 का एक प्रस्तर अभिलेख निकला। जिस पर लिखा है कि वहां के एक बड़े सेठ ने कुआं बनवाया था और उस अभिलेख में उस सेठ का नाम, तिथि, संवत और जगह का नाम इंद्रप्रस्थ लिखा है। इसी तरह एक और अभिलेख नारायणा प्रस्तर अभिलेख में भी एक ऐसे ही किसी सेठ का नाम, तिथि और स्थान इंद्रप्रस्थ लिखा है जिसने इलाके में बावड़ी बनवाई थी। तीसरा महत्वपूर्ण अभिलेख मिला मछली शहर, सुल्तानपुर में। उसमें लिखा है कि वहां के राजा इंद्रप्रस्थ का संरक्षण करते थे। जब कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद युधिष्ठिर और परीक्षित ने राज संभाला तो वे हस्तिनापुर में थे, वंशज बढ़ते गए, बाद में जगह-जगह संरक्षक बना दिए गए। चौथा अभिलेख पुराने किला में मिला था जो दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ के तौर पर स्थापित करता है। यह था 1913-14 में मिला मिहिर राजा भोज अभिलेख। नीरा के मुताबिक जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया तो शहर के इतिहास, इसकी योजना, इसके आॢकटेक्चर आदि पर काम किया। इसी दौरान यह अभिलेख मिला जिस पर परगना के तौर पर इंद्रप्रस्थ का नाम लिखा गया।

अंग्रेजों ने 1911 अपने एक नोटिफिकेशन में पुराना किला का मौजा इंद्रप्रस्थ लिखा। जिला की तरह मौजा हुआ करता था। हरियाणा में मौजा शब्द प्रयुक्त होता था। हरियाणा का इलाका भी इंद्रप्रस्थ राज्य का हिस्सा था। नोटिफिकेशन आने के बाद प्लानिंग शुरू हुई तो पुराना किला के अंदर बाहर पक्की आबादी थी। उस समय के पक्के घरों के चित्र भी मिलते हैं। जब अंग्रेजों ने पुराना किला के इलाके से आबादी हटाकर उसको संरक्षित साइट बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया उस दौरान यह अभिलेख मिला था। इसके बाद 1925-26 में पुरातत्व विभाग द्वारा एके घोष का एक नोटिफिकेशन आया था जिसमें यह लिखा था कि इस तरह का अभिलेख मिला। यह अभिलेख पुरातत्व विभाग ने अभी तक डिस्प्ले नहीं किया है। नीरा का कहना है कि जब आवाज उठाई गई तो राजा भोज वाला अभिलेख चुपचाप पुराना किला में डिस्प्ले में रख दिया गया। राजा भोज का नाम यहां मिलना एक महत्वपूर्ण प्रमाण है कि इंद्रप्रस्थ यही था, क्योंकि राजा भोज पांचाल से ताल्लुक रखते थे। इन अभिलेखों के अलावा राजस्थान के नाथद्वारा द्वारा प्रकाशित वंशावली के आधार पर स्वामी दयानंद सरस्वती ने कालक्रमिक व्यवस्थित वर्णन किया है जिसमें चार हजार से अधिक वर्षों तक का युधिष्ठिर से लेकर राजा यशपाल तक 124 इंद्रप्रस्थ के राजाओं का जिक्र मिलता है।

मंदिरों से मिलते संकेत : ऐतिहासिक तथ्य मंदिरों के रूप में भी मिलते हैं। जब राजधानी बनकर तैयार हुई तो राजघाट में यज्ञ युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के लिए एक बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ था। उस दौर में देश-विदेश से सौ राजा पहुंचे थे। यह इलाका राजघाट था, यानी कि राजा का घाट। इसी तरह महरौली में योगमाया मंदिर है जिसे कुछ पुस्तकों में योगिनीपुरा के नाम से भी जिक्र मिलता है। महरौली को लेकर माना जाता है कि मिहिर राजा भोज के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा था। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यहां योगमाया भगवान कृष्ण की बहन थीं और उन्हीं के लिए यह मंदिर बना था। यहां के पंडितों के पास इसका इतिहास है। इसके अलावा पुराना किला में कुंती मंदिर है जो पांडवों ने अपनी माता कुंती के लिए बनवाया था। हालांकि मुगलों ने वहां भी छेड़छाड़ की लेकिन अभी भी एक भारद्वाज परिवार द्वारा इसका संरक्षण कर रहा है।

मानचित्र और घटनाओं की गणना से मिलते हैं प्रमाण : पौराणिक इतिहासकार मनीष के गुप्ता के मुताबिक दिल्ली को नया नाम नहीं देना है बल्कि इसके पुराने नाम को ही पुनस्र्थापित करना है। पुराण हमारे धर्मग्रंथ होने के अलावा हमारा इतिहास भी हैं। हमारे भगवान राम और कृष्ण इतिहास पुरुष हैं। हम हजारों वर्ष पुराने इतिहास को आज ऐसे ही नहीं समझ सकते। मध्य प्रदेश के भीमबेटका में रंगीन चित्र मिलता है, लेकिन हमारे विशेषज्ञों की समझ से परे होता है। ऐसा ही महाभारत के साथ भी है। इंद्रप्रस्थ खांडवप्रस्थ क्षेत्र था। तकरीबन पांच साल पहले पुराना किला में खोदाई हुई तो महाभारतकालीन चीजें मिलीं। उसी पुराने किले के पीछे एक पांडव कालीन भैरव बाबा मंदिर है। मंदिर अगर पांडव कालीन है तो वहीं क्यों मिला, क्योंकि वही केंद्र था। हम कुरुक्षेत्र जानते हैं, हस्तिनापुर कहां है, वह जानते हैं, उस समय का शूरसेन यानी कि आज का मथुरा कहां है, यह पता है। इस हिसाब से पुराने मानचित्रों और तथ्यों के हिसाब से गणना और महाभारत की व्याख्या करते हैं कि किस स्थान पर जाने में कितना समय लगा, आंकड़ों को सेट करते हैं, तो निकलता है कि दिल्ली वही क्षेत्र है जो हस्तिनापुर, कुरुक्षेत्र और मथुरा के बीच स्थित इंद्रप्रस्थ था।

कलश यात्रा से संदेश देने का प्रयास : दिल्ली को इंद्रप्रस्थ बनाने के लिए प्रयासरत लोगों का कहना है कि वे इस इंद्रप्रस्थ का नाम नहीं बदल रहे हैं बल्कि इसकी घर वापसी करने की कोशिश कर रहे हैं। इस बारे में हाल ही में यमुनोत्री से मथुरा तक की कलश यात्रा के दौरान यमुना तट पर कृष्ण कालिंदी विवाह कराने वाले रंजीत चतुर्वेदी पाठक का कहना है कि जब हम गीता की कसम खाते हैं, रामायण महाभारत की दुहाइयां देते हैं तो इंद्रप्रस्थ के नाम को स्वीकारने में क्या दिक्कत है। उनका कहना है कि महाभारत एक धर्मयुद्ध था जो अधर्म को समाप्त करने के लिए लड़ा गया था। उस समय अधर्म इतना बढ़ गया था कि भरी सभा में एक रानी का चीरहरण हुआ, ऐसे में भगवान कृष्ण उस अधर्म का नाश करना चाहते थे। इसी तरह से एक बार कलयुग में भी अधर्म बढ़ रहा है और धर्म की तरफ लौटने का एक रास्ता है कि हम अपने कुलगुरुओं और अपने पूर्वजों को पहचानें, दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ करें ताकि यहां पर पाप और अपराध कम हों और शांति स्थापित हो सके।

एक प्रमाण युद्ध की तिथि से भी : कुरुक्षेत्र के युद्ध की तिथि की गणना भी आधुनिक साफ्टवेयर के हिसाब से की गई है। नीरा मिश्रा का कहना है कि युद्ध 3067 ईसा पूर्व में हुआ था। महाभारत के शुरू में लिखा है कि यह इतिहास है। हमारे यहां नक्षत्र और पंचांग सब महत्वपूर्ण होते थे। जैसे सैटेलाइट को भेजने के लिए जलवायु परिस्थितियां देखी जाती हैं वैसे ही उस समय भी ज्योतिषीय गणना करके काम आरंभ किया जाता था। इसकी विवेचना महाभारत में है। महाभारत की यह तिथि विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने निकाली है।

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