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जामा मस्जिद बचाने को बनी थी गाजीपुर मुर्गा मंडी, जानें- क्या है ऐतिहासिक कनेक्शन

गाजिपुर मुर्गा मंडी में मुर्गे न काटने संबंधी हाई कोर्ट के आदेश से जहां आसपास रहने लोगों ने राहत की सांस ली है। वहीं दुकानदारों में हड़कंप मचा हुआ है। वह खुद को ठगा महसूस कर रहे।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 02:55 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 02:55 PM (IST)
जामा मस्जिद बचाने को बनी थी गाजीपुर मुर्गा मंडी, जानें- क्या है ऐतिहासिक कनेक्शन
जामा मस्जिद बचाने को बनी थी गाजीपुर मुर्गा मंडी, जानें- क्या है ऐतिहासिक कनेक्शन

नई दिल्ली (शुजाउद्दीन)। 33 साल पहले वर्ष 1985 में दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर जामा मस्जिद को बचाने के लिए वहां की मांस व मुर्गा मंडी को शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई थी। ये कवायद दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल ने शुरू की थी। इसके बाद वर्ष 1991 में वहां के मांस विक्रेताओं को गाजीपुर मुर्गा मंडी में इस भरोसे के साथ दुकानें अलॉट की गईं थीं कि उन्हें सभी सुविधा मिलेंगी। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब यहां भी उनके व्यापार पर खतरा मंडराने लगा है।

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होलसेल पोल्ट्री मार्केट एसोसिएशन गाजीपुर मुर्गा मंडी के अध्यक्ष सलाउद्दीन कहते हैं कि कोर्ट का फैसला मानना ही होगा, लेकिन वर्ष 1991 के समय की दिल्ली सरकार ने आढ़तियों के साथ बड़ा धोखा किया है। मंडी के अधिकांश आढ़ती जामा मस्जिद इलाके के हैं। 1985 में तत्कालीन उपराज्यपाल ने जामा मस्जिद इलाके में मुर्गा बेचने वालों के साथ बैठक की थी।

बैठक में उपराज्यपाल ने कहा था कि जामा मस्जिद ऐतिहासिक स्थल है। इसके आसपास मीट की दुकानें चलाने से स्थल पर असर पड़ रहा है। उस वक्त दुकानों को स्थानांतरित करने के लिए गाजीपुर और मदनपुर खादर इलाके का प्रस्ताव रखा था। साथ ही मंडी में सभी सुविधाएं देने का वादा किया गया था। दुकानदारों ने गाजीपुर के लिए हां कह दिया।

सरकार ने लाइसेंस लेने से मना किया था

सलाउद्दीन बताते हैं कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 1991 में गाजीपुर में दुकानदारों को जगह मिल गई। तभी से मंडी में मुर्गे बेचे जा रहे हैं। मंडी में 87 आढ़ती हैं। गाजीपुर मंडी में आने से पहले इनके पास निगम का लाइसेंस था, लेकिन दिल्ली सरकार ने कहा कि अब निगम के लाइसेंस की जरूरत नहीं है क्योंकि यह मंडी सरकारी है। अब कोर्ट का कहना है कि यहां के दुकानदारों के पास लाइसेंस नहीं है। इसलिए वह मुर्गा नहीं काट सकते। दिल्ली सरकार ने आढ़तियों के साथ धोखा किया है। सरकार की देखरेख में करीब 26 साल से मंडी में मुर्गे काटे जा रहे हैं। नगर निगम और सरकार की लड़ाई में आढ़ती पिस गए। अगर सब गैरकानूनी है तो सरकार ने वर्ष 1991 से लेकर अब तक तीन बार क्यों बूचड़खाने के हिस्से को बढ़ाया है।

रोज यहां बिकता है चार लाख किलो मांस

गाजीपुर मुर्गा मंडी में रोजाना बिकने वाला चार लाख किलो मांस कोर्ट के आदेश के बाद मंडी में नहीं कटेगा। मंडी से पूरी दिल्ली में मुर्गे और उसके मांस की आपूर्ति होती है। हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक के बाद फाइव स्टार होटल, व्यापारी और ग्राहक इस बात से चिंतित हैं कि वे चिकेन कहां से लाएंगे। आढ़तियों के सामने रोजी-रोटी का संकट भी पैदा हो गया है। उनका मानना है कि छोटे दुकानदार मुर्गे की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे।

मंडी परिसर के बिजली प्लांट पर संकट

दिल्ली सरकार गाजीपुर मंडी परिसर में एक प्लांट लगा रही थी, जिसमें मुर्गे के अवशेष से बिजली बनती। अगले छह माह में यह प्लांट शुरू होने वाला था, लेकिन कोर्ट ने मंडी में मुर्गो के काटने पर रोक लगा दी है, ऐसे में इस प्लांट की योजना को ग्रहण लग सकता है।

हाई कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य

गाजीपुर मंडी में मुर्गों के काटने पर रोक से यहां के लोगों को काफी राहत मिलेगी। वे काफी समय से परेशान थे। यह कहना है इलाके के निगम पार्षद राजीव चौधरी का। चौधरी कहते हैं कि मंडी में मुर्गों को काटे जाने से एनएच-9 से लेकर कागज मंडी और आसपास की कॉलोनियों में पंख उड़ते हैं। मुर्गे के मांस के अवशेष भी चील दूर तक फैला देते हैं। घरों व बालकनी में भी मांस का टुकड़ा गिरता है। मुर्गों के अवशेष सीधे लैंडफिल साइट पर डाल दिए जाते हैं। मंडी के चारों ओर भी मांस फैला रहता है। हाई कोर्ट के फैसले से राहत मिलेगी।

वहीं, पूर्वी दिल्ली नगर निगम के उपनिदेशक डॉ. एमएल शर्मा कहते हैं कि मंडी में मुर्गा काटने के लिए निगम से लाइसेंस लेना जरूरी है, लेकिन मंडी प्रशासन ने लाइसेंस नहीं लिया था। नियमों का भी पालन नहीं किया जा रहा था। दिल्ली सरकार ने इस कार्य के लिए प्रशासन को अधिकृत किया था। इसी वजह से निगम कार्रवाई नहीं कर रहा है। जिस तरह नगर निगम ने बकरे व भैंस के लिए आधुनिक स्लाटर हाउस (बूचड़खाना) बनाया है, उसी तरह मुर्गे के लिए भी बूचड़खाना बनाने की जरूरत है।

कोर्ट के आदेश से दुकानदारों में हड़कंप

हाई कोर्ट के आदेश के बाद से गाजीपुर मुर्गा मंडी के दुकानदारों में हड़कंप मचा हुआ है। दुकानदार सलीम के अनुसार मंडी से मुर्गा कटकर दिल्ली में नहीं गया तो लोग अवैध रूप से दुकानें बनाकर इसे बेचेंगे। फाइव स्टार होटलों, ढाबों से लेकर शादी समारोह तक में मुर्गा यहीं से जाता है। मंडी में एक दिन में चार लाख किलो मुर्गा कटता है। अगर मुर्गा मंडी में नहीं गया तो लोग इसका मांस नहीं खा पाएंगे।

होलसेल पोल्ट्री मार्केट एसोसिएशन के संस्थापक मो. उमर के अनुसार आढ़ती कोर्ट की शरण में जाएंगे। मुर्गा नहीं कटेगा तो व्यापारी सड़क पर आ जाएंगे। जब से मंडी बनी है तब से लेकर सरकार ने एक बार भी नहीं बताया कि मंडी में अवैध तरीके से मुर्गा कट रहा है। सरकार को बताना चाहिए था कि निगम से लाइसेंस लेकर ही मुर्गा काटा जा सकता है।

गाजीपुर मुर्गा मंडी के चेयरमैन नासिर अली अलवी के अनुसार कोर्ट का फैसला तो मानना पड़ेगा, लेकिन व्यापारियों के बारे में भी सोचना है। आज (मंगलवार को) आढ़तियों के साथ दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय के पास जा रहा हूं। वह जरूर कुछ न कुछ हल निकालेंगे।


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