देश को पहली सबसे लंबी सड़क देने वाले शेरशाह सूरी के स्मारक पर लगा ताला
शेरशाह सूरी गेट पर छह साल से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का ताला लगा हुआ है। ताला लगा होने का कारण स्मारक का जर्जर होना है।
नई दिल्ली (वी.के.शुक्ला)। देश को सबसे लंबी सड़क देने वाले शेरशाह सूरी के स्मारक पर ताला लगा दिया गया है। जी हां, हम यहां बात कर रहे हैं शेरशाह सूरी की, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में जीटी रोड का पुनर्निमाण कराया था। उस वक्त इस मार्ग को सड़क-ए-आजम नाम से जाना जाता था। उनके मथुरा रोड स्थित राष्ट्रीय महत्व के स्मारक शेरशाह सूरी गेट पर छह साल से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का ताला लगा हुआ है। ताला लगा होने का कारण स्मारक का जर्जर होना है। यह आलम उस एएसआइ का है जो इसके ठीक सामने पुराना किला में व्यवस्थाएं बहाल करने पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है। मगर इस स्मारक का संरक्षण नहीं करा सका।
पुराना किला के ठीक सामने यह गेट लाल दरवाजा के नाम से भी मशहूर है। 2012 में हुई तेज बारिश में ऐतिहासिक शेरशाह गेट के पास की एक दीवार ढह गई थी। गेट भी गिरने की स्थिति में था। उस समय एएसआइ ने आनन फानन में इस गेट के आधे हिस्से में ईंटों की दीवार खड़ी कर गेट को बचा लिया था। मगर इस गेट से ईंटों की दीवार को छह साल बाद भी एएसआइ नहीं हटा सका है।
पांच साल बाद दिसंबर 2017 में इस गेट के संरक्षण का काम शुरू किया गया था। मगर कुछ माह बाद ही बंद हो गया। बताया जा रहा है कि एएसआइ इस कार्य को अपने कर्मचारियों से करा रहा था। मगर एएसआइ द्वारा निकाले गए अस्थायी कर्मचारियों के कारण यह कार्य भी बंद हो गया। उसके बाद एएसआइ ने इस कार्य के लिए टेंडर निकाले थे। मगर कोई कंपनी काम लेने नहीं आई। इसके चलते यह कार्य फिर से शुरू नहीं हो सका है। लिहाजा अब स्मारक में पर्यटकों के प्रवेश की अनुमति नहीं है।
दिल्ली के मशहूर 13 दरवाजों में से एक
इस गेट को शेरशाह सूरी ने वर्ष 1540 में बनवाया था। यह दिल्ली के प्रवेश द्वारों में से एक है। इसकी ऊंचाई 15.5 मीटर है। यह पुराने किले के सामने स्थित है। यह दिल्ली के मशहूर 13 दरवाजों में से एक है। इसकी मरम्मत नहीं किए जाने से यह बंद है।
16वीं शताब्दी में जीटी रोड का कराया था पुनर्निमाण
करीब 2500 किमी लंबे जीटी रोड को देश के सबसे पुराने और लंबे सड़क मार्ग के तौर पर जाना जाता है। यह दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और लंबे रास्तों में से एक है। यह मार्ग हावड़ा के पश्चिम में स्थित बांग्लादेश के चटगांव से शुरू होकर लाहौर (पाकिस्तान) होते हुए अफगानिस्तान के काबुल तक जाता है। दो सदियों से ज्यादा वक्त तक इस मार्ग ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी भागों को जोड़ने का काम किया था।
पूर्व में इसे उत्तर पथ, शाह ऱाह-ए-आजम, सड़क-ए-आजम और बादशाही सड़क के नाम पर जाना जाता था। यह मार्ग मौर्य साम्राज्य के वक्त अस्तित्व में आया था। इसका पुनर्निमाण शेरशाह सूरी ने कराया था। सड़क का काफी हिस्सा वर्ष 1833 से 1860 के बीच ब्रिटिश शासन द्वारा उन्नत तरीके से बनाया गया था। अब भी यह सड़क बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को जोड़ती है।