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हिंदी का गुन गा रहे हैंं विदेशी छात्र, JNU व DU में अफ्रीका व यूरोपीय देशों की संख्‍या बढ़ी

यह खबर पढ़कर आप भी चकित रह जाएंगे कि जहां एक ओर हमारा रुझान अंग्रेजी भाषा की ओर बढ़ रहा है, वहीं विदेशी छात्रों की हिंदी भाषा के प्रति दिलचस्‍पी लगातार बढ़ रही है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 20 Sep 2016 11:28 AM (IST)Updated: Tue, 20 Sep 2016 12:49 PM (IST)
हिंदी का गुन गा रहे हैंं विदेशी छात्र, JNU व DU में अफ्रीका व यूरोपीय देशों की संख्‍या बढ़ी

नई दिल्ली [ अभिनव उपाध्याय ] । हिंदी दिवस पर भले ही हिंदी के प्रचार प्रसार और उसे बढावा देने की कसमें खाई जा रही हों, लेकिन यदि विश्वविद्यालयों में देखे तो यहां पर प्रतिवर्ष हिंदी में दाखिला लेने वाले छात्र छात्राओं के आवेदन संख्याओं में इजाफा हो रहा है।

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डीयू एवं जेएनयू में ही नहीं बल्कि जामिया और अन्य विश्वविद्यालयों में यह आंकडा दिन प्रतिदिन बढ रहा है। इसे पढने के लिए न केवल एशियाई देशों के बल्कि अफ्रीकी और यूरोपीय देशों के छात्र भी आवेदन कर रहे हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन फारेन स्टूडेंट डा.अमृत कौर बसरा का कहना है कि विदेशी छात्रों का भारत के प्रति रुझान बढ़ा है और हिंदी भाषा को संपर्क माध्यम के रूप में छात्र रखना चाहते हैं, ताकि वह भारत को ठीक से जान समझ सकें।

इस सत्र में विश्वविद्यालय में मंगोलिया, ईरान, चीन, जापान, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात सहित बांग्लादेश और अन्य देशों के छात्र छात्राओं ने दाखिला लिया है। कोई आनर्स कोर्स करने आया है तो कोई डिप्लोमा और कोई सर्टिफिकेट कोर्स। पीएचडी और भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने भी ईरान और श्रीलंका के छात्रों ने दाखिला लिया है। यह हिंदी की विदेशों में स्वीकार्यता को दर्शाता है।

जेएनयू में हिंदी के प्राध्यापक डा. गंगा सहाय मीणा का कहना है कि विश्व में हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ी है। हमें समझना होगा कि हिंदी पढ़ने के लिए सभी छात्र भारत के विश्वविद्यालयों में नहीं आ सकते। जेएनयू में ही अन्य देशों के साथ समझौता हुआ है और वहां से छात्र यहां हिंदी पढ़ने आते हैं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि वह जेएनयू में दाखिला नहीं पाते क्योंकि यहां प्रवेश परीक्षा और अन्य प्रावधान हैं। लेकिन आवेदकों की संख्या बढ़ी है यह हिंदी के लिए सकारात्मक संकेत है।

जेएनयू में ही कोरियाई अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष डा. रविकेश का कहना है कि हिंदी के प्रचार प्रसार में न केवल भारत बल्कि भारत के बाहर हिंदी फिल्मों का काफी योगदान है। हमारे यहां कोरिया के छात्र हिंदी गानों में काफी रुचि लेते हैं और वह हिंदी सीखना चाहते हैं यही नहीं फिल्मों का इतना प्रभाव है कि कई छात्र अपना नाम आमीर और शाहरुख भी रख लेते हैं।


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