Move to Jagran APP

Happy Mother's Day 2021 : कोरोना जैसे मुश्किल हालात में जीत रही शक्ति दुलार की

दुलार की शक्ति से ही मां कोरोना की इस भीषण जंग को जीत रही है। मांएं जब कोरोना पॉजिटिव हुईं तो बच्चों की देखभाल के गंभीर सवाल ने उन्हें कोरोना की दुश्वारियों के साथ उलझाया लेकिन उन्होंने इसे अपने हौसले और सूझबूझ से सुलझाया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 03:24 PM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 03:24 PM (IST)
Happy Mother's Day 2021 : कोरोना जैसे मुश्किल हालात में जीत रही शक्ति दुलार की
मां तुम हो ममता की धारा, तुम्हारा त्याग नहीं कभी हारा।

नई दिल्‍ली, यशा माथुर। कहते हैं कि मां का प्यार नौ महीने ज्यादा होता है। दुनिया तो गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चे को प्यार देती है, लेकिन मां उसे अपने भीतर पहले ही नौ महीने दुलारती है। इस दुलार की शक्ति से ही मां कोरोना की इस भीषण जंग को जीत रही है। मांएं जब कोरोना पॉजिटिव हुईं तो बच्चों की देखभाल के गंभीर सवाल ने उन्हें कोरोना की दुश्वारियों के साथ उलझाया, लेकिन उन्होंने इसे अपने हौसले और सूझबूझ से सुलझाया। जब जरूरत पड़ी अपने संक्रमित बच्चों को कोरोना के कहर से उबारने की तो वे पूरी शक्ति के साथ लड़ पड़ीं महामारी से। मां के इसी हौसले के कोरोना पर भारी पड़ने की कहानियां अनूठी हैं...

loksabha election banner

मां तुम हो ममता की धारा, तुम्हारा त्याग नहीं कभी हारा। आज जब एक वायरस ने दुनिया को तहस-नहस करने की ठानी है तब तुमने भी इसे पराजित करने की ठानी है। संक्रमण की चपेट में अगर तुम आ गईं तो बच्चे को बचाने और उसे गले लगाने के लिए अकेलेपन से लड़ीं तुम, कोरोना के कहर को झेलने के बाद ही कमरे से बाहर निकलीं तुम। इस बीच सहन की बच्चों की जुदाई, भावनाओं से किया मुकाबला, रोईं, तड़पीं, लेकिन बच्चों को न तो टूटने दिया न हताश होने दिया।

पीपीई किट पहन वार्ड में रही मां

करीब पौने तीन साल की बेटी कोरोना वार्ड में थी तो मां घर पर चैन से कैसे रह सकती थी। लगातार डराने वाली खबरें मिल रहीं थीं। पंजाब के पटियाला जिले के राजपुरा की मोनिका ने तय किया कि वह बेटी के साथ कोविड वार्ड में ही रहेंगी। परिवार ने मना किया, लेकिन मोनिका ने कहा कि वह बेटी के स्वस्थ होने तक घर पर नहीं बैठ सकतीं। इसके बाद डॉक्टरों से सलाह कर पीपीई किट पहन वार्ड में बेटी नितारा के साथ रहने लगीं। मोनिका के लिए दोहरी चुनौती थी, एक तो बेटी की सही ढंग से देखभाल करना और दूसरा खुद को कोरोना संक्रमण से बचाना। दिन के 24 घंटों में से 20 घंटे से ज्यादा वह पीपीई किट में रहतीं। बचे समय में नहाना, किट बदलना, नाश्ता और भोजन करना महत्वपूर्ण काम थे। मोनिका कहती हैं, मैं पिछले साल 15 अप्रैल से 21 मई तक राजिंदरा अस्पताल के कोविड वार्ड में रही। बेटी से मुझे हौसला मिलता था। बेटी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर मैं कुछ देर के लिए बीमारी के बारे में भूल जाती थी। बेटी को दुलार भी जरूरी था, लेकिन साथ में खुद को भी संक्रमित होने से बचाना था। डॉक्टर जैसा बताते गए, मैं वैसा ही करती गई। इससे बेटी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ साथ ही अपने टेस्ट करवाती रही। मेरी रिपोर्ट हमेशा निगेटिव ही आई। मैंने एक क्षण के लिए भी निराशा को खुद पर हावी नहीं होने दिया। इसी का नतीजा था कि 35 दिन के बाद बेटी को पूरी तरह ठीक करवाकर ही वार्ड से बाहर निकली। मोनिका के पति बलराम बुद्धिराजा भी कहते हैं कि लगातार पीपीई किट पहनने से मोनिका की स्किन खराब हो गई थी। चेहरे पर लाल निशान पड़ गए थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जब मोनिका कोविड वार्ड से बाहर आईं तो उनके चेहरे पर जीत की अजब सी चमक थी। हालांकि, घर आकर एक सप्ताह तक स्किन का इलाज कराना पड़ा। परिवार का हर सदस्य उन 35 दिनों को अक्सर याद करता है। हम सब उनके हौसले के लिए उन्हें सलाम करते हैं।

फोन पर बेटे को सुनाती लोरी

कहते हैं मां धरती पर भगवान का दूसरा रूप होती है। बच्चे की तकलीफ का सबसे पहले मां को पता चलता है। कोरोना काल में भी महामारी की चपेट में आए तमाम परिवारों में मांओं ने खुद संक्रमित होने पर भी धैर्य से अपने नन्हे-मुन्नों को संक्रमण से बचाया। कुछ ऐसी ही कहानी है प्रीति राय की। उनकी ससुराल बलिया शहर से सटे मुबारकपुर गांव में है। पति सत्येंद्र राय उत्तर प्रदेश के चंदौली में पुलिस विभाग में कार्यरत हैं। पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण की पहली लहर बेकाबू हुई तो पति व दो वर्षीय बेटे प्रांजल व पांच साल की बेटी किंजल के साथ वह मुबारकपुर आ गईं। यहां टेस्ट कराया तो पति-पत्नी पॉजिटिव निकले। यही नहीं, सास व ननद भी संक्रमण की जद में आ गई थीं। प्रशासन ने पूरे इलाके को हॉटस्पॉट घोषित कर दिया था। अब प्रीति को खुद से ज्यादा बच्चों की चिंता सताने लगी। सबसे बड़ी चुनौती तो दो साल के बेटे को खुद से दूर रहने के लिए मनाने की थी। संकट की इस घड़ी में उन्होंने हिम्मत बनाए रखी और डॉक्टर की सलाह से सबकी दवा शुरू की। इसके बाद पति से विचार-विमर्श करने के बाद घर के दूसरे तल पर देवर सोनू के साथ दोनों बच्चों को रखने की व्यवस्था की। हालांकि बच्चों को खुद से दूर करने का फैसला उनके लिए आसान नहीं था। बच्चों के बिना पहली रात तो उन्हेंं नींद ही नहीं आई। प्रीति कहती हैैं, बेटा भी मेरे बिना सोता नहीं है। कभी-कभी मैं रो पड़ती थी तो पति समझाते थे। बच्चे भी उन्हेंं ही ढूंढ़ते। ऐसे में वह वीडियो कॉल कर उनसे बात करतीं और फोन पर लोरी सुनाकर सुलाती थीं। जब कभी वे मिलने की जिद पकड़ लेते तो दरवाजे के पीछे से बात कर उन्हेंं बहलाती। जिंदगी के वे 12 दिन कभी नहीं भूलेंगे। उन दिनों को यादकर प्रीति की आंखों में आंसू आ जाते हैं साथ ही संक्रमण से बचने के लिए जरूरत न होने पर घर से न निकलने, मास्क पहनने और शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने की दूसरों से भी अपील करती हैं।

बेटे को कोरोना से निकाला

इस बार कोरोना संक्रमण की भयावहता ऐसी है कि संक्रमित होने की खबर सुनते ही अपने भी साथ छोड़ जाते हैं, लेकिन एक मां ही है, जो अपनी परवाह किए बगैर संक्रमित बच्चे की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ती। इंदौर की शिक्षिका डॉ. संगीता भारुका ने भी बेटे के संक्रमित होने के बाद घर पर पूरे समय उसकी देखभाल की। जब तक बेटे का संक्रमण ठीक नहीं हो गया तब तक वह लगातार उसके साथ बनी रहीं। डॉ. संगीता के 25 वर्षीय बेटे हिमांशु संक्रमित हो गए थे। शहर के अस्पतालों में बेड के साथ-साथ दवाइयों की भी जबरदस्त किल्लत है। ऐसे में डॉ. संगीता ने घर पर ही बेटे की देखरेख करने का फैसला किया। 15 दिन बेटा होम आइसोलेशन में रहा, लेकिन मां ने कभी उसे यह एहसास नहीं होने दिया कि वह बीमारी से जूझ रहा है। इस दौरान बेटा उनसे कहता रहा कि वह दूर रहें, लेकिन वह बेटे की देखभाल करती रहीं। वह दिन में कई बार बेटे से बात करती थीं। रोजाना अपने हाथों से बना पौष्टिक आहार भी बेटे को देती थीं। बेटे को समझाती रहीं कि बस कुछ ही दिन में सब ठीक हो जाएगा। डॉ. संगीता कहती हैं, बेटे के संक्रमित होने के बाद मुझे थोड़ा तनाव हो रहा था, लेकिन मैंने सोचा कि इस समय अगर हम खुद मायूस हो गए तो बेटे को हिम्मत कौन देगा। शिक्षिका होने के नाते मुझे पता था कि बच्चे जब किसी परेशानी में होते हैं तो उन्हेंं किस तरह से हौसला देना है और खुश रखना है। मैंने अपने बेटे को बिल्कुल भी एहसास नहीं होने दिया कि उसे कोई बड़ी समस्या हो गई है। ऐसा पहली बार हुआ था जब मैं अपने बेटे से कुछ ही कदम दूर थी, लेकिन उसके पास नहीं जा सकती थी। मुझे लगता है कि घर में मां की भूमिका बच्चों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है। डॉक्टर बच्चों के सामने कुछ भी कहें, लेकिन अगर मां कह देती है कि कुछ नहीं हुआ। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा तो इससे बच्चों में हिम्मत आ जाती है। मेरा बेटा अब अच्छा हो चुका है और मुझे खुशी है कि बिना करीब गए मैंने उसकी हर तरह से देखरेख की और उसे खुश रखने की कोशिश की। अब मैं और बेटा साथ में मिलकर दूसरों को हौसला देने का कार्य कर रहे हैं।

बच्चे के लिए जल्दी ठीक होना है

कोमल चौधरी, चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर, दक्षिणी दिल्ली

मैं दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग से जुड़ी हूं। वहां पर मेरी भूमिका ही बच्चों को संभालने की है। वैसे भी मुझे बच्चों से बहुत लगाव है। मैं अपने आपको बहुत ज्यादा बचाकर रख रही थी, क्योंकि मुझे पता था कि मेरा सत्रह महीने का बेटा विश्रुत पूरी तरह से मुझ पर निर्भर है और मेरे पास ऐसा कोई विकल्प भी नहीं है, जो घर पर उसको संभाल ले। पति भी आवश्यक सेवाओं में हैं और उन्हेंं ऑफिस जाना ही पड़ता है। इस बीच जब एहसास हुआ कि मुझे कोरोना का संक्रमण हो रहा है तो मैंने अपने आपको दूसरे कमरे में बिल्कुल अलग कर लिया। विश्रुत मेरे दरवाजे पर बैठा मम्मा, मम्मा पुकारता रहता, क्योंकि अब तक उसने मम्मा और पापा ही कहना सीखा है। मैंने पति से बोला कि आप इसका ध्यान रखिए। जब टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो मैं बहुत परेशान हो गई कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? मेरे बच्चे को अब 15 दिन तक कौन संभालेगा? मेरे बेटे को हर वक्त मेरे साथ ही चिपके रहने की आदत थी। मुझे भी लगा कि मैं उसके बिना कैसे रहूंगी? वह मेरे साथ खेलता-कूदता रहता था और अब मैं उसे छू भी नहीं सकती थी। उसके पापा ही उसे खिला-पिला रहे थे। मुझे लग रहा था कि जल्दी से ठीक हो जाऊं, अपने बच्चे के पास जाऊं और उसे गले लगाऊं। इसी हौसले और प्रेरणा से बहुत जल्दी मेरी रिकवरी हुई। मैं लगातार भगवान से प्रार्थना करती रही कि किसी भी बच्चे को उसकी मां से दूर न करें। आज मेरा बच्चा मुझसे दूर है तो मुझे उस मां का कष्ट समझ में आ रहा है, जो अपने बच्चे को मजबूरी में छोड़ती है। समझ रही हूं कि उस पर क्या बीतती है। अब मैंने अपनी मां की मदद मांगी है और अपने बच्चे को मां के घर छोड़ा है। जब वह जा रहा था तो उसे बहुत दुख हो रहा था। कई दिनों से विश्रुत मुझसे दूर है और उसे मोबाइल पर देखकर मैं रो भी नहीं सकती, क्योंकि वह मोबाइल पर फोटो देखते ही मां-मां की आवाज लगाने लगता है। उसकी भाषा मैं ही समझती हूं कि उसे कब भूख लगी है और कब प्यास? कब उसे वॉशरूम जाना है? उसके साथ मैंने जो समझ विकसित की है उसे मैं ही जानती हूं। मुझे मम्मी को बताना पड़ता है कि कब वह दूध पिएगा और कब खाना खाएगा? मुझे अपने बच्चे के लिए जल्दी से ठीक होना है और उसे गले लगाना है। हालांकि शरीर में बहुत कमजोरी हो रही है। संक्रमण का प्रभाव अधिक होने के बावजूद ठीक होने की मेरी इच्छाशक्ति तीव्र है।

बच्चों के लिए जीतनी थी जंग

रचना सतीजा, लेबर लॉ कंसल्टेंट

मेरे तीन बच्चे हैं। 14 साल की बेटी दिव्या, 10 साल की बेटी हिमाक्षी और आठ साल का बेटा गौरांग। बच्चों से मैंने कभी जताया ही नहीं कि मैं बीमार हूं। मैंने हमेशा बच्चों से हंसकर बात की ताकि उन्हेंं डर के माहौल में दिन न बिताने पड़ें। जब वे पूछते कि मां आप कैसी हो? तो मैैं कहती कि ठीक हूं और कुछ दिन बाद आपसे मिलूंगी ताकि परिवार में किसी को संक्रमण की गुंजाइश न रहे। बच्चों को भी लगता कि उनके डरने वाली बात नहीं है। जैसे ही मुझे पॉजिटिव होने के लक्षण मिलने लगे मैं परिवार से अलग हो गई थी। मैं सेहत को लेकर सजग हूं तो मुझे बहुत अधिक परेशानी नहीं हुई। हमारा घर दो मंजिला है तो बच्चों को बहुत जल्दी दूसरी मंजिल पर भेज दिया। बच्चे और पति ठीक रहे, लेकिन बच्चों को छोड़ कर अकेले कमरे में बंद रहना मुझे बहुत बुरा लग रहा था। आइसोलेशन के दौरान मुझे अपनी एक अच्छी दोस्त के निधन की खबर मिली तो नकारात्मक विचार भी मन में आने लगे। मुझे लगा कि मैं भी बचूंगी नहीं। मेरा बुखार भी नहीं उतर रहा था, लेकिन मैंने खुद को संभाला और समझाया कि अपने बच्चों के लिए मुझे यह जंग जीतनी ही है। मुझे कोविड को हराना ही है। कमरे के बाहर पति मुझसे दूर से बात करते थे और हौसला देते थे। भावनात्मक सपोर्ट तो उन्होंने ही दिया।

कई रातें सोई नहीं

सुमन गोस्वामी, होममेकर

मेरी जिंदगी में जबसे मेरा बेटा धैर्य आया है तबसे मैं उससे बहुत देर तक कभी अलग नहीं रही। उससे दूर हूं, उसे देख नहीं पा रही हूं। मोबाइल पर छोटा बच्चा कभी बात करना चाहता है, कभी नहीं। कई बार वह भावुक हो जाता है तो मैं सोचती हूं कि उससे कम ही बात करूं ताकि वह बार-बार मुझे देखकर परेशान न हो। पहले मेरी सासू मां को कोराना हुआ फिर मुझे। इससे खाना बनाने की भी दिक्कत होने लगी। पति ने कभी खाना बनाया नहीं था और बच्चे को हरदम कुछ न कुछ खाते रहने की आदत थी, क्योंकि मैं हमेशा उसे ताजा चीजें बनाकर देती थी। वह पापा को आवाजें देता और मैं बेचैन रहती। कई रातें सो नहीं पाई, बस बच्चे के ठीक रहने और खुश रहने की दुआएं मांगती रही। मुझे अपनी चिंता नहीं थी, लेकिन बच्चे की सुरक्षा की चिंता थी। मैं मां हूं, लेकिन मुझे मेरी मां ने संभाला। उस समय मैं भवनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो चली थी, लेकिन मेरी मां ने आकर मुझे और बच्चे को संभाला। सबकी देखभाल होने लगी। अब मेरा बुखार ठीक है तो बेटे को मैंने मां के साथ उनके घर भेज दिया है।

बेटी को दुलारते हुए कोरोना को हराया

वीना पांडेय, गृहिणी

समय पर जांच, इलाज के साथ बेहतर खानपान, योग-व्यायाम और दृढ़ इच्छाशक्ति से छत्तीसगढ़ की राजधानी के रायपुर के कुशालपुर में रहने वाली 29 साल की वीना पांडेय ने 10 दिन में ही कोरोना संक्रमण को मात दे दी। इस दौरान वह अपनी नौ माह की बेटी अलीशा को दूर से पुचकारते और दुलार करके संबल देती रहीं। निजी सेक्टर में नौकरी करने वाले वीना के पति आकाश पांडेय ने भी बहुत सहयोग किया। वीना कहती हैं, संक्रमित होने के बाद बच्ची को लेकर मैैं काफी डर गई थी कि उसे कुछ न हो। उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसे अपने से दूर करना पड़ा। बच्ची को पति संभाल रहे थे, लेकिन मैं पति को बच्ची के खाने से लेकर, उसकी सेहत और अन्य चीजों के बारें में बताती रहती थी। होम आइसोलेशन के दौरान दवाओं के साथ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार, काढ़ा आदि का सेवन किया। इसके अलावा योग-व्यायाम भी नियमित रूप से करती रही। कोरोना संक्रमण होने पर घबराहट तो हुई, लेकिन बेटी को जल्द संभालने की इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच के साथ मैंने कोरोना से मुकाबला किया और 10 दिन में पूरी तरह स्वस्थ हो गई।

यशा माथुर

इनपुट बलिया से अजय राय, पटियाला से सुरेश कामरा, नईदुनिया, इंदौर से गजेंद्र विश्वकर्मा, रायपुर से आकाश शुक्ला


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.