India China Border Tension: अब इलेक्ट्रिक बसों के लिए कोई भी पार्ट चीन से नहीं खरीदेगी दिल्ली सरकार
प्रदूषण कम करने के साथ सार्वजनिक परिवहन बेड़े को मजबूत करने की दिल्ली सरकार की इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की सबसे महत्वाकांक्षी योजना में देरी के पूरे आसार हैं।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। प्रदूषण कम करने के साथ सार्वजनिक परिवहन बेड़े को मजबूत करने की दिल्ली सरकार की इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की सबसे महत्वाकांक्षी योजना में देरी के पूरे आसार हैं। चीन के साथ तनाव के कारण दिल्ली सरकार अब इलेक्ट्रिक बसों के लिए कोई भी पार्ट चीन से नहीं खरीदेगी। बसों के पार्ट चीन से ही बनकर आने थे और यहां उन्हें असेंबल किया जाना था। अब इन बसों को लेकर यूरोपीय देशों में संभावनाएं तलाशी जाएंगी। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत यूरोपीय देशों का भी दौरा कर चुके हैं। बेल्जियम, फ्रांस और स्वीडन की ई-बस परिचालन की जानकारी लेने के साथ ई-वाहन चार्जिंग स्टेशन को लेकर भी अध्ययन किया गया है। सरकार अब उस ओर रुख करेगी। उन्होंने कहा कि योजना में देरी होना बर्दाश्त है, मगर चीन से सामान लेना बर्दाश्त नहीं है।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार का एक प्रतिनिधि मंडल परिवहन क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ इलेक्ट्रिक बसों की व्यवस्था देखने के लिए चीन का दौरा भी कर चुका है। परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत भी चीन गए थे। चीन में इलेक्ट्रिक बसें बनाने वाली कंपनी के कारखाने का भी निरीक्षण किया था। एक हजार इलेक्ट्रिक बसों की योजना दिल्ली सरकार ने 2 मार्च 2019 को हुई कैबिनेट में एक हजार इलेक्ट्रिक बसें लाए जाने की अनुमति दे थी। सरकार इस योजना को लेकर इतना उत्साहित थी कि उसी समय 9 मार्च को 522 लो-फ्लोर एसी इलेक्ट्रिक बसों के टेंडर जारी कर दिए। सरकार ने कंपनियों को किलोमीटर स्कीम के तहत बसें चलाने के लिए आमंत्रित किया था।
दिल्ली सरकार ने कराए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर तय किया था कि सरकार खुद इलेक्ट्रिक बसों की खरीद करने की बजाय क्लस्टर स्कीम की तरह निजी कंपनियों को इलेक्ट्रिक बसें लाने के लिए आमंत्रित करेगी। परिवहन विभाग का आकलन था कि इन बसों पर प्रति किलोमीटर 80 से 100 रुपये खर्च आएगा। क्लस्टर स्कीम की तरह इन बसों में भी कंडक्टर सरकार को नियुक्त करना था और ड्राइवर निजी कंपनी का रहता।
कैबिनेट ने फैसला लिया था कि दिल्ली सरकार प्रति बस 75 लाख रुपये की सब्सिडी देगी या बस की कुल कीमत की 60 फीसद राशि देगी। इसमें यह देखा जाएगा कि दोनों में जो भी कम बैठता होगा, उसे सरकार अपनाएगी। सरकार की योजना अक्टूबर 2019 में सारी इलेक्ट्रिक बसें जमीन पर उतार देने की थी, मगर टेंडर सफल नहीं हुए तो बाद में इसी योजना के तहत 385 बसों के टेंडर जारी किए गए। हालांकि ये टेंडर भी फेल हो गए थे। उसके बाद अब फिर से सरकार ने टेंडर निकालने की प्रक्रिया शुरू की है। इसके अलावा डीटीसी भी 300 इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की तैयारी कर रही है।