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Delhi Oxygen Crisis: पीएसए प्लांट लगाने के लिए निजी अस्पतालों को सस्ते ब्याज पर कर्ज दे सरकार

Delhi Oxygen Crisis तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर दिल्ली सरकार से कहा गया है कि जिला स्तर पर ऑक्सीजन की जरूरत का लेखाजोखा तैयार किया जाए। लिक्विड ऑक्सीजन के भंडारण और परिवहन दोनों तरह की व्यवस्था होनी चाहिए।

By Jp YadavEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 10:15 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 10:15 AM (IST)
Delhi Oxygen Crisis:  पीएसए प्लांट लगाने के लिए निजी अस्पतालों को सस्ते ब्याज पर कर्ज दे सरकार
Delhi Oxygen Crisis: पीएसए प्लांट लगाने के लिए निजी अस्पतालों को सस्ते ब्याज पर कर्ज दे सरकार

नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से कई मरीजों की जान चली गई। अब तीसरी लहर आने की भी आशंका बनी हुई है। इसके मद्देनजर आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट लगाने की कवायद चल रही है। कुछ निजी अस्पतालों ने प्लांट लगा भी लिए हैं, लेकिन कई ऐसे हैं जो इसे लेकर ज्यादा सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। निजी अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट लगाने में आ रहीं दिक्कतों, |ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए किए जाने वाले अन्य वैकल्पिक उपायों पर एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) के महासचिव डॉ. गिरधर ज्ञानी से रणविजय सिंह ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:

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 दूसरी लहर में ऑक्सीजन के लिए जिस तरह की अफरातफरी मची वैसी तीसरी लहर में न हो, इसके लिए निजी अस्पताल क्या वैकल्पिक व्यवस्था कर रहे हैं?

- कोरोना की पहली लहर में अस्पतालों में सामान्य तौर पर 30 से 40 फीसद बेड के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती थी। लेकिन, दूसरी लहर में डेल्टा वायरस के घातक संक्रमण के कारण 90 फीसद बेड पर आक्सीजन की जरूरत पड़ी। इससे आक्सीजन की मांग तीन गुना बढ़ गई। आइसीयू में आक्सीजन की जरूरत पांच गुना बढ़ गई। ऐसी स्थिति की उम्मीद किसी को नहीं थी। इसलिए, तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर दिल्ली सरकार से कहा गया है कि जिला स्तर पर ऑक्सीजन की जरूरत का लेखाजोखा तैयार किया जाए। लिक्विड ऑक्सीजन के भंडारण और परिवहन, दोनों तरह की व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे कि जरूरत पड़ने पर आराम से अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए पीएसए (प्रेशर स्विंग एडसाप्र्शन) प्लांट भी विकल्प है।

निजी अस्पतालों में पीएसए प्लांट लगाने में क्या दिक्कतें हैं?

- 50 बेड के छोटे निजी अस्पतालों में भी प्लांट लगाने के लिए कहा गया है। छोटे अस्पतालों में जगह की कमी है। 180 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन आपूर्ति करने की क्षमता का पीएसए प्लांट लगाने में 50 लाख रुपये खर्च आता है। इसके रखरखाव का खर्च भी ज्यादा है। सरकार को पीएसए प्लांट लगाने के लिए निजी अस्पतालों को सस्ते ब्याज पर कर्ज देना चाहिए। पता चला है कि तमिलनाडु सरकार 30 फीसद सब्सिडी दे रही है। कर्नाटक में भी सब्सिडी शुरू हुई है। दिल्ली सरकार को भी यह सुविधा देनी चाहिए। 300 बेड या उससे अधिक क्षमता वाले निजी अस्पतालों में 100 सिलेंडर भरने की क्षमता का ऑक्सीजन प्लांट होना भी चाहिए। कई बड़े अस्पताल प्लांट लगा भी रहे हैं। लेकिन, एक समस्या यह है कि पीएसए प्लांट से प्राप्त ऑक्सीजन की औसत शुद्धता 93 फीसद होती है। जबकि, मरीज के इलाज के लिए 95 फीसद से अधिक शुद्ध ऑक्सीजन की जरूरत होती है। लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की गुणवत्ता 99.5 फीसद शुद्ध होती है। इसलिए पीएसए प्लांट पर निर्भर नहीं होना चाहिए, उसे अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को प्राथमिक जरूरत समझकर तैयारी जरूरी है।

छोटे अस्पतालों व नर्सिंग होम में किस तरह की व्यवस्था हो?

- छोटे निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम में मैनीफोल्ड कंप्रेशन प्लेट (एमसीपी) लगाए जाने चाहिए। इससे 10 सिलेंडर के बराबर आक्सीजन की आपूर्ति की जा सकती है। सभी सरकारी जिला अस्पतालों में पीएसए प्लांट लगाया जाना चाहिए, जिसकी क्षमता कम से कम 50 सिलेंडर भरने की हो।

तीसरी लहर के मद्देनजर अस्पतालों में और किस तरह की तैयारियों की जरूरत है?

- अस्पतालों में डाक्टरों व पैरामेडिकल कर्मचारियों की बहुत कमी है। इसका असर चिकित्सा व्यवस्था पर पड़ता है। इसलिए इन कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति करनी होगी। इसके अलावा अस्पतालों में आइसीयू व वेंटिलेटर पर्याप्त मात्र में होने चाहिए। केंद्र सरकार से कहा गया है कि गांवों में छह बेड का कोविड केयर सेंटर बनाया जाए और आक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था की जाए। इस कार्य में स्थानीय निजी अस्पतालों की मदद ली जा सकती है। कोरोना के इलाज में रेजिडेंट डाक्टर की ही ज्यादा ड्यूटी होती है। वरिष्ठ डाक्टरों पर ज्यादा दबाव नहीं होता। इसलिए वरिष्ठ डाक्टरों को तीसरी लहर में गांवों में टेलीकंसल्टेशन से इलाज की जिम्मेदारी दी जा सकती है। यदि किसी मरीज की हालत गंभीर हो तो उसे तुरंत अस्पताल में स्थानांतरित करने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। इस तरह के नेटवर्क से तैयारी बेहतर होगी।

 

टीके का शुल्क निर्धारित होने के बाद कई अस्पतालों ने ड्राइव थ्रू टीकाकरण बंद कर दिया है, इसे किस रूप में देखते हैं?

- निजी अस्पतालों में टीकाकरण के लिए 150 रुपये सेवा शुल्क ठीक है। सोसायटियों, कंपनी कार्यालयों में कैंप लगा टीकाकरण की व्यवस्था की गई है। यह लोगों के लिए सुविधाजनक है, पर इस तरह के कैंप में टीकाकरण के लिए एंबुलेंस, डॉक्टर व कर्मचारी तैनात करने पड़ते हैं जो निजी अस्पतालों को महंगा पड़ता है। 


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