दिल्ली के सरकारी अस्पताल भी चाहते हैं कोरोना की नई दवा, गंभीर मरीजों को होगा फायदा
लोकनायक अस्पताल ने सरकार से इन दवाओं को उपलब्ध कराने की मांग की है। अस्पताल का कहना है कि यदि ये दवाएं उपलब्ध हों तो कई मरीजों की जान बचाई जा सकती है।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच दिल्ली के सरकारी अस्पताल भी रेमडेसिवीर, टोसिलिजुमैब और इटोलिजुमैब दवाओं का इस्तेमाल करना चाहते हैं। कोरोना मरीजों के इलाज में फेविपिराविर से भी काफी उम्मीदें जताई जा रही हैं। लोकनायक अस्पताल ने सरकार से इन दवाओं को उपलब्ध कराने की मांग की है। अस्पताल का कहना है कि यदि ये दवाएं उपलब्ध हों तो कई मरीजों की जान बचाई जा सकती है।दरअसल, ये दवाइयां बहुत महंगी हैं। टोसिलिजुमैब व इटोलिजुमैब दवा इंजेक्शन के रूप में आती हैं। इसके एक डोज की कीमत 40,000 से 50,000 रुपये है।
रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कीमत करीब 5500 रुपये
वहीं, रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कीमत करीब 5500 रुपये है। दो दिन पहले लोकनायक अस्पताल में पहुंचे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के समक्ष अस्पताल के निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने इन दोनों दवाओं को उपलब्ध कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि इटोलिजुमैब दवा का 22 मरीजों पर परीक्षण भी किया है, जिसका परिणाम बेहतर देखा गया, लेकिन यह दवा महंगी है।
संक्रमण में फेफड़ों में हो जाता है निमोनिया
डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि कोरोना संक्रमण में फेफड़ों में निमोनिया हो जाता है। इस वजह से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इसका एक कारण साइटोकाइन स्टॉर्म है। इसके कारण मरीज के महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते हैं और मरीज की मौत हो जाती है। इटोलिजुमैब दवा साइटोकाइन को नियंत्रित कर सामान्य रखती है। इससे मरीज की जान बच जाती है।
मरीज को लेने पड़ते है चार से पांच इंजेक्शन
डॉक्टर बताते हैं कि एक मरीज को सप्ताह में इटोलिजुमैब दवा का एक इंजेक्शन लगता है। मरीजों को यह चार से पांच इंजेक्शन देने पड़ते हैं। वहीं रेमडेसिवीर 10 दिन तक दी जाती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इलाज के प्रोटोकॉल में इन दोनों दवाओं को शामिल किया है, जिसे ऑफ लेवल मेडिसिन व ट्रायल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।