2020 Delhi Riots: दिल्ली दंगा मामले में चार आरोपितों को मिली जमानत
2020 Delhi Riots जमानत देते समय कोर्ट ने कहा कि अदालत यह समझने में नाकाम है कि कानून-व्यवस्था की बेहतर समझ होने के बावजूद भी दंगा मामले में गवाह पुलिसकर्मी ने न तो पीसीआर कॉल की और न ही इसकी डीडी एंट्री ही दर्ज कराई।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। 2020 Delhi Riots: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगा मामले में चार आरोपितों को जमानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस पर कई सवाल उठाए। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की पीठ ने कहा कि घटना 24 फरवरी 2020 को हुई, जबकि मामले में 27 फरवरी को रिपोर्ट दर्ज की गई। पीठ ने कहा कि जिन चश्मदीदों ने आरोपितों के खिलाफ बयान दिया है उन्होंने न तो घटना के दौरान पीसीआर कॉल की और न ही डीडी एंट्री ही दर्ज कराई है। पीठ ने कहा कि मामले में अन्य चश्मदीद सिपाही संग्राम का बयान रिकार्ड किया गया है, लेकिन अदालत यह समझने में नाकाम है कि कानून-व्यवस्था की बेहतर समझ होने के बावजूद भी दंगा मामले में गवाह पुलिसकर्मी ने न तो पीसीआर कॉल की और न ही इसकी डीडी एंट्री ही दर्ज कराई। पीठ ने कहा कि इसके अलावा मामले में मुख्य आरोपित ताहिर हुसैन की कॉल रिकॉर्ड भी याचिकाकर्ताओं से मेल नहीं खाता।
आरोपित लियाकत अली, अरशद कय्यूम उर्फ मोनू, गुलफाम उर्फ वीआइपी और इरशाद अहमद को 20-20 हजार के निजी मुचलके पर जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि घटना में शामिल होने के संबंध में इनमें से किसी के भी खिलाफ कोई सीसीटीवी फुटेज, वीडियो क्लिप-फोटो भी पुलिस द्वारा पेश नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि प्रथम ²ष्टया अदालत की राय है कि याचिकाकर्ताओं को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सत्यता का परीक्षण ट्रायल के किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न तो गवाहों को प्रभावित करेंगे और न ही सुबूतों से छेड़छाड़ करेंगे। पुलिस के अनुसार लियाकत अली व अन्य आरोपितों ने दंगा, आगजनी समेत अन्य अपराध में शामिल थे। फरवरी 2020 में हुए दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी जबकि 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे।