दिल्ली मेरी यादें: डीयू के पूर्व प्रोफेसर ने साझा की पुरानी यादें, 'दिल्ली को हमने दिल से जिया है'
पूर्व प्रोफेसर हरनंदन लाल का जन्म 1944 में पाकिस्तान में हुआ लेकिन आठ वर्ष की उम्र से वे दिल्ली में ही रह रहे हैं। हिंदू कालेज से इन्होंने बीएससी व एमएससी की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद 1965 में श्यामलाल कालेज में ही शिक्षक हो गए।
नई दिल्ली। दिल्ली को हमने दिल से जिया है। बचपन की वो शरारतें, दोस्तों के साथ हुड़दंग, पड़ोसियों के घर के बाहर लगे पेड़ से पपीता और अमरूद तोड़कर खाना आज भी नहीं भूला हूं। तिमारपुर में मेरा बचपन बीता है। उन दिनों वहां खूब खाली जगह थी। यमुना के किनारे बसे होने के कारण यहां चारो ओर हरियाली रहती थी। तब झुग्गी बस्तियां नहीं थीं, सिर्फ सरकारी आवास ही थे।
लोगों के घरों के आगे इतनी जगह होती थी कि वे पपीता, अमरूद और अनार के पेड़ लगाते थे। प्रसिद्ध पंडित त्रिलोक मोहन महाराज भी वहीं रहते थे। वह दिल्ली प्रांतीय रामायण संघ के सचिव थे। उन्होंने दिल्ली में रामायण का काफी प्रचार प्रसार भी किया।
खूब होती थीं फुटबाल लीग
आज बच्चे सबसे ज्यादा क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं, लेकिन हमारे समय में हर गली में बच्चे फुटबाल ही खेला करते थे। स्कूलों में भी फुटबाल और हाकी ही खिलाया जाता था। फुटबाल खेलने में ज्यादा खर्च भी नहीं आता था। तब दिल्ली फुटबाल लीग भी होती थीं, उसमें ए और बी डिविजन की टीमें खेलती थीं। मैं पहले बी डिविजन तिमारपुर क्लब से खेलता था। बाद में एक डिविजन फ्रंटियर क्लब में शामिल हो गया।
सिटी क्लब व नेशनल क्लब भी फुटबाल खिलाते थे। दिल्ली में पहले अंबेडकर स्टेडियम, क्रीसेंट ग्राउंड, इंडियन एक्सप्रेस की इमारत के पीछे मुगल ग्राउंड और फिरोजशाह कोटला ग्राउंड में भी फुटबाल खेला जाता था। फुटबाल लीग देखने के लिए काफी संख्या में छात्र स्टेडियम में आते थे। जैसे लोग आज क्रिकेट देखकर रोमांचित होते हैं, तब फुटबाल देखकर रोमांचित होते थे। हिंदू कालेज में पांच वर्ष पढ़ने के दौरान भी मैंने फुटबाल खेला और 1965 में अहमदाबाद विश्वविद्यालय में दिल्ली विवि का प्रतिनिधित्व भी किया।
श्याम लाल कालेज के नाम से लगता था डर
नार्थ कैंपस से यमुनापार के कालेज में जाना मेरे लिए एक अलग अनुभव था। श्याम लाल कालेज का माहौल नार्थ कैंपस से बिल्कुल अलग था। शिक्षक हों या छात्र सभी दबंग होते थे। जब मैं वहां पढ़ाने गया, तब कालेज में समाजवादी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ये दो गुट बनने लगे थे। शिक्षकों के साथ छात्र भी इसमें शामिल हो गए।
इन दोनों गुटों में अक्सर विचारधारा की लड़ाई होती थी। शिक्षक छात्रों का राजनीति में खूब इस्तेमाल करते थे। आपातकाल तक लड़ाई का यह सिलसिला चला। इसलिए उस कालेज में लोग अपने बच्चों को भेजने से भी डरते थे। उन दिनों कालेज में साइंस विषय नया-नया ही आया था, जिसमें हम तीन ही शिक्षक थे।
काली बाड़ी में भव्य दुर्गा पूजा
पहले दिल्ली की सड़कें इतनी शांत थीं कि इस पर पैदल चलने में बड़ा आनंद आता था। हम कैंपस से पैदल ही घूमते हुए बिरला मंदिर और बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंच जाया करते थे। तब बंगला साहिब भी आज जितना भव्य नहीं था। पहले बस सरोवर और गुरुद्वारे वाला छोटा सा हिस्सा ही था। पार्किंग वाला हिस्सा खाली था। बिरला मंदिर के सामने काली बाड़ी में एक काली मंदिर था। दिल्ली के लोग पहले वहीं दुर्गा पूजा देखने जाते थे। वहां खूब भीड़ होती थी। ढोल, नगाड़े बजते और पूजा के लिए भव्य पंडाल सजता था, जिसमें दुर्गा मां की विशाल मूíत लगती थी। पहले वहीं भव्य दुर्गा पूजा होती थी।
परिचय
पूर्व प्रोफेसर हरनंदन लाल का जन्म 1944 में पाकिस्तान में हुआ, लेकिन आठ वर्ष की उम्र से वे दिल्ली में ही रह रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कालेज से इन्होंने बीएससी व एमएससी की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद 1965 में श्यामलाल कालेज में ही शिक्षक हो गए। 41 वर्ष सेवा देने के बाद 2006 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए।
(पूर्व प्रोफेसर हरनंदन लाल की संवाददाता रितु राणा से बातचीत पर आधारित)