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जूस की दुकान चलाने को मजबूर कारगिल का योद्धा

बुराड़ी इलाके के मुखमेलपुर निवासी सतबीर कारगिल युद्ध के संस्मरणों को सुनाते हुए अपनी मुट्ठी कस लेते हैं। चेहरा तमतमाने लगता है और भुजाएं फड़कने लगती हैं।

By Edited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 12:23 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 11:41 AM (IST)
जूस की दुकान चलाने को मजबूर कारगिल का योद्धा
जूस की दुकान चलाने को मजबूर कारगिल का योद्धा

नई दिल्ली (संजय सलिल)। कारगिल युद्ध के दौरान पैर में दो -दो गोलियां लगने और पूरा शरीर जख्मी होने के बाद भी लांस नायक सतबीर पाकिस्तानी सैनिकों व घुसपैठियों से दस घंटे तक लोहा लेते रहे। इस दौरान उन्होंने चार दुश्मनों को गोलियों से ढेर किया।

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बुराड़ी इलाके के मुखमेलपुर निवासी सतबीर कारगिल युद्ध के संस्मरणों को सुनाते हुए अपनी मुट्ठी कस लेते हैं। चेहरा तमतमाने लगता है और भुजाएं फड़कने लगती हैं, लेकिन दूसरी ओर माथे पर शिकन भी दिखती है। सरकारी बेरुखी के चलते सतबीर (52) पत्नी राजेश देवी व बेटों कृष्ण व कपिल राणा के भरण-पोषण के लिए मुखमेलपुर स्थित प्राथमिक विद्यालय के पास जूस की दुकान चला रहे हैं। अपने हक और अधिकार के लिए गुरुवार को अलीपुर में शहीद स्मारक पर एक दिन का उपवास भी करेंगे। सतबीर से उनकी दुकान पर ही मुलाकात होती है। टोपी लगाए और एक हाथ में स्टिक थामकर सतबीर ग्राहकों को जूस दे रहे थे।

कुछ देर बाद जैसे ही उनसे कारगिल युद्ध की बातें छेड़ीं तो आंखों में 19 साल पहले लड़े गए युद्ध का दृश्य जीवंत हो उठता है और वह सबकुछ भूलकर ऐतिहासिक व गौरवशाली यादों में खो जाते हैं। सतबीर कहते हैं कि 12 जून 1999 की उस रात के एक-एक लम्हे को कभी नहीं भूल सकते। उस रात 11 बजे करीब 15 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित तोलोलिंग हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों से उनका आमना-सामना हुआ था।

पाक सैनिकों के साथ घुसपैठिये भी थे, जो उनसे ऊंचाई पर थे। कुल 24 सैनिकों की तीन टीमों ने एक दिन व दो रात की चढ़ाई करने के बाद बर्फ व पत्थरों से अटी दुर्गम टोलो¨लग हिल पर पहुंची थी। उनकी कंपनी के कमांडर मेजर विवेक गुप्ता थे। सतबीर के दल में नौ सैनिक थे, जिसमें वह सबसे आगे आगे चल रहे थे।

पहाड़ी पर चढ़ते ही दुश्मनों ने हैंड ग्रेनेड से हमला किया, लेकिन हैंड ग्रेनेड के फटने से पहले ही उन्होंने अपनी राइफल से कुछ ही सेकेंड में तीस गोलियां दुश्मनों पर बरसा दीं। तीन दुश्मन मौके पर ही ढेर हो गए। इसके बाद दुश्मनों ने ऊंचाई से ही मशीनगन से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। पहाड़ी पर उनके तीन-तीन मंजिल के बंकर थे। उन्होंने उस इलाके में करीब डेढ़ साल से कब्जा कर रखा था। ऊंचाई पर होने के कारण उन्हें सेना की हर गतिविधि का पहले से ही पता चल जाता था।

12 जून की रात सतबीर अपने दल के साथ दुश्मनों को चकमा देने में कामयाब रहे। गोलियां की बौछार से कई घुसपैठिए मौत की नींद सो चुके थे। अंत में दो बचे थे, जिनमें एक को सतबीर ने मार गिराया था। इस दौरान कंपनी कमांडर विवेक गुप्ता व छह सैनिक शहीद हो चुके थे। सतबीर के दाहिने पैर में दो गोलियां लगी थीं, लेकिन हौसला कम नहीं हुआ।

दुश्मनों की अंधाधुंध फायरिंग के बीच उन्होंने और उनके साथियों ने सुबह साढ़े चार बजे हजारों फुट की ऊंचाई पर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद सतबीर व उनके साथियों ने दस घंटे तक मोर्चा जमाए रखा, जबकि दूसरा सैन्य दल पहुंचकर मोर्चा थाम नहीं लिया। सतबीर बताते हैं कि गोली लगने के कारण उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था। खून को रोकने के लिए उन्होंने दाहिने पैर में घुटने से ऊपर रस्सी बांध ली थी। द्रास सेक्टर के बेस अस्पताल में पहुंचते-पहुंचते शरीर से बहुत खून निकल चुका था, लेकिन डॉक्टरों ने लंबे इलाज के बाद उन्हें बचा लिया।


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