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कस्तूरबा गांधी के बापू से अंतिम बोल... हमने बहुत सुख भी भोगे, दुख भी..मेरे बाद रोना मत

शरीर छोड़ने से पहले बापू की ओर देखकर बा ने कहा था कि ‘मैं अब जाती हूं। हमने बहुत सुख भोगे दुख भी भोगे। मेरे बाद रोना मत। मेरे मरने पर तो मिठाई खानी चाहिए।’

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 01:27 PM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 10:17 AM (IST)
कस्तूरबा गांधी के बापू से अंतिम बोल... हमने बहुत सुख भी भोगे, दुख भी..मेरे बाद रोना मत
कस्तूरबा गांधी के बापू से अंतिम बोल... हमने बहुत सुख भी भोगे, दुख भी..मेरे बाद रोना मत

नलिन चौहान। दिल्ली में महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट पर अंकित उनके जीवन के अंतिम शब्द ‘हे राम’ जगजाहिर है। लेकिन राजधानी में कस्तूरबा गांधी मार्ग, कस्तूरबा नगर विधानसभा क्षेत्र, यमुना-पार शाहदरा में कस्तूरबा नगर और किंग्सवे कैंप में गांधी-कस्तूरबा कुटीर होने के बावजूद कम लोगों को ही कस्तूरबा गांधी के अंतिम शब्दों के बारे में पता है। शरीर छोड़ने से पहले बापू की ओर देखकर बा ने कहा था कि ‘मैं अब जाती हूं। हमने बहुत सुख भोगे, दुख भी भोगे। मेरे बाद रोना मत। मेरे मरने पर तो मिठाई खानी चाहिए।’ कहते-कहते बा के प्राण बापू की गोद में निकल गए।

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वनमाला परीख और सुशीला नैयर की पुस्तक ‘हमारी बा’ में इस दुखद घटना का सजीव वर्णन है। उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन, 22 फरवरी को वर्ष 1944 को पुणे के आगा खान पैलेस में 74 वर्ष की आयु में कस्तूरबा का देहांत हुआ था। गुजरात के काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में वर्ष 1869 के अप्रैल महीने में जन्मी कस्तूरबा की सात साल की उम्र में छह साल के बापू के साथ सगाई हो गई थी और तेरह साल की उम्र में उनका विवाह हुआ था।

गांधी ने कस्तूरबा के व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ‘मुझे ऐसा लगता है कि कस्तूरबा के प्रति जनता के आकर्षण का मूल कारण स्वयं को मुझमें विलीन करने की क्षमता थी। मैंने कभी इस आत्म-त्याग के लिए आग्रह नहीं किया था। लेकिन जैसे-जैसे मेरे सार्वजनिक जीवन का विस्तार हुआ, मेरी पत्नी के व्यक्तित्व में परिवर्तन आया और उसने आगे बढ़कर स्वयं को मेरे काम में खपा दिया। समय बीतने के साथ मेरा जीवन और जनता की सेवा एकाकार हो गई। उसने धीरे-धीरे स्वयं को मुझमें समाहित कर दिया। शायद भारत की धरती, एक पत्नी में इस गुण के होने को सबसे अधिक पसंद करती है। मेरे लिए उसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यही है।’

दिल्ली का कस्तूरबा कुटीर : किंग्सवे कैंप में गांधी-कस्तूरबा कुटीर की कहानी भी सामान्य जनमानस की स्मृति से ओझल ही है। गांधी अपने दिल्ली प्रवास के दौरान इसी परिसर में रुकते थे। कस्तूरबा अपने बेटे देवदास सहित दूसरे सदस्यों के साथ यहां एक लंबी अवधि तक रहीं। वर्ष 1938 में बा के बीमार होने पर बापू ने सुशीला, जो कि तब डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थीं, को दिल्ली में तार भेजकर उन्हें बा के इलाज के लिए वर्धा आने का अनुरोध किया था। इसी बीच बा खुद ही रेल से दिल्ली आ गईं। बा के साथ उनके बेटे देवदास गांधी भी थे। सुशीला, बा की चिकित्सा-जांच के लिए एक दिन में दो से तीन बार देखने जाती थीं। ‘कस्तूरबा’ पुस्तक में बा से दिल्ली में अपनी मुलाकात का वर्णन करते हुए सुशीला लिखती हैं कि ‘बा ने उन्हें कहा कि वे उनके साथ कुछ दिन रहना चाहती हैं। तुम मुझे सुबह-शाम प्रार्थना गाकर सुनाना तो मुझे लगेगा कि मैं सेवाग्राम के आश्रम में ही हूं।’ उसके बाद सुशीला उन्हें अस्पताल से अपने कमरे ले आईं। देवदास गांधी के घर में रहने के बाद बा की सेहत में सुधार हुआ।

हरिजन सेवक संघ : हरिजन सेवक संघ का मुख्यालय दिल्ली के किंग्सवे कैंप में है। यह परिसर के भीतर वाल्मीकि भवन था, जहां एक कमरे वाले आश्रम से गांधी ने अपनी गतिविधियां चलाईं। गांधी के बिड़ला हाउस स्थानांतरित करने से पहले इसी के करीब बने ‘कस्तूरबा कुटीर’ में कस्तूरबा अपने बच्चों के साथ अप्रैल 1946 और जून 1947 में रही। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के किंग्सवे कैंप में हरिजन सेवक संघ की स्थापना के बाद यह स्थान एक तरह से महात्मा गांधी का ठहरने का स्थान बन गया था। वर्ष 1932 में महात्मा गांधी और डॉ भीमराव आंबेडकर के बीच हुए पुणे पैक्ट के परिणामस्वरूप गांधी ने हरिजन सेवक संघ की नींव रखी थी।

इस संस्था का लक्ष्य समाज से अस्पृश्यता को मिटाने और उससे प्रभावित व्यक्तियों को समाज की मुख्य धारा में लाना था। आज 20 एकड़ के परिसर में गांधी आश्रम, बस्ती, लाला हंस राज गुप्ता औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सहित लड़के-लड़कियों के लिए एक आवासीय विद्यालय भी है। अब हरिजन सेवक संघ के किंग्सवे कैंप स्थित गांधी आश्रम के मुख्यालय को केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने गांधीवादी विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। गांधी-कस्तूरबा के विभिन्न अवसरों पर यहां लंबा समय बिताने के कारण यह स्थान एक तीर्थ के समान है।

बापू के प्रेम पत्र : बापू ने दिल्ली में बा के स्वास्थ्य का हाल-चाल पूछने के लिए कई तार भेजे। वे रोज बा को प्रेम पत्र लिखते थे जो कि सुशीला के मेडिकल कॉलेज के पते पर आते थे। लिखती हैं कि जब मैं ये पत्र लेकर उनके पास जाती थीं तो उनका चेहरा खिल उठता था। वे पहले इन पत्रों को पढ़ती थीं और फिर उन्हें अपने तकिए के नीचे रख देती थीं। उसके बाद चश्मा पहनकर पत्रों को अनेक बार शब्द दर शब्द बांचती थीं। सुशीला का मानना था कि उन्हें इस बारे में कोई संदेश नहीं था कि इन पत्रों ने उनके शीघ्रता से स्वस्थ होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब वे पूरी तरह ठीक हो गईं तो देवदास गांधी अपने पूरे परिवार के साथ बा को सेवाग्राम छोड़कर आए।

[दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी]


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