शिक्षा प्रणाली में भारतीयता लाने व गुरु-शिष्य परंपरा विकसित करने की जरूरत: सोनल मान सिंह
अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भारत में गुरुकुल प्रणाली की ज्ञान परंपरा में बहुत ताकत है। इसे और आगे ले जाने की जरूरत है। हमारे देश के मनीषियों ने पूरे विश्व को ज्ञान की दिशा दिखाई है। अच्छा ज्ञान जहां से भी मिले ले लेना चाहिए।
नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। वसंत कुंज स्थित अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) में सोमवार को राष्ट्रम स्कूल ऑफ पब्लिक लीडरशिप (आरएसपीएल), रिशिहुड यूनिवर्सिटी की ओर से फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि संसदीय संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्यसभा सदस्य पद्म विभूषण डा. सोनल मान सिंह, केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डा. सुभाष सरकार, एआइसीटीई के चेयरमैन प्रो. अनिल डी सहस्रबुद्धे समेत तमाम शिक्षाविदों व विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने भारत की शिक्षा नीति, इसकी कमियों व विशेषताओं पर विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि आजादी के पहले से ही भारत की शिक्षा व्यवस्था का अंग्रेजीकरण हो गया था जो अभी तक जारी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर अब नई शिक्षा नीति में काफी सकारात्मक परिवर्तन किए गए हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रम स्कूल आफ पब्लिक लीडरशिप की प्रो. डा. रिचा चोपड़ा ने किया। डा. रिचा ने बताया कि मंगलवार से 18 दिन तक कार्यक्रम आनलाइन होगा। इच्छुक व्यक्ति रजिस्ट्रेशन करके इसे ज्वाइन कर सकते हैं।
गुरुकुल प्रणाली की ज्ञान परंपरा में बहुत ताकत है
अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भारत में गुरुकुल प्रणाली की ज्ञान परंपरा में बहुत ताकत है। इसे और आगे ले जाने की जरूरत है। हमारे देश के मनीषियों ने पूरे विश्व को ज्ञान की दिशा दिखाई है। अच्छा ज्ञान जहां से भी मिले, ले लेना चाहिए और उसे अन्य लोगों तक पहुंचाना चाहिए। वहीं, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डा. सुभाष सरकार ने कहा कि शोध, नवोन्मेष, रोजगार व सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू की है। नई शिक्षा प्रणाली के जरिये भारत को विश्व गुरु बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्यसभा सदस्य पद्म विभूषण सोनल मान सिंह कहा कि भारत में जितनी विद्या व कलाएं हैं उतनी दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। हमारी भाषा, कला व संस्कृति ने देश को एक सूत्र में बांध रखा है। भारत सनातन चेतना वाला देश है। हमारे स्कूलों को गुरुकुल परंपरा के अनुरूप ढालना चाहिए ताकि एक बार फिर से देश में गुरु-शिष्य परंपरा विकसित हो सके।
पुडुचेरी की पूर्व उपराज्यपाल किरन बेदी ने कहा कि हमारा कर्तव्य ही योग है। जब व्यक्ति अपने कर्तव्य को पहचानने लगता है तो वह यह तय कर पाता है कि वह कब क्या कर्म करे। स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम में शुरू से ही वेद, पुराण व उपनिषद आदि पढ़ाया जाए तो उन्हें अपने देश की शिक्षा व संस्कृति के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
एआइसीटीई के चेयरमैन प्रो. अनिल डी सहस्रबुद्धे ने कहा कि नई पीढ़ी के बच्चे अपनी परंपराओं व संस्कृतियों को भूल रहे हैं।इसलिए हमें अपनी शिक्षा नीति और अपने शिक्षकों को बदलना पड़ेगा। तीन सप्ताह के इस फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के जरिये शिक्षकों को इसके लिए तैयार किया जाएगा। सेंटर फार प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन (यूजीसी-एचआरडीसी) की निदेशक प्रो. गीता सिंह ने कहा कि आजादी के बाद से ही बहुत शोध हुए हैं। ज्ञान का विस्तार हुआ है लेकिन देखने वाली बात यह है कि यह विस्तार किस दिशा में हुआ है। यह शिक्षा नीति अच्छे नागरिक बनाने में पीछे रह गई। यह एक भ्रष्टाचार व अपराधमुक्त परिपूर्ण तंत्र नहीं दे पाई। कोई भी देश तभी आगे जाएगा जब वह अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ा हो। हम अपनी सशक्त-समृद्ध अतीत से अपने भविष्य के लिए शिक्षा की सीख ले सकते हैं। हमें शिक्षा प्रणाली में भारतीयता लाने की जरूरत है।
अपनी चेतना की एकात्मकता के कारण एक है भारत
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडी के प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि भारत अपनी चेतना की एकात्मकता के कारण एक है। हमारे मनीषियों ने अपनी भाषा व भ्रमण में इस चेतना को विकसित किया है। भारत के गांवों में रहने वाली 70 प्रतिशत आबादी अपनी ज्ञान परंपरा से जुड़ी हुई है जबकि शिक्षित लोग इस परंपरा से टूट रहे हैं।हमारे चैतन्य की एकात्मकता हमारे व्यवहार व आचरण में है। हमारे देश में शुरू से ही यह माहौल बनाया गया है कि अंग्रेजी में शिक्षा हासिल करने से ही रोजगार मिलेगा। इस सोच को बदलना होगा। कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रम के को-फाउंडर व डीन शोभित माथुर, को-फाउंडर व एसोसिएट डीन राघव कृष्णा, भारतीय शिक्षण मंडल के नेशनल आर्गनाइजिंग सेक्रेटरी मुकुल कनितकर, प्रो. माला कपाड़िया, आइआइटी खड़गपुर के प्रो. सोमेश कुमार ने भी अपने विचार रखे।