दिल्ली मेरी यादें: 1978 में आए बवंडर का साक्षी है मिरांडा हाउस, पूर्व प्रोफेसर ने साझा की पुरानी यादें
दिल्ली विश्वविद्यालय पीजीडीएवी कालेज की पूर्व प्रोफेसर डा. रुक्मिणी का जन्म 1956 में मेरठ में हुआ। 1978 में शादी के बाद दिल्ली आ गईं। मेरठ कालेज से ही इन्होंने बीए व एमए की पढ़ाई की। पीएचडी करने के बाद 1990 में पीजीडीएवी सांध्य कालेज में लेक्चरार की नौकरी लग गई।
नई दिल्ली [रितु राणा ]। भले ही ही मेरा जन्म मेरठ में हुआ, लेकिन दिल तो बचपन से ही दिल्ली में था। बचपन में मां के साथ अक्सर दिल्ली आती थी। यहां के चप्पे चप्पे से वाकिफ थी। गांधी नगर में मेरे भाई रहते थे। हर साल गर्मी की छुट्टियों में हम वहां पहुंच जाया करते थे। मुझे याद है उस वक्त मेरी उम्र 12 साल रही होगी। मां के साथ मेरठ से बस में बैठकर कश्मीरी गेट पहुंची और वहां से तांगा लेकर हम गांधी नगर के लिए निकल गए। उन दिनों गांधी नगर पहुंचने का एकमात्र रास्ता लोहे का पुल ही था। पुल से गुजरने के दौरान अक्सर ट्रेन दिख जाया करती थी। उसे देखने का जो रोमांच था बता नहीं सकती। जब तक ट्रेन गुजर नहीं जाती तांगे से झांकती रहती थी। ट्रेन गुजरती तो पुल हिलता हुआ महसूस होता था।
आंखें में बस गई डाल म्यूजियम की चमक
1969 के आसपास हमें स्कूल से दिल्ली भ्रमण के लिए लाया गया था। उन दिनों दूर दूर तक सड़कों पर लोग भी नहीं दिखते थे। केवल चौड़ी सड़कें और किनारे लगे हरे भरे जामुन के पेड़ दिखाई देते थे। डाल म्यूजियम में देश-विदेश की गुड़ियों की सुंदरता और चमक इस कदर मेरी आंखों में बस गई कि वहां से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था।
नार्थ कैंपस में बवंडर का वो मंजर
1978 की बात है। उस समय नार्थ दिल्ली में एक बवंडर आया था। यह बवंडर इतना भयावह था कि महज पांच मिनट में ही इसने पूरे नार्थ कैंपस में तबाही मचा दी थी। दुकानें तहस-नहस हो गईं, पेड़ उखड़ गए, दो स्कूटर उड़कर सेंट्रल लाइब्रेरी की छत पर जा गिरे, मिरांडा हाउस की दीवार टूट गई। इस बवंडर में दो लोगों की जान भी चली गई। सैंकड़ों लोग घायल हो गए थे। उस समय करीब एक करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। बवंडर से मची इस तबाही को देखने के लिए तब दूर दूर से लोग नार्थ कैंपस पहुंचे थे।
मेरठ से दिल्ली तक चलती थी मुलाकातें
पति नरेश भाटिया मेरी मुलाकात मेरठ कालेज की लाइब्रेरी में हुई थी। कुछ दिनों तक मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा, उसके बाद हमने शादी करने का फैसला कर लिया। हमारी मुलाकातें मेरठ से दिल्ली तक चलती थीं। शादी से पहले करोल बाग में रोशन दी कुल्फी और छोले भटूरे खूब खाए। मोती सिनेमा में फिल्म देखने जाया करते थे। फतेहपुरी में काके दी हट्टी का रबड़ी फालूदा खाना नहीं भूलते थे।
परिचय
दिल्ली विश्वविद्यालय पीजीडीएवी कालेज की पूर्व प्रोफेसर डा. रुक्मिणी का जन्म 1956 में मेरठ में हुआ। 1978 में शादी के बाद दिल्ली आ गईं। मेरठ कालेज से ही इन्होंने बीए व एमए की पढ़ाई की। दिल्ली विवि से एमफिल और पीएचडी करने के बाद 1990 में पीजीडीएवी सांध्य कालेज में लेक्चरार की नौकरी लग गई। 2020 में सेवानिवृत्त हुईं।
(पीजीडीएवी कालेज की पूर्व प्रोफेसर डा. रुक्मिणी की संवाददाता रितु राणा से बातचीत पर आधारित।)