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दिल्ली दंगे से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका खारिज

दिल्ली दंगे से जुड़े मनी लांड्रिंग के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने मुख्य आरोपित एवं आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। ईडी की तरफ से पेश की गई दलीलों को मानते हुए कोर्ट ने ताहिर को जमानत देने से इन्कार कर दिया है।

By Ashish GuptaEdited By: Mangal YadavPublished: Sat, 05 Mar 2022 05:22 PM (IST)Updated: Sat, 05 Mar 2022 11:01 PM (IST)
दिल्ली दंगे से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका खारिज
दिल्ली दंगे से जुड़े मनी लांड्रिंग के मामले में पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका खारिज

नई दिल्ली [आशीष गुप्ता]। दिल्ली दंगे से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में शनिवार को कड़कड़डूमा कोर्ट ने मुख्य आरोपित एवं आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन को जमानत देने से इन्कार कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया शिकायत पढ़ने, साक्ष्यों को देखने और प्रीवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) की धारा 45(1) के प्रतिबंधों पर गौर करते हुए आरोपित को जमानत देना उचित नहीं है। साथ ही कहा कि ऐसी प्रतीत नहीं होता कि आरोपित मामले में गुनहगार नहीं है।

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प्रवर्तन निदेशालय ने फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगे के बाद पीएमएलए के तहत ताहिर हुसैन के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। उसमें आरोप लगाया था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन और दिल्ली में दंगा भड़काने के लिए ताहिर हुसैन ने फर्जी कंपनियां और फर्जी बिल बनाकर अवैध तरीके से 1.59 करोड़ रुपये जुटाए थे। इस मामले में पिछले वर्ष अगस्त 2020 में उसकी गिरफ्तारी हुई थी। अक्टूबर 2020 में इस मामले आरोपपत्र दायर हुआ था।

इस मामले में ताहिर हुसैन की ओर से दायर जमानत अर्जी में कहा गया था कि उसे मनी लांड्रिंग के मामले में गलत फंसाया गया है। उसकी पैरवी कर रहे अधिवक्ता रिजवान ने भी कोर्ट में इस बात को दोहराते हुए कहा था कि फर्जी बिल काटना केंद्रीय माल और सेवा कर (सीजीएसटी) अधिनियम के उल्लंघन के दायरे में तो आ सकता है, लेकिन मनी लांड्रिंग का मुकदमा नहीं बनता। साथ ही कहा था कि जिन डमी कंपनियों (सीएपीएल, ईसीपीएल और ईजीएसपीएल) का जिक्र किया गया है, उसमें कई अन्य लोग निदेशक हैं। उन्हें प्रवर्तन निदेशालय ने आरोपित नहीं बनाया। इन खामियों के चलते कानूनी रूप से आरोपपत्र कहीं नहीं टिकता। रिजवान ने दंगे में धनराशि का इस्तेमाल होने के साक्ष्य न होने की बात भी कही थी।

इनकी दलीलों के विरोध में प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से विशेष लोक अभियोजक एनके मट्टा ने कहा था कि ताहिर ने बिना सामान और सेवाओं के फर्जी बिल काटे थे। ताहिर की एक डायरी निदेशालय के पास है, जिसमें लेनदेन का ब्योरा दर्ज है। इसके अलावा बैंकों से जुटाए खातों के विवरण और वाट्सएप चैट हैं। ताहिर के कई करीबी इस मामले में गवाह हैं, उनके बयान से पता चलता है कि उसने सुलेमान सिद्दीकी, गुल (गुलफिशा) और अन्य लोगों को प्रदर्शन के लिए रुपये दिए थे। गलत तरीके से जुटाए गए धन का आपराधिक गतिविधि में इस्तेमाल होने पर यह मनी लांड्रिंग का मामला बनता है। जीएसटी के प्रविधानों का उल्लंघन होने पर संबंधित विभाग अलग से मुकदमा चला सकता है। विशेष लोक अभियोजक कोर्ट के समक्ष यह आशंका भी जताई थी कि ताहिर को जमानत मिलने पर गवाहों को प्रभावित कर सकता है। इस मामले में कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रखा हुआ था, जो शनिवार को सुना दिया। बता दें कि दंगे में नाम आने के बाद आप ने ताहिर हुसैन को निलंबित कर दिया था।

सह आरोपित बन चुका है सरकारी गवाह

इस मामले में दायर आरोपपत्र में प्रवर्तन निदेशालय ने ताहिर के अलावा रोहिणी के कारोबारी अमित गुप्ता को आरोपित बनाया था। अमित गुप्ता ने आठ मार्च 2021 को इस मामले में सरकारी गवाह बनने के लिए अर्जी लगाई थी। 11 माह से ज्यादा सुनवाई चलने के बाद 19 फरवरी 2022 को कोर्ट ने उसकी सरकारी गवाह बनने की अर्जी स्वीकार कर लिया था।


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