Move to Jagran APP

भारत में अब नपुंसक भी बन सकते हैं पिता, एम्स में लाइव सर्जरी कर किया दावा

All India institue of Medical Sciences (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में इनफर्टिलिटी पर आयोजित कांफ्रेस में डॉक्टरों ने लाइव सर्जरी कर इस तकनीक को प्रदर्शित किया है।

By Edited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 09:40 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 08:54 AM (IST)
भारत में अब नपुंसक भी बन सकते हैं पिता, एम्स में लाइव सर्जरी कर किया दावा
भारत में अब नपुंसक भी बन सकते हैं पिता, एम्स में लाइव सर्जरी कर किया दावा

नई दिल्ली, जेएनएन। In vitro fertilisation (आइवीएफ) की बात होती है, तो 'विक्की डोनर' फिल्म के दृश्य आंखों के सामने आते हैं, लेकिन 'विक्की डोनर' की कहानी अब बीते जमाने की बात हो चली है। अब ऐसी तकनीक आ गई है, जिससे यदि पुरुष नपुंसकता (इनफर्टिलिटी) से पीड़ित हों तो सर्जरी की मदद से शुक्राणु एकत्रित कर आइवीएफ कराया जा सकता है।

loksabha election banner

इस तकनीक का फायदा यह है कि पति ही आइवीएफ से जन्में बच्चे के जैविक पिता होंगे। शनिवार को All India institue of Medical Sciences (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में इनफर्टिलिटी पर आयोजित कांफ्रेस में डॉक्टरों ने लाइव सर्जरी कर इस तकनीक को प्रदर्शित किया।

यह तकनीक नि:संतान दंपतियों के लिए उम्मीद की एक नई किरण की तरह है। इस तकनीक से नपुंसकता से पीड़ित पुरुष भी पिता बन सकते हैं। AIIMS की गायनी विभाग की प्रोफेसर व आइवीएफ विशेषज्ञ डॉ. नीता सिंह ने कहा कि पहले महिलाओं में बांझपन की समस्या अधिक थी। पिछले कुछ वर्षों से इसमें बदलाव देखा जा रहा है। देर से शादी, बढ़ते प्रदूषण, तनाव व गलत जीवनशैली के कारण पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ रही है।

एक दशक पहले तक 25 फीसद पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या होती थी। संख्या बढ़कर 30 से 35 फीसद तक हो गई है। दो दशक पहले तक स्पर्म काउंट 60-120 मिलियन होता था। अब सामान्य स्पर्म काउंट का स्तर 15 मिलियन पर आ गया है। वैश्विक स्तर पर यह बदलाव आया है। यदि इसका निदान नहीं किया गया तो इनफर्टिलिटी बड़ी समस्या बनकर सामने आएगी, इसलिए सम्मेलन में पुरुषों की इनफर्टिलिटी और उसके इलाज पर चर्चा की गई।

डॉ. नीता ने कहा कि सर्जरी के जरिये टेस्टीस (वृषण) को कट कर कुछ शुक्राणु प्रिजर्व कर लिया जाता है। इससे दंपती को अपना जैविक पुत्र होने की पूरी उम्मीद रहती है, इसलिए हम दंपतियों को यह तकनीक अपनाने की सलाह देते हैं। यदि उन्हें यह विकल्प नहीं देंगे तो वे डोनर स्पर्म प्रोसिजर अपनाने के लिए मजबूर होंगे। ऐसी स्थिति में पति बच्चे का वास्तविक जैविक पिता नहीं होंगे।

देश में बहुत कम सेंटर इस तकनीक से इलाज की सुविधा दे पा रहे हैं, इसलिए सम्मेलन में लाइव सर्जरी के जरिये नई तकनीक को दिखाया गया, ताकि डॉक्टर यह तकनीक सीख सकें। AIIMS में आइवीएफ के लिए भी दो से तीन साल तक की वेटिंग एम्स में आइवीएफ के लिए भी दो से तीन साल तक की वेटिंग चल रही है, इसलिए आइवीएफ से संतान सुख की उम्मीद में एम्स पहुंचने वाले आर्थिक रूप से कमजोर दंपतियों को परेशानी का सामना भी करना पड़ता है।

इसका एक कारण यह भी है कि दिल्ली में सरकारी क्षेत्र के सिर्फ दो अस्पतालों में ही आइवीएफ की सुविधा है, इसलिए एम्स के डॉक्टर अन्य सरकारी अस्पतालों में भी इसकी सुविधा शुरू करने की जरूरत महसूस कर रहे हैं।

आइवीएफ से 600 बच्चों की गुंजती है किलकारी
डॉ. नीता सिंह ने कहा कि एम्स में इस सुविधा के लिए मरीज को सिर्फ दवा का खर्च उठाना पड़ता है। प्रोसिजर निशुल्क है। जबकि निजी अस्पतालों में आइवीएफ के लिए पांच से 10 लाख खर्च करना पड़ता है। यह हर किसी के लिए संभव नहीं है। एम्स के आइवीएफ क्लीनिक में प्रतिदिन 50 मरीज देखे जाते हैं। संस्थान में हर साल आइवीएफ से 600 से 700 बच्चे जन्म लेते हैं। कम उम्र की महिलाओं में सफलता की दर 40 फीसद तक है।

दिल्ली-एनसीआर की महत्वपूर्ण खबरों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.