Delhi News: दशहरा पर जहाज से विदेश भेजे जाएंगे रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के पुतले, इन देशों ने भेजी डिमांड
कनाडा अमेरिका मलेशिया और आस्ट्रेलिया से मिले आर्डर ततारपुर के कारोबारियों को उम्मीद- इस बार अच्छा होगा कारोबा। कोरोना के कारण पिछले दो साल से रावण मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बन तो रहे थे पर कारोबार न के बराबर हो रहा था।
नई दिल्ली,जागरण संवाददाता। दशहरा अभी दूर है, लेकिन टैगोर गार्डन स्थित ततारपुर गांव में हलचल शुरू हो गई है। कारीगरों को विदेश से आर्डर मिलने लगे हैं। विदेश भेजने के लिए कारीगर पूरे जोर-शोर से रावण के पुतले बनाने में जुटे हुए हैं। कोरोना महामारी के कारण बीते दो वर्षो से ततारपुर गांव में रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के पुतले बन जरूर रहे थे।
लेकिन पीढ़ियों से पुतले बनाने का काम कर रहे कारीगरों में अच्छे कारोबार को लेकर संशय बना रहता था, पर अब जब कोरोना संक्रमण का खतरा उतना नहीं है तो इस बार कारीगर काफी उत्साहित हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि लंबे अरसे के बाद इस बार पुतलों की जमकर बिक्री होगी। कारीगरों का कहना है कि इस वर्ष दशहरे पर भारत कोरोना महामारी पर विजय दिवस मनाएगा।
जहाज में विदेश जाएगा रावण : कारीगर मौंटी बताते हैं कि बांद्रा बंदरगाह से जहाज में रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के पुतले विदेश जाते हैं। पुतले टूटे नहीं इसके लिए उनके आकार और कद के अनुरूप लकड़ी का डिब्बा आर्डर पर तैयार कराया जाता है। उस डिब्बे में पुतले को पैक कर बंदरगाह तक भेजा जाता है। पुतले निर्यात होने में करीब डेढ़ माह का समय लगता है। अभी दशहरा तीन माह दूर है, ऐसे में आगामी दिनों में विदेश से और भी आर्डर मिलने की पूरी संभावना है।
इन देशों से मिले आर्डर, अभी और मिलने की उम्मीद
कारीगर अमित कुमार ने बताया कि कनाडा, अमेरिका, मलेशिया और आस्ट्रेलिया से रावण के पुतलों के कुछ आर्डर मिले हैं। वहीं, विदेश में कुछ कारोबारियों से अभी भी बातचीत चल रही है। अमित बताते हैं कि इस बार लोग कोरोना संक्रमण वाले डिजाइन के पुतले की अधिक मांग कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण व संस्कृति को जीवित रखने के लिए बीते कुछ वर्षो में ऊंचे कद वाले रावण के पुतलों के बजाय छोटे कद वाले रावण की मांग अधिक हो गई है।
पर रावण बनाने के लिए इस्तेमाल बांस की लकड़ी असम से मंगाई जाती है, पर अभी वहां बाढ़ के कारण माल नहीं आ पा रहा है। ऐसे में कारीगर पुराने माल का इस्तेमाल करके ही फिलहाल आर्डर पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। बाजार में उपलब्ध कच्चे माल के दाम दोगुने हो गए हैं, जिसके कारण माल खरीदने के लिए कारीगर यहां-वहां से उधार पर पैसे ले रहे हैं। पर असम में यदि समय रहते हालात नहीं सुधरे तो समय पर पुतले बनाने का काम शुरू करना मुश्किल होगा।