इन वजहों से देश के हजारों बुजुर्गों को नहीं लग पा रहा टीका, वैक्सीन न लगने के पीछे परिवार के सदस्य भी जिम्मेदार
वहीं कुछ लोग ओमिक्रोन वैरिएंट आने के बाद ऐसा भी सोच रहे हैं कि जब दोनों टीका लगवा चुके लोगों को भी कोरोना हो रहा है तो फिर टीका लगवाने का फायदा ही क्या है? ऐसे लोगों के लिए विशेष रूप से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। 60-70 साल के बुजुर्गों में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो खुद से टीकाकरण केंद्र पर जाकर टीका लगवाने में सक्षम हैं। जो सक्षम हैं वो लोग टीका लगवा चुके हैं। अधिकांश ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें टीकाकरण केंद्र पर जाने के लिए किसी के साथ की जरूरत है। इन्हीं में से अधिकतर टीका लगवाने से वंचित हैं। 70 और 80 साल से ऊपर के बुजुर्ग अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं और बिना व्हीलचेयर के बाहर जाने में असमर्थ हैं।
इन बुजुर्गो के परिवार के सदस्य भी सोचते हैं कि जब इनका घर से बाहर जाना ही नहीं होता तो इन्हें कोरोना से कैसा खतरा। इसलिए इन्हें टीका लगवाने की जरूरत नहीं है। ऐसे में इन बुजुर्गों के लिए घर-घर जाकर उन्हें चिह्न्ति करके घर पर ही टीका लगवाने की व्यवस्था करनी होगी क्योंकि उम्र के इस ढलाव पर बुजुर्गो में ऐसा सोच भी रहता है कि हमने तो अपनी जिंदगी जी ली है। अब टीका लगवाकर क्या करना है। वहीं, कुछ लोग ओमिक्रोन वैरिएंट आने के बाद ऐसा भी सोच रहे हैं कि जब दोनों टीका लगवा चुके लोगों को भी कोरोना हो रहा है तो फिर टीका लगवाने का फायदा ही क्या है? ऐसे लोगों के लिए विशेष रूप से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। दरअसल जागरूकता अभियान में आबादी के हर वर्ग की दिक्कतें, सोच-शंकाओं को ध्यान में रखने की जरूरत है।
जागरूकता का दायरा बढ़ाने की जरूरत
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को अपने-अपने इलाके के बुजुगोर्ं को चिह्न्ति कर उनके घर पर जाकर टीकाकरण करने की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। एनसीआर के शहरों की बात करें तो वह इस मामले में दिल्ली से काफी पीछे हैं। फरीदाबाद जरूर नजीर के तौर पर उभरा है जहां बुजुर्गो को पहली डोज लगाने का काम 100 प्रतिशत हो चुका है। बाकी कुछ जगहों पर ग्रामीण आबादी का भी बहुत फर्क होता है। ग्रामीण इलाकों में कोरोना का टीका लगवाने के बाद बुखार आने जैसी परेशानी को लेकर अब भी गलत धारणा है। इससे डरकर भी लोग टीका नहीं लगवा रहे हैं। इस समय कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों में अधिकतर बीमारियों से पीड़ित बुजुर्ग और बिना टीका लगवाने वाले लोग शामिल हैं।
इस बात की हाल ही में हुए कई अध्ययनों में पुष्टि भी हो चुकी है। मरने वालों में शुगर, हाइपरटेंशन, कैंसर, हार्ट और फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित मरीज रहे। बुजुर्गों को टीका लगवाने के लिए पल्स पोलियो अभियान की तरह ही प्रभावी जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। जिस तरह पोलियो से बचाव के लिए दो बूंद जिंदगी की.. जैसा एक आकर्षक स्लोगन चला जो लोगों के बीच जागरूकता का बड़ा माध्यम बना।
उसी तरह का एक वृद्ध आकर्षक जागरूरकता अभियान बुजुगोर्ं के टीकाकरण के लिए चलाने की जरूरत है। इसमें विभिन्न पुलिस थानों में पंजीकृत ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को भी चिह्न्ति किया जाना चाहिए जो बिल्कुल अकेले रहते हैं और उनके बच्चे विदेश में रहते हैं। यहां उनको टीका लगवाने के लिए टीकाकरण केंद्र तक ले जाने वाला कोई नहीं है। एक-एक बुजुर्ग के लिए सरकार और जिला प्रशासन को पूरे दमखम के साथ जुटना होगा।
(डा. सुनीला गर्ग, डायरेक्टर, कम्युनिटी मेडिसिन, मौलाना आजाद मेडिकल कालेज)