Delhi Crime: पुलिसकर्मियों की सूझबूझ से फंदे से झूल रहे दुकानदार की बची जान, पढ़ें स्टोरी
सुबोध तनाव में आकर देर रात अपने कमरे में पंखे में चुन्नी के सहारे फांसी लगा ली तभी पत्नी जग गई और उन्होंने शोर मचाया। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य आ गए और उनके भाई अनिल ने पीसीआर को काल कर दी।

नई दिल्ली [संजय सलिल]। जहांगीरपुरी इलाके में दो पुलिसकर्मियों की तत्परता व सूझबूझ से फंदे से झूल रहे 39 वर्षीय दुकानदार की जान बच गई। घटना की सूचना मिलने के चंद मिनटों में मौके पर पहुंचे हेड कांस्टेबल विजय व एएसआइ दिनेश ने मिलकर दुकानदार को फंदे से उतारा और विजय ने प्राथमिक उपचार कर उनकी उखड़ती सांसों को वापस लाया। दोनों को उत्तर पश्चिम जिले की डीसीपी उषा रंगनानी पुरस्कृत करेंगीं।
जानकारी के अनुसार जहांगीरपुरी डी- ब्लाक में रहने वाले सुबोध बंसल भलस्वा डेरी में जनरल स्टोर चलाते हैं। परिवार में पत्नी अंजू के अलावा 13 वर्ष की बेटी व 12 वर्ष का बेटा है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार कोरोना काल में कारोबार में नुकसान के कारण सुबोध काफी कर्ज में डूब गए।
उधार देने वाले लोग भी उन्हें प्रताड़ित कर रहे थे। इससे तनाव में आकर बुधवार की देर रात उन्होंने अपने कमरे में पंखे में चुन्नी के सहारे फांसी लगा ली, तभी पत्नी जग गई और उन्होंने शोर मचाया। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य आ गए और उनके भाई अनिल ने पीसीआर को काल कर दी। कुछ ही मिनट में पास के ही बी -ब्लाक में गश्त कर रहे हेड कांस्टेबल विजय व एएसआइ दिनेश मौके पर पहुंच गए। विजय ने सुबोध को पैर पकड़ कर ऊपर उठाया और दिनेश में गले में बंधी चुन्नी की गांठ खोलकर उन्हें नीचे उतारा।
सुबोध की सांसें रूक- रूक कर चल रही थी। हेड कांस्टेबल विजय ने तुरंत उसे मुंह से सांस दिया और छाती को पंप करना शुरू कर दिया। इससे उनकी सांसें वापस आने लगीं। फिर उन्हें जगजीवन राम अस्पताल ले जाया गया। जहां डाक्टरों ने कहा कि दो तीन मिनट और देरी होती तो व्यक्ति की जान जा सकती थी। अस्पताल में इलाज के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई है।
दो दिन पूर्व ही बेटी का स्कूल से नाम कटवाया
पुलिस को जांच में पता चला कि आर्थिक तंगी के कारण सुबोध के दोनों बच्चों की पढ़ाई छूटी गई। उनकी बेटी अंशु शालीमार बाग के एक निजी स्कूल में नौंवी में पढ़ती थी। लेकिन, फीस नहीं चुका पाने के कारण दो दिन पूर्व ही उसका नाम स्कूल से कटवा दिया था। जबकि पांचवीं पास करने के बाद बेटे भारत का छठी कक्षा में दाखिला नहीं करा सके थे।
Edited By Prateek Kumar