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‘चंद्रावती रामायण’ की जगह अब रामचरितमानस पढ़ेंगे डीयू के छात्र

दिल्ली विश्वविद्यालय में चंद्रावती रामायण अब नहीं पढ़ाई जाएगी। इसकी जगह छात्र तुलसीदास रचित रामचरित मानस पढ़ेंगे। डीयू की ओवरसाइट कमेटी ने ये सिफारिश की है। हाल ही में पाठ्यक्रम की समीक्षा के दौरान इसे हटाने की मांग उठी थी।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 31 Aug 2021 06:37 AM (IST)Updated: Tue, 31 Aug 2021 08:16 AM (IST)
‘चंद्रावती रामायण’ की जगह अब रामचरितमानस पढ़ेंगे डीयू के छात्र
चंद्रावती की जगह अब तुलसीदास रचित रामचरित मानस पढ़ेंगे डीयू छात्र

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। दिल्ली विश्वविद्यालय में चंद्रावती रामायण अब नहीं पढ़ाई जाएगी। इसकी जगह छात्र तुलसीदास रचित रामचरित मानस पढ़ेंगे। डीयू की ओवरसाइट कमेटी ने ये सिफारिश की है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो बहुत जल्द सिफारिश के तहत पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिए जाएंगे एवं छात्र तुलसीदास कृत रामचरित मानस पढ़ेंगे। ये बदलाव बीए, बीएससी, बीकाम पाठ्यक्रमों में किए जाएंगे।

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डीयू सूत्रों ने बताया कि बीए, बीएससी, बीकाम के पांचवे सेमेस्टर में बीए आनर्स अंग्रेजी के यूनिट चार में पूर्व औपनिवेशिक भारतीय साहित्य पढ़ाया जाता है। इसमें वुमन वायस अध्याय है, जिसमें छात्रों को चंद्रावती रामायण पढ़ाई जाती है। यह चंद्रावती रामायण के मूल बंगाली कहानी का अंग्रेजी अनुवाद है। अनुवाद मंदक्रांता बोस और सारिका प्रियदर्शनी बोस ने किया है। छात्र काफी लंबे समय से इसे पढ़ रहे हैं।

हाल ही में पाठ्यक्रम की समीक्षा के दौरान इसे हटाने की मांग उठी। डीयू की ओवरसाइट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वुमेन वायस की समीक्षा करने की जरूरत है। इसमें छात्रों को चंद्रावती रामायण पढ़ाई जा रही है। चंद्रावती रामायण में सीता को रावण की पत्नी मंदोदरी की बेटी के रूप में दर्शाया गया है। यह कहीं से भी छात्रों के लिए प्रासंगिक नहीं है, इसे पढ़ाने से बचना चाहिए।

कमेटी ने इसकी जगह तुलसीदास रचित रामचरित मानस पढ़ाने की सिफारिश की है। कमेटी ने कहा है कि यह अधिक प्रासंगिक है। कमेटी ने अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष को भी अपनी मंशा से अवगत करा दिया है।

बता दें कि अंग्रेजी आनर्स पाठ्यक्रम से हाल ही में लेखिका महाश्वेता देवी की आदिवासी महिला पर लिखी लघु कथा द्रौपदी और दो दलित लेखकों की कहानी हटाई थी। इसकी जगह रमाबाई की कहानी को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। जिसका डीयू के एक धड़े ने काफी विरोध भी किया। हालांकि डीयू ने एक बयान जारी कर कहा था कि पाठ्यक्रम से जो लघुकथाएं हटाई गईं हैं, उनकी विषयवस्तु आपत्तिजनक थी।


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